करीब एक साल पहले कोविड-19 महामारी का पहला केस भारत में सामने आया। उसमें लगातार बढ़ोतरी होती देख विशेषज्ञों का खुद से भरोसा उठता दिखा। बातें होने लगीं कि देश में संक्रमण की स्थिति विकट हो जाएगी। कम स्वास्थ्य संसाधनों वाले देश में बड़ी संख्या में लोग काल कवलित होंगे। शब्दों के बुने डर के जाल में लोग किंचित फंसे भी, लेकिन हमारा नेतृत्व हमेशा आपदा में अवसर की तलाश करता रहा। एहतियाती कदमों के साथ इस महामारी से लड़ाई के लिए जरूरी चिकित्सकीय कदमों को उठाया जाता रहा। लॉकडाउन हुआ। पूरा देश छह महीने तक ठप रहा। जाहिर है कि इसका अर्थव्यवस्था और उसकी वृद्धि पर प्रतिकूल असर दिखा। जीडीपी में एक चौथाई की कमी तो विकास दर नकारात्मक हो गई।
अब साल भर के भीतर तस्वीर बदल गई। पहले से ही हमारा इस वायरस के प्रति प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत रहा। सर्वाधिक रिकवरी रेट और न्यूनतम मृत्युदर इसकी गवाही देते हैं। तमाम देशों के प्रतिकूल भारत इससे उबरता दिख रहा है। सोने पे सुहागा वाली स्थिति यह हो गई है कि यहां टीकाकरण भी शुरू हो गया है। अपनी खान-पान और प्रकृतिमय जीवनशैली के चलते पहले ही महामारी से लड़ाई का हमारा रिकॉर्ड दुनिया में सर्वश्रेष्ठ रहा है। अब हमारी वैक्सीन को भी दुनिया की सबसे कारगर और किफायती बताया जा रहा है। भारत में वैक्सीन लगाए जाने के बाद सिर्फ 0.001 फीसद को ही अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत पड़ी है। जबकि मॉडर्ना और फाइजर के वैक्सीन के लिए यह आंकड़ा 0.6 फीसद है।
कारगर वैक्सीन के तेज टीकाकरण के साथ पहले से मौजूद स्थायी प्रभाव इस जंग को भारतीयों के पक्ष में खड़ा कर रहे हैं। बदलती तस्वीर बता रही है कि महामारी के चलते अर्थव्यवस्था को जो नुकसान हुआ, उसकी भरपाई कर जल्द ही हम पांच टिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था का महत्वाकांक्षी लक्ष्य हासिल कर लेंगे। सर्वाधिक नुकसान मैन्युफैक्चरिंग और निर्यात में अहम भूमिका वाले सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग को हुआ। पर्यटन, उड्डयन और रियल एस्टेट जैसे तमाम क्षेत्रों की लंबी समय से दबी स्प्रिंग जब छूटेगी तो ऊंचाई पर जाने में उसे समय नहीं लगेगा। बस महामारी की वापसी नहीं होनी चाहिए। हम एहतियात बरतें और वैक्सीन लगवाएं बाकी काम नियति और नीति-नियंताओं पर छोड़ दें।