दुनिया

कावानाह ने आरोपों का हुआ जोरदार खंडन, राष्ट्रपति ट्रंप ने किया समर्थन

वाशिंगटन। अमेरिकी सीनेट में नाटकीय सुनवाई के दौरान यौन शोषण के आरोपों का सामना कर रहे सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश पद के लिए नामित ब्रेट कावानाह ने एक ओर जहां अपना पूरजोर बचाव किया वहीं राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी उनका …

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ग्रीन कार्ड नीति में अमेरिका बदलाव की तैयारी में लगा है, भारतीयों मुश्किलें बढ़ सकती है…

ट्रंप प्रशासन अमेरिका की ग्रीन कार्ड नीति में बड़े बदलाव की तैयारी में है। इससे अमेरिका में स्थायी तौर पर बसने की चाह रखने वाले दक्षिण एशियाई देशों खासतौर से भारत के नागरिकों को बड़ा झटका लग सकता है। अमेरिका में दक्षिण एशियाई लोगों के संगठन साउथ एशियन अमेरिकन लीडिंग टुगेदर (एसएएएलटी) ने मंगलवार को यहां कहा कि नए नियमों का सबसे प्रतिकूल असर दक्षिण एशियाई समुदाय पर पड़ सकता है। ट्रंप प्रशासन के प्रस्तावित नियमों के तहत उन आप्रवासियों को ग्रीन कार्ड जारी किए जाने से इन्कार किया जा सकता है जो सरकारी सुविधाओं का लाभ उठा चुके हैं या उठाने वाले हैं। एसएएएलटी ने डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी (डीएचएस) के इस प्रस्ताव की निंदा की है। प्यू रिसर्च सेंटर के हालिया अध्ययन के अनुसार, अमेरिका में हर चार में एक आप्रवासी बांग्लादेश या नेपाल का है जो पहले से ही गरीबी से जूझ रहे हैं। इनके अलावा हर तीन में एक आप्रवासी भूटान मूल का है। उनका भी यही हाल है। ऐसे में नए नियमों से इन लोगों की मुश्किलें और बढ़ सकती हैं। एसएएएलटी की कार्यकारी निदेशक सुमन रघुनाथन ने कहा, 'यह उन आप्रवासियों को दंडित करना होगा जो सही तरीके से सरकारी सुविधाओं का लाभ उठा रहे हैं। इसके वे हकदार हैं। नए नियम ऐसे आप्रवासी परिवारों को नागरिकता और बुनियादी जरूरतों में से किसी एक के चुनाव के लिए विवश करने जैसा होगा।' क्या है ग्रीन कार्ड ग्रीन कार्ड पाने वाले को अमेरिका में स्थायी रूप से बसने और काम करने का अधिकार मिल जाता है। यह कार्ड पाने के लिए गत अप्रैल तक छह लाख से ज्यादा भारतीय आप्रवासियों ने आवेदन कर रखा था।

ट्रंप प्रशासन अमेरिका की ग्रीन कार्ड नीति में बड़े बदलाव की तैयारी में है। इससे अमेरिका में स्थायी तौर पर बसने की चाह रखने वाले दक्षिण एशियाई देशों खासतौर से भारत के नागरिकों को बड़ा झटका लग सकता है। अमेरिका …

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पाकिस्तान विदेश मंत्री कुरैशी के दावे की एक बार फिर धज्जियाँ उडाई अमेरिका ने…

