बाकायदा पूरी थीम को थाली में परोस कर लखनऊ के पत्रकारों को अटल सम्मान देने की बात कहता रहा। पहला आग्रह 18 अगस्त 2018 तारीख को किया था। (गूगल दलील है।) करीब दस पंद्रह लोगों ने थोक के हिसाब से सैकड़ों को अटल सम्मान बांटने का नेक काम किया। लेकिन मैं इन्हें धन्यवाद नहीं दूंगा, क्योंकि इन तमाम लोगों ने मेरे गुड़ को गोबर बनाया है। मुझे फॉलो करने वालों ने मुझे कतई भी मुत्मइन नहीं किया। आपने पुरस्कृत होते लोगों का एनाउंसमेंट सुना होगा। फलां सौ मीटर रेस में सबसे आगे रहे। इन्होंने इस क्रिकेट मैच मे दो शतक लगाए। फलां फिल्म का फलां डायलॉग जनता ने खूब पसंद किया। इसलिए इस डायलॉग के राइटर को सम्मानित किया जाता है। मोगमबो ख़ुश हुआ। इस संवाद अदायगी यानी डॉयलॉग डिलेवरी के लिए अमरीशपुरी तमाम सम्मान पाए थे। इस सैनिक ने अकेला दर्जनभर दुश्मनों को खदेड़ने की जांबाज़ी दिखाई। अर्थशास्त्र पर इन्होंने ये काम किया इसलिए इन्हें नॉबेल पुरस्कार दिया जा रहा है। इस झुग्गी झोपड़ी में ये ये काम किया इसलिए समाजसेवा के उत्कृष्ट कार्यों के लिए अमुक शख्स सम्मानित हो रहे हैं…।
पत्रकारों को सम्मान देना है तो बताइए ना कि किस खबर के लिए आप सम्मान दे रहे हैं। किस अखबार में.. किस चैनल में या किस वेबसाइट में इन्हें पढ़कर पाठक इनके दीवाने हो जाते हैं। तमाम पत्रकार हैं जिन्होंने दशको काम किया। जिसकी तमाम खबरें चर्चा मे रहीं। बताइए ना कि कौन-कौन से संस्थानों में काम कर चुके हैं। काम और संस्थान का हवाला देकर दीजिए लाइफस्टाइल एचीवमेंट अवार्ड। लेकिन ये कैसे संभव है कि हम किसी खिलाड़ी को लेखक का अवार्ड कैसे दे सकते है। जो लोहार है उसे सुनार कैसे कह सकते हैं। जब आप किसी इंजीनियर को मेडिकल सेवाएं देने के लिए पब्लिक डोमेन पर पुरस्कृत करेंगे तो जाहिर सी बात है कि मेडिकल पेशे के लोग एतराज तो करेंगे ही और पूछेंगे कि इन्होंने कहां मेडिकल सेवाएं दीं।
इसलिए अपना समय और एनर्जी सही दिशा में लगाइए। इन दिनों “सच पर अटल” नाम का सम्मान दिया जा सकता है। जो लोग विपरीत स्थितियों में भी सच का दामन थामे हुए हैं,सच लिख-लिख कर झूठ का मुकाबला कर रहे हैं और रिस्क उठा रहे हैं’ ऐसे लोगों को सम्मानित कर इन्हें प्रोत्साहित कीजिए। इनका समर्थन कीजिए और मरती पत्रकारिता को आक्सीजन देने वालों का साथ दीजिए। अब ये मत कहिएगा कि आप दीजिए ना ऐसे अवार्ड। आप भी करवाइये सम्मान समारोह। आपको कौन रोके है ! इसका जवाब देता हूं- योजना तैयार ज़रूर की थी लेकिन समय ना मिलने के कारण उस पर अमल नहीं कर सका और दूसरों के हवाले कर दिया प्लान। दूसरों को ऐसे प्लान पर काम करने की हिदायत दे दी। और दूसरों ने मेरे गुड़ को गोबर कर दिया। दरअसल हर शख्स की जिन्दगी का समय अपने-अपने स्पेशलाइजेशन के खांचों में तैरता है। मैं आयोजक नहीं हूं, पत्रकार हूं। लिखने-पढ़ने से फुर्सत नहीं मिलती है।