रायबरेली के मुंशीगंज गोलीकांड के 100 वर्ष पूरे
रायबरेली। मुंंशीगंज गोलीकांड के 100 वर्ष पूरे हो गये। जालियावाला बाग के बाद ब्रिटिश सरकार ने रायबरेली में भी खूनी होली खेली थी। किसानों के खून से सई का पानी तक लाल हो गया था। क्रूरता और हिंसा की ऐसी इंतेहा थी कि ऐसा लग रहा था कि नदी में पानी नही खून बह रहा हो।अंग्रेजो की इसी हत्याकांड के कारण गणेशशंकर विद्यार्थी ने इसे दूसरे जालियावालाबाग की संज्ञा दी थी। उस समय के कई दस्तावेजों में हिंसा का यह वीभत्स रूप दर्ज है। ब्रिटिश सरकार की इस बर्बर कार्रवाई के बाद उनके खिलाफ़ जनता की आवाज और बुलंद हो उठी थी लेकिन जिस तरह से अपनी आवाज उठाने की कीमत किसानों ने चुकाई वह इतिहास में दर्ज है। अवध के जिलों खासकर रायबरेली में किसानों का आंदोलन चरम पर था। जमींदारो और अंग्रेजों के खिलाफ किसान लामबंद हो रहे थे।
किसानों के आंदोलन को दबाने के लिए अंग्रेजों की तरफ से दमनकारी कार्रवाई लगातार चल रही थी। इसी क्रम में 5 जनवरी 1921 को चंदनहिया में जनसभा कर रहे किसान नेता बाबा जानकी दास और अमोल शर्मा को तत्कालीन कलेक्टर एजी शेरिफ और चंदनिहा के तालुकेदार ने फर्जी आरोपों में गिरफ्तार करवा लिया और रायबरेली से लखनऊ जेल शिफ्ट कर दिया। यह सुनकर लोगो मे रोष फैल गया और अपने नेता की कुशलता जानने के लिए लाखो लोगों की भीड़ रायबरेली शहर की ओर चल पड़ी। 7 जनवरी 1921 को लोगो का आपार समूह मुंशीगंज गांव के पास सई के किनारे पहुंच गया। हालांकि कांग्रेस के तत्कालीन जिलाध्यक्ष मार्तण्ड वैद्य ने आंदोलन की बाबत कांग्रेस के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष मोतीलाल नेहरू को तार द्वारा पहले ही सूचित कर दिया गया था। जिससे मोतीलाल के निर्देश पर जवाहरलाल नेहरू भी रायबरेली पहुंच चुके थे।
उधर, प्रशासन ने सई की दूसरी तरफ भारी पुलिस बल बुला लिया था। जवाहर लाल नेहरू को किसानों से मिलने नही दिया जा रहा था। जानकर बताते है कि गोलीकांड की योजना पहले ही बना ली गई थी।करीब 9 बजे कलेक्टर एजी शेरिफ के निर्देश पर निहत्थे किसानों पर गोलियों की बौछार कर दी गई। किसानों के खून से सई का पानी लाल हो गया था। करीब सात सौ किसानों की हत्या की गई थी। गुलाम भारत का यह दूसरा बड़ा हत्याकांड था, जिसे जालियावालाबाग की संज्ञा दी गई। जवाहरलाल नेहरू ने इस कांड की चर्चा करते हुए इंडिपेंडेंट अखबार में लिखा है कि “मैंने तांगे में बेतरतीब रखी लाशें देखी जोकि सई नदी के पुल के पास खड़ा था। इन लाशों पर कपड़ा पड़ा था लेकिन टांगे निकली थी।” हालांकि इतिहास में इसकी चर्चा कम ही हुई और किसानों की यह शहादत फाइलों में दब कर रह गई।
प्रसिद्ध पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी ने इस गोलीकांड को दूसरा जालियावालाबाग कहा था। उनके अखबार प्रताप में सबसे पहले इस कांड की भयावहता की रिपोर्ट छपी थी। प्रसिद्ध पत्रकार व साहित्यकार बालकृष्ण शर्मा ने घटनास्थल पर जाकर इस गोली कांड की रिपोर्टिंग की थी। बाद में प्रताप के कई अंकों में इसकी विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी। अंग्रेज सरकार इससे बहुत नाराज हुई और तत्कालीन रायबरेली के जमींदार वीरपाल की तरफ से गणेशशंकर विद्यार्थी पर मानहानि का मुकदमा करवा दिया। बावजूद इसके विद्यार्थी झुके नही और इस गोली कांड की वीभत्सता को आमजनमानस के सामने रखा।