व्हाइट हाउस का कहना है कि न्यूयार्क में आयोजित एक भोज के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी के साथ केवल हाथ मिलाया था. हालांकि, कुरैशी ने दावा किया कि दोनों नेताओं के बीच ‘अनौपचारिक भेंट’’ हुई जिसमें उन्होंने द्विपक्षीय संबंधों पर चर्चा की. यह घटना मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक से इतर दोपहर में आयोजित एक भोज के दौरान हुई. पाकिस्तानी मीडिया से एक अधिकारिक साक्षात्कार के दौरान कुरैशी ने उसे ट्रंप के साथ एक ‘अनौपचारिक मुलाकात’ बताते हुए कहा कि दोनों के बीच द्विपक्षीय संबंधों से जुड़े मुद्दों पर चर्चा हुई. कुरैशी ने पाकिस्तान टेलीविजन से कहा, ‘मैंने स्वागत भोज में राष्ट्रपति ट्रंप से मुलाकात की, जहां मेरे पास उनके साथ पाकिस्तान-अमेरिका संबंधों पर चर्चा करने का अवसर था. मैंने उनसे अतीत की तरह दोबारा दोनों देशों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंध विकसित करने का अनुरोध किया.’ पीटीवी की रिपोर्ट का हवाला देते हुये डॉन और पाकिस्तान ट्रिब्यून सहित कई मीडिया संगठनों ने ‘अनौपचारिक मुलाकात’ की खबर प्रकाशित की है. सरकारी संवाद एजेंसी एसोसिएट प्रेस पाकिस्तान के मुताबिक, कुरैशी को ट्रंप से एक ‘सकारात्मक प्रतिक्रिया’ मिली. ट्रंप ने कहा कि वे द्विपक्षीय संबंधों का ‘‘पुनर्निर्माण’’ करना चाहते हैं. हालांकि, व्हाइट हाउस का कहना है कि दोपहर के भोज के दौरान दोनों नेताओं ने सिर्फ हाथ मिलाया था. राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के एक प्रवक्ता ने बताया, ‘अन्य विश्व नेताओं के साथ दोपहर के एक भोज के दौरान दोनों ने सिर्फ हाथ मिलाये थे.’ ट्रंप के कार्यक्रम पर नजर रखने वाले सूत्रों ने न्यूयार्क में पुष्टि की कि ट्रंप का कुरैशी के साथ कोई बैठक नहीं हुई थी और इसकी कभी कोई योजना निर्धारित नहीं थी.

व्हाइट हाउस का कहना है कि न्यूयार्क में आयोजित एक भोज के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी के साथ केवल हाथ मिलाया था. हालांकि, कुरैशी ने दावा किया कि दोनों नेताओं के बीच ‘अनौपचारिक …

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संयुक्त राष्ट्र महासभा के उद्घाटन सत्र में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपनी तारीफों के पुल बांधते दिखे

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप संयुक्त राष्ट्र महासभा के उद्घाटन सत्र में अपनी तारीफों के पुल बांधते दिखे. उन्होंने कई ऐसी बातें कहीं जिनमें वो बिना रुके खुद के बारे में अच्छा-अच्छा बोले जा रहे थे. ट्रंप ने कहा, "आज, मैं यूएन जनरल असेंबली के सामने उस अभूतपूर्व विकास की बात करने के लिए  खड़ा हूं जो हमने हासिल किया है. मेरे शासनकाल में वो चीजें की गई हैं जो अमेरिका के इतिहास में पहले कभी नहीं की गईं." ट्रंप ने बताया फेक न्यूज़ ऐसी बातें सुनने के बाद हॉल ठहाकों से गूंज उठा जिसके बाद ट्रंप ने झेंपते हुए कहा कि उन्हें ऐसा प्रतीक्रिया की उम्मीद नहीं थी. घटना की चर्चा पूरे विश्व में हो रही है जिसके बाद अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का कहना है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा के उद्घाटन सत्र में तमाम देशों के शासनाध्यक्षों की जो हंसी पूरी दुनिया ने सुनी, वो उनके लिए नहीं थी. वो सभी लोग उनपर नहीं बल्कि उनके साथ हंस रहे थे. राष्ट्रपति ट्रंप ने शासनाध्यक्षों के उनपर हंसने की खबर को झूठ बताया है. एक बार फिर बता दें कि महासभा में जैसे ही ट्रंप ने अपने शासनकाल में हुई अमेरिकी की ऐतिहासिक आर्थिक प्रगति की बात की, सभी हंस पड़े. बुधवार को ट्रंप ने कहा, ‘‘वे लोग मुझपर नहीं हंस रहे थे. वे लोग मेरे साथ हॅंस रहे थे.’’ उन्होंने कहा, ‘‘हमें मजा आया. वो मेरे ऊपर नहीं हंस रहे थे.’’ ट्रंप ने कहा, ‘‘फेक न्यूज़ में कहा गया कि लोग राष्ट्रपति ट्रंप पर हंस रहे थे. वो मेरे ऊपर नहीं हंस रहे थे. लोगों को मेरे साथ मजा आया. हम साथ में हंस रहे थे. हमें मजा आया. मैंने जो किया है, वह उसका सम्मान करते हैं.’’

