वयं राष्ट्रे जागृयाम ।(68) -विवेकानंद शुक्ला अफ़सोस तो ये है की स्वतंत्रता के सत्तर सालों बाद भी ये छद्म बौद्धिक तथा पदार्थवादी लम्पट वामपंथी राष्ट्रीय अस्मिता और सांस्कृतिक गौरव को ख़त्म करने का कोई भी कसर नही छोड़ते हैं।सभी हिंदुस्तानियों …
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