राजनीति की चाल सीधी नहीं होती। लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) के सियासी पैंतरे से विपक्ष के पक्ष में माहौल बने या न बनें। किंतु इतना साफ है कि टूट के कगार पर खड़ी कांग्रेस (Congress) को लालू की चाल से फायदा हो रहा है, क्योंकि बिहार के वर्तमान राजनीतिक माहौल में तोडफोड़ का सबसे ज्यादा खतरा कांग्रेस पर ही मंडराते दिख रहा है। कांग्रेस के बिहार में कुल 19 विधायक हैं। इनमें 12 नए हैं, जो या तो पहली बार जीतकर आए हैं या चुनाव से पहले दूसरे दल से पाला बदलकर कांग्रेस का हाथ थामा है। ऐसे विधायकों पर प्रदेश नेतृत्व का पूरी तरह ऐतवार नहीं हो रहा है। आशंका तो सार्वजनिक है मगर समाधान नहीं सूझ रहा है।
कांग्रेस को राहत
ऐसे में लालू की चाल और सियासत के मौजूदा हाल से कांग्रेस को फिलहाल राहत है। कांग्रेस से जुड़े सूत्रों का दावा है कि कांग्रेस विधायकों को डर है कि उछल-कूद करने से उनका दांव उल्टा पड़ सकता है। भाजपा (BJP) और जदयू (JDU) में अगर खटपट बढ़ी और राजद (RJD) की कोशिशों को कामयाबी मिली तो पार्टी बदलने से नुकसान ही होगा। इसलिए व्याकुल विधायक भी मौके के इंतजार के पक्ष में हैं।
पहले कांग्रेस में जदयू ने की थी सेंधमारी
बिहार में तोडफ़ोड़ में विश्वास करने वाले दल कांग्रेस को सबसे आसान लक्ष्य इसलिए मानते हैं कि यह पहले भी कई बार टूटती रही है। अभी करीब दो साल पहले बिहार में जिनपर कांग्रेस को बचाने-बढ़ाने की जिम्मेवारी थी, उनके नेतृत्व में ही एक धड़ा टूटकर नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के साथ चला गया था। अशोक चौधरी (Ashok Chaudhary) कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष थे और 2015 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को उन्होंने अच्छी-खासी बढ़त भी दिलाई। चार से 27 पर पहुंचाया, लेकिन आलाकमान की उपेक्षा ने उन्हें इस तरह आहत किया कि उन्होंने दूसरा ठिकाना तलाशना ही मुफीद माना। अशोक चौधरी की संगठन क्षमता को देखते हुए नीतीश कुमार ने उन्हें जदयू का कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष बना दिया है। माना जा रहा है कि पुराने संबंधों के चलते कांग्रेस के कई लोग अभी भी उनके संपर्क में हैं। कुछ विधायकों की वफादारी नीतीश कुमार के प्रति भी है पर जदयू की मंशा अभी तोडफ़ोड़ से दूर रहने की है।
पांच सालों के लिए विधायकों को रोककर रखना आसान नहीं होगा
विधानसभा चुनाव से पहले भी प्रदेश में कांग्रेस टूट की कगार पर थी। हालांकि हालात ने बचा लिया, पर ग्रह-नक्षत्रों का असर कभी-कभी विपरीत भी पड़ता है। अभी जबतक बिहार में उथल-पुथल की राजनीति चल रही है, तबतक कांग्रेस को खतरा नहीं है, लेकिन हालात अगर अगले पांच वर्षों के लिए स्थिर हो गए तो कुछ प्राप्त करने की आस लगाए विधायकों को रोककर रखना आसान नहीं होगा।