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप संयुक्त राष्ट्र महासभा के उद्घाटन सत्र में अपनी तारीफों के पुल बांधते दिखे. उन्होंने कई ऐसी बातें कहीं जिनमें वो बिना रुके खुद के बारे में अच्छा-अच्छा बोले जा रहे थे. ट्रंप ने कहा, “आज, …

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चीन नही चाहता था, मैं चुनाव जीतूं ” डोनाल्‍ड ट्रंप बोले” जानिए पूरी खबर…

अमेरिकी चुनाव में रूस की दखलंदाजी का मामला अभी सुलझा भी नहीं है कि डोनाल्‍ड ट्रंप ने अब चीन पर चुनाव प्रभावित करने का गंभीर आरोप लगा दिया है। ट्रंप का मानना है कि चीन नहीं चाहता कि आने वाले चुनाव में वह जीत हासिल करें। अमेरिकी राष्‍ट्रपति ने कहा कि वह पहले राष्‍ट्रपति हैं जिसने चीन को ट्रेड पर चैलेंज दिया है। यूनाइटेड नेशन सिक्यॉरिटी काउंसिल के सत्र में डोनाल्‍ड ट्रंप ने बुधवार को चीन पर अगामी मध्यावधि चुनाव में अपनी पार्टी रिपब्लिकन के खिलाफ काम करने का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि दोनों देशों के बीच चल रहे 'ट्रेड वॉर' की वजह से चीन चुनाव में उन्हें हारते हुए देखना चाहता है। ट्रंप ने कहा कि ये बेहद अफसोसजनक है कि 2018 में होने वाले चुनाव में चीन हस्तक्षेप कर मेरे प्रशासन के खिलाफ काम कर रहा है।' ट्रंप यहीं नहीं रुके, आगे उन्‍होंने कहा, 'दरअसल, चीन मुझे या मेरी पार्टी को अब जीतते हुए नहीं देखना चाहता, इसकी वजह चीन को ट्रेड पर चुनौती देने वाला मैं पहला राष्ट्रपति हूं। आज से पहले चीन को किसी राष्‍ट्रपति से ऐसी चुनौती नहीं मिली है।' हालांकिे चीन किन हथकंडों से अमेरिका के चुनाव प्रभावित कर रहा है या कर सकता है, इसके बारे में ट्रंप ने ज्यादा जानकारी नहीं दी। गौरतलब है कि अमेरिका और चीन के बीच चल रहे ट्रेड वॉर का पूरे विश्‍व पर प्रभाव पड़ रहा है। इस हफ्ते अमेरिका ने चीन पर नए टैरिफ लगाए हैं। ऐसे में नहीं लगता कि अभी ये ट्रेड वॉर थमेगा। इस बीच चीन के डिप्‍टी नेगोशिएटर वांग शोवेन ने हाल ही में कहा कि किसी ऐसे देश के साथ कैसे बातचीत हो सकती है जो हमारी गर्दन पर चाकू रखे हुए हो। उन्‍होंने यह बात बीजिंग में एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान कही है। इस दौरान उन्‍होंने चीन को अमेरिका से पीडि़त के तौर पर बताया है। लेकिन अमेरिका अब उल्‍टे चीन पर गंभीर आरोप लगा रहा है।

अमेरिकी चुनाव में रूस की दखलंदाजी का मामला अभी सुलझा भी नहीं है कि डोनाल्‍ड ट्रंप ने अब चीन पर चुनाव प्रभावित करने का गंभीर आरोप लगा दिया है। ट्रंप का मानना है कि चीन नहीं चाहता कि आने वाले …

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राफेल डील के सौदे पर रक्षा मंत्रालय में थे मतभेद, हुआ बड़ा खुलासा… 

