ऑनलाइन रिसर्च एजेंसियों के आंकड़े बताते हैं कि साल 2020 में मार्च से मई तक तीन महीनों में करीब पांच करोड़ लोगों ने कम से कम दो बार ऑनलाइन चिकित्सीय सेवाएं लीं। कोरोना से बचाव के लिए घर तक सिमटे भारतीयों ने डॉक्टर के पास गए बिना फोन, वीडियो कॉल, मैसेज या दूसरे ऑनलाइन माध्यमों के जरिये चिकित्सक की सलाह ली। टेलीमेडिसिन में मुख्यत: फोन या वीडियो कॉल पर चिकित्सक से परामर्श किया जाता है।
एसोचैम के मुताबिक चिकित्सा क्षेत्र का यह चलन आगे भी लंबे समय तक कायम रहने वाला है। आने वाले पांच साल में स्वास्थ्य सेवाओं के इस क्षेत्र का बाजार 37.20 हजार करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान है। दरअसल घर बैठे स्वास्थ्य सेवाएं लेने का यह बदलाव बड़ी आबादी वाले हमारे देश के लिए कई मायनों में अहम है। इससे न केवल अस्पतालों में मरीजों की संख्या घटेगी, बल्कि कई तरह के संक्रामक रोग फैलने की आशंका भी कम होगी।
टेलीमेडिसिन मॉडल के चलते अस्पताल जाने वाले मरीजों की संख्या आधी हो सकती है। अस्पताल जाकर डॉक्टर से सलाह लेने के मुकाबले घर बैठे डिजिटल माध्यमों पर परामर्श लेने में 30 फीसद कम खर्च आता है। यही वजह है कि यह आर्थिक रूप से किफायती और समय एवं भागदौड़ से बचाने वाला चिकित्सीय परामर्श का यह मॉडल लोगों को खूब पसंद आ रहा है। अनुमान यह भी है कि टेलीमेडिसिन मॉडल के कारण आने वाले पांच साल में 300-375 अरब रुपये की बचत हो सकती है। ऐसे में यह समझना मुश्किल नहीं कि हमारे देश में यह चलन समय के साथ और विस्तार पाएगा।
गौरतलब है कि लॉकडाउन के समय विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी टेलीमेडिसिन की ही सलाह दी थी। उसके मुताबिक 1970 में पहली बार टेलीमेडिसिन शब्द काम में लिया गया था जिसका अर्थ है दूर से इलाज करना।
निल्सन होल्डिंग्स के साथ इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया की रिपोर्ट ‘इंडिया इंटरनेट 2019’ के मुताबिक देश में मार्च महीने के आखिर तक 45.10 करोड़ मासिक सक्रिय इंटरनेट यूजर थे। अनुमान यह भी है कि 2020-30 तक मोबाइल फोन पर इंटरनेट यूजर्स की संख्या और भी तेजी से बढ़ेगी।
ऐसे में टेलीमेडिसिन की प्रक्रिया दूर बैठे हल की जा सकने वाली स्वास्थ्य समस्याओं से लड़ने में यकीनन मददगार बनेगी। आंकड़ों के अनुसार भारत में छह लाख डॉक्टर और 20 लाख नर्सो की जरूरत है। यह कटु सच है कि बड़ी आबादी वाले हमारे देश में जन-स्वास्थ्य सुविधाओं का हाल अच्छा नहीं है। ऐसे में टेलीमेडिसिन से हालात बेहतर करने में मदद मिल सकती है। इससे न केवल कार्यरत चिकित्सा कर्मियों पर काम का दबाव कम होगा, बल्कि ज्यादा से ज्यादा लोगों तक मेडिकल सुविधाओं की पहुंच भी बढ़ेगी।