6. किसी की पगड़ी को ठोकर मारना, लांघना या भूमि पर रखना अपमान माना जाता है। युद्ध स्थल से यदि किसी की पगड़ी आ जाए तो समझा जाता है कि वह व्यक्ति वीरगति को प्राप्त हो गया।
7. किसी के पिता की मृत्यु पर 12वें दिन ज्येष्ठ पुत्र को पगड़ी बंधवाकर घर का उत्तराधिकारी घोषित किया जाता है। इसे पगड़ी की रस्म कहा जाता है।
8. किसी भी अतिथि के घर आने पर मेजबान पगड़ी बांधकर ही उसका स्वागत करने घर से बाहर आता है। बारात आने की सूचना देने वाले भाई को वधू पक्ष वाले आज भी पगड़ी बंधवाकर खुश करते हैं।
9. नंगे सिर सामने आना अपमानजनक एवं अपशकुन माना जाता है।
10. आज भी मांगलिक या धार्मिक कार्यों में साफा पहने जाने का प्रचलन है जिससे कि किसी भी प्रकार के रस्मोरिवाज में एक सम्मान, संस्कृति और आध्यात्मिकता की पहचान होती है। इसके और भी कई महत्व हैं। विवाह में घराती और बाराती पक्ष के सभी लोग यदि साफा पहनते हैं तो विवाह समारोह में चार चांद लग जाते हैं। इससे समारोह में उनकी एक अलग ही पहचान निर्मित होती है। अलग-अलग त्योहारों के लिए अलग-अलग पगड़ी पहनी जाती है। जैसे लाल किनारी वाली काली पगड़ी दिवाली के समय, लाल-सफेद पगड़ी फागुन में, चटक केसरिया पगड़ी दशहरे में, पीली पगड़ी बसंत पंचमी के समय, हलकी गुलाबी शरद पूर्णिमा की रात को पहनी जाती है।
साफा की प्रचलन : पगड़ी का इतिहास खासतौर पर राजपूत समुदाय से जुड़ा हुआ है। इसे पाग, साफा और पगड़ी कहा जाता है। यदि हम साफे की बात करें तो मालवा में अलग प्रकार का और राजस्थान में अलग प्रकार का साफा बांधा जाता है। इसे पगड़ी या फेटा भी कहते हैं। महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा, गुजरात में यह अलग होता है, तो तमिलनाडु में अलग। प्राचीनकाल और मध्यकाल में लगभग सभी भारतीय यह पहनते थे। राजस्थान में भी मारवाड़ी साफा अलग तो सामान्य राजस्थानी साफा अलग होता है। मुगलों ने अफगानी, पठानी और पंजाबी साफे को अपनाया। सिखों ने इन्हीं साफे को जड्डे में बदल दिया, जो कि उन्हें एक अलग ही पहचान देता है। सिक्खों में नीले, काले, सफेद और केसरिया रंगों की पगड़ी पहनी जाती है जबकि लाल पगड़ी अधिकतर शादी के मौके पर पहनी जाती है। मुसलामानों में भी पगड़ी पहनी जाती है। कहते हैं कि प्रोफेट मोहम्मद एक विशेष प्रकार की पगड़ी पहनते थे। हरी पगड़ी प्रकृति को समर्पित है। सहारा के रेगिस्थान में मुसलमान लोग पगड़ी इसलिए पहनते हैं क्योंकि वहां उन्हें तेज गर्मी और धूल-मिट्टी से बचना होता है। हालांकि मुस्लिम विद्वान सफेद पगड़ी धारण करते हैं।