राफेल सौदे के बारे में कुछ नई जानकारियां सामने आई हैं. सूत्रों ने दावा किया है कि मोदी सरकार का राफेल सौदा यूपीए से 1.6 अरब डॉलर सस्ता है. लेकिन साथ ही यह खबर भी मिली है कि रक्षा मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने एनडीए सरकार के सौदे पर आपत्ति की थी और इसको लेकर रक्षा मंत्रालय में मतभेद थे. सूत्रों के अनुसार रक्षा मंत्रालय में तत्कालीन संयुक्त सचिव ने 36 राफेल विमानों की खरीद के लिए कैबिनेट नोट को आगे बढ़ाने से इंकार कर दिया था और इस पर डिसेंट नोट यानी असंतोष की टिप्पणी की थी. लेकिन उनके इस नोट को खारिज करते हुए कैबिनेट नोट को आगे बढ़ा दिया गया. उनका यह डिसेंट नोट बेंचमार्क कीमत को लेकर था. एक वर्ग बेंचमार्क कीमत 500 करोड़ यूरो तय करना चाहता था, लेकिन इस बैठक में अंतत: सौदे की बेंचमार्क कीमत 820 करोड़ यूरो तय की गई. लेकिन जब इसके आधार पर विमान खरीदने को मंजूरी देते हुए कैबिनेट नोट को आगे बढ़ाया गया तो इसके विरोध में एक अफसर छुट्टी पर चले गए. सरकार ने फ्रांस के साथ हुए डील की शर्तों के मुताबिक इन आंकड़ों का खुलासा नहीं किया है. लेकिन अब देश में इस पर काफी विवाद की स्थ‍िति को देखते हुए सरकार आंकड़ों को सार्वजनिक करने के लिए फ्रांस सरकार से आग्रह कर सकती है. कतर को सस्ता विमान मिलने पर वायु सेना का कहना है कि उसका फ्रांस के साथ कोई ऑफसेट समझौता नहीं है और उसने सिर्फ बेसिक एयरक्राफ्ट लेने का सौदा किया है. इस तरह हुआ मोलतोल सूत्रों के अनुसार, मुताबिक यूपीए सरकार को 18 फ्लाइवे कंडीशन वाले विमान 688 करोड़ रुपये प्रति विमान के दर से मिलने वाले थे. यूपीए सरकार ने 126 लड़ाकू विमानों के लिए सौदा किया था. इसमें से 18 फ्लाइवे यानी उड़ने के लिए तैयार विमान 688 करोड़ रुपये प्रति विमान कीमत से लिए जाने थे. 108 विमान एचएएल में बनने थे और यह प्रति विमान 911 करोड़ रुपये के हिसाब से मिलते, जिसमें ऑफसेट भी शामिल था. साल 2013 में यूरो फाइटर ने कुछ चीजों पर 20 फीसदी डिस्काउंट की बात की, लेकिन ऑर्डर में देरी और महंगाई आदि को जोड़ने की वजह से राफेल की कीमत कम नहीं की गई. इस बात पर हुआ फ्रांस से मतभेद साल 2014 में बातचीत का सिलसिला टूट गया, क्योंकि इस बात पर विवाद था कि भारत में 108 विमान बनाने के लिए कितने मानव घंटे श्रम की जरूरत होगी. फ्रांस की गुणना के मुताबिक इसमें 3.1 करोड़ मैन ऑवर लगने थे, जबकि एचएएल का दावा था कि इसमें 10 करोड़ मैन ऑवर लगेंगे. इसी साल भारत ने पुराने कॉन्ट्रैक्ट को रद्द कर दिया और नए सिरे से बातचीत शुरू की. इस तरह से सस्ता साबित हुआ सौदा भारत ने 36 विमान खरीदने के लिए फ्रांस के साथ अंतर-सरकारी समझौता किया. यूपीए के दौर की 18 विमान खरीद के हिसाब से 36 विमानों की बेसिक कीमत 950.3 करोड़ यूरो होती थी, लेकिन मोदी सरकार ने बातचीत कर इसकी अंतिम कीमत सिर्फ 788.9 करोड़ यूरो तय की. इसमें से भी फ्रांस 50 फीसदी ऑफसेट के लिए निर्धारित करने पर राजी हुआ, यानी वह इसका 50 फीसदी भारत में निवेश करेगा. भारत सरकार का यह भी कहना है कि इस कीमत के भीतर ही भारत की जरूरतों के मुताबिक विमान में 13 बदलाव किए जाने हैं. इस तरह सरकार का दावा है कि यह सौदा यूपीए से 1.6 अरब डॉलर सस्ता है.

राफेल सौदे के बारे में कुछ नई जानकारियां सामने आई हैं. सूत्रों ने दावा किया है कि मोदी सरकार का राफेल सौदा यूपीए से 1.6 अरब डॉलर सस्ता है. लेकिन साथ ही यह खबर भी मिली है कि रक्षा मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी …

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एमैनुएल मैक्रों राफेल डील पर बोले यह यह सौदा दोनों सरकारों के बीच हुआ था, तब मैं राष्ट्रपति नहीं था…   

फ्रांस के राष्ट्रपति एमैनुएल मैक्रों ने कहा है कि राफेल करार ‘सरकार से सरकार’ के बीच तय हुआ था और भारत एवं फ्रांस के बीच 36 लड़ाकू विमानों को लेकर जब अरबों डॉलर का यह करार हुआ, उस वक्त वह सत्ता में नहीं थे।  संयुक्त राष्ट्र महासभा के सत्र के इतर एक प्रेस कांफ्रेंस में मैक्रों से पूछा गया था कि क्या भारत सरकार ने किसी वक्त फ्रांस या फ्रांस की दिग्गज एयरोस्पेस कंपनी दसाल्ट से कहा था कि उन्हें राफेल करार के लिए भारतीय साझेदार के तौर पर रिलायंस को चुनना है। भारत ने करीब 58,000 करोड़ रुपए की लागत से 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद के लिए पिछले साल सितंबर में फ्रांस के साथ अंतर-सरकारी समझौते पर दस्तखत किए थे। इससे करीब डेढ़ साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पेरिस यात्रा के दौरान इस प्रस्ताव की घोषणा की थी। इन विमानों की आपूर्ति सितंबर 2019 से शुरू होने वाली है।  पिछले साल मई में फ्रांस के राष्ट्रपति बने मैक्रों ने मंगलवार को पत्रकारों को बताया, ‘‘मैं बहुत साफ-साफ कहूंगा। यह सरकार से सरकार के बीच हुई बातचीत थी और मैं सिर्फ उस बात की तरफ इशारा करना चाहूंगा जो पिछले दिनों प्रधानमंत्री (नरेंद्र) मोदी ने बहुत स्पष्ट तौर पर कही।’’  मैक्रों ने राफेल करार पर विवाद पैदा होने के बाद अपनी पहली प्रतिक्रिया में कहा, ‘‘मुझे और कोई टिप्पणी नहीं करनी। मैं उस वक्त पद पर नहीं था और मैं जानता हूं कि हमारे नियम बहुत स्पष्ट हैं।’’  फ्रांसीसी राष्ट्रपति ने इस बात पर जोर दिया कि यह सरकार से सरकार के बीच हुई बातचीत थी और ‘‘यह अनुबंध एक व्यापक ढांचे का हिस्सा है जो भारत एवं फ्रांस के बीच सैन्य एवं रक्षा गठबंधन है।’’  उन्होंने कहा, ‘‘यह मेरे लिए बेहद अहम है, क्योंकि यह सिर्फ औद्योगिक संबंध नहीं बल्कि एक रणनीतिक गठबंधन है। मैं बस उस तरफ ध्यान दिलाना चाहूंगा जो पीएम मोदी ने इस मुद्दे पर कहा है।’’  राफेल करार के मुद्दे पर भारत में बड़ा विवाद पैदा हो चुका है। यह विवाद फ्रांस की मीडिया में आई उस खबर के बाद पैदा हुआ जिसमें पूर्व फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने कहा कि राफेल करार में भारतीय कंपनी का चयन नई दिल्ली के इशारे पर किया गया था।  ओलांद ने ‘मीडियापार्ट’ नाम की एक फ्रांसीसी खबरिया वेबसाइट से कहा था कि भारत सरकार ने 58,000 करोड़ रुपए के राफेल करार में फ्रांसीसी कंपनी दसाल्ट के भारतीय साझेदार के तौर पर उद्योगपति अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस डिफेंस के नाम का प्रस्ताव दिया था और इसमें फ्रांस के पास कोई विकल्प नहीं था।  भारत में विपक्षी पार्टियों ने ओलांद के इस बयान के बाद केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को घेरा और उस पर करार में भारी अनियमितता का आरोप लगाया। कांग्रेस की अगुवाई में विपक्षी पार्टियों ने आरोप लगाया है कि मोदी सरकार ने एयरोस्पेस क्षेत्र में कोई पूर्व अनुभव नहीं होने के बाद भी रिलायंस डिफेंस को साझेदार चुनकर अंबानी की कंपनी को फायदा पहुंचाया।   

फ्रांस के राष्ट्रपति एमैनुएल मैक्रों ने कहा है कि राफेल करार ‘सरकार से सरकार’ के बीच तय हुआ था और भारत एवं फ्रांस के बीच 36 लड़ाकू विमानों को लेकर जब अरबों डॉलर का यह करार हुआ, उस वक्त वह …

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अमेरिकन यूनिवर्सिटीज को किया अरबों का दान, भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक दान में भी है सबसे आगे 

भारत में रहें या ना रहें भारतीय मूल के नागरिक विदेश में रह कर भी हर क्षेत्र में अपने काम का लोहा मनवाते हैं. जब दान देने की बात आई तो अमेरिका में बसे भारतीय वहां भी इस काम में सबसे आगे रहें . अमेरिकी भारतीयों ने 1.2 अरब डॉलर की राशि वहां के विश्वविद्यालयों के विकास के लिए दान किया है. भारतीय अमेरिकी नागरिकों ने 2000 से 2018 के बीच अमेरिका के 37 विश्वविद्यालयों को 1.2 अरब डॉलर की राशि दान में दी है. गैर-लाभकारी संगठन इंडियास्पोरा के अनुसार इनमें से 68 दान राशि 10 लाख डॉलर से अधिक थी. 'भारतीय अमेरिकी नागरिकों की सफलता का पूरी दुनिया पर अर्थपूर्ण प्रभाव' का अध्ययन करने वाली संस्था इंडियास्पोरा ने पहली बार अपनी परियोजना ‘मॉनिटर ऑफ यूनिवर्सिटी गिविंग’ की रिपोर्ट जारी की है. इस संबंध में सिलिकॉन वैली में रहने वाले समाजसेवी और वेंचर कैपिटलिस्ट एम. आर. रंगास्वामी का कहना है कि उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भारतीय अमेरिकियों द्वारा किए गए दान की सूचना देने के लिए यह रिपोर्ट जारी की गयी है. इंडियास्पोरा की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले रंगास्वामी का कहना है कि इसे जारी करने का एक ही मकसद है कि लोग यह जान सकें कि कैसे भारतीय अमेरिकी नागरिक अपने नए घर में उच्च शिक्षा के क्षेत्र की मदद कर रहे हैं. उनका कहना है कि अमेरिका में भारतीय सबसे शिक्षित समुदाय हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, 50 लोगों ने 68 दान किए जिनकी राशि 10 लाख डॉलर या उससे ज्यादा थी. इनमें से कई लोगों ने एक से ज्यादा बार दान किया. इस रिपोर्ट के मुताबिक, सरकारी संस्थानों के मुकाबले निजी शिक्षण संस्थानों को ज्यादा दान मिला है. अनुपात में देखें तो निजी शिक्षण संस्थानों को जहां पांच डॉलर की राशि मिली है वहीं सरकारी संस्थानों को महज दो डॉलर मिले. रिपोर्ट में कहा गया कि कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी, लॉस एंजिलिस को सबसे ज्यादा दान मिला है. वहीं हार्वर्ड यूनिवर्सिटी और बोस्टन यूनिवर्सिटी दूसरे स्थान पर रहे हैं.

भारत में रहें या ना रहें भारतीय मूल के नागरिक विदेश में रह कर भी हर क्षेत्र में अपने काम का लोहा मनवाते हैं. जब दान देने की बात आई तो अमेरिका में बसे भारतीय वहां भी इस काम में सबसे आगे …

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नेल्सन मंडेला को भारत रत्न मानते हैं हम सुषमा स्वराज ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में बोला:   

संयुक्त राष्ट्र महासभा में बोलीं सुषमा, नेल्सन मंडेला को भारत रत्न मानते हैं हम

विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने मंगलवार को यहां कहा कि दक्षिण अफ्रीका के दिवंगत राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला की विचारधारा दुनिया में पहले से ज्यादा प्रासंगिक हैं। ‘मदीबा’ के नाम से मशहूर मंडेला के साथ भारत के मजबूत रिश्ते का जिक्र …

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ट्रम्प बोले अमेरिका उसी देश का साथ देगा जिसको वह अपना सहयोगी मानता है भारत कि तारीफ़ में कुछ ऐसा बोला 

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने मंगलवार को कहा कि अमेरिका केवल उन्हीं देशों को सहायता देगा जिन्हें वह अपना सहयोगी मानता है. ट्रम्प ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक भाषण में कहा कि हम देखेंगे कि कहां काम हो रहा है, कहां काम नहीं हो रहा है. साथ ही उन्होंने कहा कि हम इस बात का भी खयाल रखेंगे, 'क्या जो देश हमारे डॉलर और हमारी सुरक्षा लेते हैं, वे हमारे हितों का ख्याल रखते हैं या नहीं.' उन्होंने कहा, 'आगे बढ़ते हुए हम केवल उन्हीं लोगों को विदेशी सहायता देने जा रहे हैं जो हमारा सम्मान करते हैं और स्पष्ट रूप से हमारे दोस्त हैं.' अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के 73वें सत्र में विश्व के नेताओं को संबोधित करते हुए भारत को एक 'मुक्त समाज' बताया और अपने लाखों लोगों को गरीबी से बाहर निकालने के लिए मंगलवार को भारत के प्रयासों की जमकर तारीफ की. संयुक्त राष्ट्र महासभा के मंगलवार को शुरू हुए जनरल डिबेट को दूसरी बार संबोधित करते हुए ट्रम्प ने कहा, 'भारत है, जहां का समाज मुक्त है और एक अरब से अधिक आबादी में लाखों लोगों को सफलतापूर्वक गरीबी से ऊपर उठाते हुए मध्यम वर्ग में पहुंचा दिया.' करीब 35 मिनट के संबोधन में उन्होंने कहा कि वर्षों से संयुक्त राष्ट्र महासभा के हॉल में इतिहास देखा गया. उन्होंने कहा कि हमारे समक्ष अपने देशों की चुनौतियों, अपने समय के बारे में चर्चा करने आए आए लोगों के भाषणों, संकल्पों और हर शब्दों एवं उम्मीदों में वहीं सवाल कौंधते हैं जो हमारे जेहन में उठते हैं. ट्रम्प ने कहा, 'यह सवाल है कि हम अपने बच्चों के लिए किस तरह की दुनिया छोड़कर जाएंगे और किस तरह का देश उन्हें उत्तराधिकार में मिलेगा.' उन्होंने कहा कि जो सपने यूएनजीए के हॉल में आज दिखे वे उतने ही विविध हैं जितने इस पोडियम पर खड़े लोग और उतने ही विविध हैं जितना संयुक्त राष्ट्र में दुनिया के देशों का प्रतिनिधित्व है. उन्होंने कहा, 'यह वास्तव में कुछ है. वास्तव में यह काफी महान इतिहास है.' ट्रम्प ने सऊदी अरब के साहसिक नये सुधारों और इस्राइली गणतंत्र की 70वीं जयंती का उदाहरण दिया.

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने मंगलवार को कहा कि अमेरिका केवल उन्हीं देशों को सहायता देगा जिन्हें वह अपना सहयोगी मानता है. ट्रम्प ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक भाषण में कहा कि हम देखेंगे कि कहां काम हो रहा …

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