वाराणसी सहित पूर्वांचल के कई जिलों में किसानों ने काले गेहूं की बुआई की
कैंसर जैसी बीमारी से लड़ने में मददगार होता है, आयरन भी भरपूर मात्रा में
वाराणसी। वैसे तो किसान अपनी परंपरागत खेती करने में ही विश्वास करता है, लेकिन अब बनारस के किसान परंपरागत खेती की बजाए उससे हटकर खेती करने का मिजाज बना चुके है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अपील पर काले चावल की कमाई से इतराएं किसानों की रुचि अब काले गेहूं में है। वाराणसी सहित पूर्वांचल के कई जिलों में किसानों ने इस बार काले गेहूं की बुआई की है। सोनहर के किसान रामअवध का कहना है कि डिमांड को देखते हुए इसबार इस दुर्लभ काले गेहूं खेती की है। बदायूं के उनके एक रिश्तेदार ने बीते सीजन में काले गेहूं की खेती से लाखों रुपये की कमाई की है। पीएम मोदी के आह्वान और रिश्तेदार के सुझाव पर इस बार काले गेहूं की बुआई की है। उनका कहना है कि काला गेहूं न सिर्फ उनकी कमाई का जरिया बनेगा, बल्कि यह गेहूं सामान्य गेहूं से कहीं ज्यादा पौष्टिक है और बीमारी से लड़ने मे मददगार होता है। इसमें आयरन भी अत्यधिक मात्रा में होता है। इसके बुआई का सही समय 15 से 30 नवंबर है।
दरअसल, बनारस के किसान नयी किस्म की खेती करके कामयाबी हासिल कर रहे हैं। उन्हीं में से एक है रामअवध, जो वर्षों से मिर्च, टमाटर, मटर की खेती कर रहे हैं लेकिन इस बार उन्होंने काले गेहूं की भी खेती की है। उनके रिश्तेदार जगमोहन ने अपनी 20 बीघा मे 5 किं्वटल गेहूं लगाया था जिससे 200 किं्वटल काले गेहूं की पैदावार हुई। इस तरह उसे साधारण गेहूं की अपेक्षा चार गुना फायदा हुआ। किसान इस गेहूं को 7 से 8 हजार रुपये किं्वटल में आसानी से बेच रहे हैं, जबकि साधारण गेहूं का भाव 2 हजार रुपये किं्वटल होता है। इस तरह साधारण गेहूं की अपेक्षा काले गेहूं से चार गुना ज्यादा पैसा मिल रहा है। बीते साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काले धान और काले गेहूं की खेती करने का किसानों से आह्वान किया था। यही कारण है कि बनारसी किसानों की रुचि में अब काला गेहूं की फसल का नाम भी जुड़ गया है। हाल यह है कि बनारस के कई किसान काला गेहूं लगा चुके हैं और कई लगाने की तैयारी में जुटे हैं।
प्रचूर मात्रा में है औषधीय गुण : गेहूं का उपयोग अब तक भोजन में सभी ने किया है। अब वैज्ञानिकों ने काला गेहूं तैयार किया है। यह किसानों की आमदनी बढ़ाने के साथ ही औषधि के रूप में भी लाभकारी होगा। इसमें औषधीय गुणों की मात्रा बहुत ज्यादा है। यह कैंसर, ब्लड प्रेशर, मोटापा, शुगर, कोलेस्ट्रोल, दिल की बीमारी, तनाव वाले पेशेंट के लिए बहुत अच्छा गेहूं है। यह डायबिटीज वाले लोगों के लिए फायदेमंद है। गेहूं जल्दी पच जाता है। इसका स्वाद भी शरबती गेहूं जैसा बताया गया है। कई बीमारियों में फायदेमंद है काले गेहूं से बनी रोटी। पिसवाने पर इसका आटा काला-सफेद रंग का होता है। रोटी बनवाने पर गुलाबी रंग की तैयार होती है। ब्लड सर्कुलेशन सामान्य रखता है। ट्राइग्लिसराइड तत्वों की मौजूदगी के कारण इसके इस्तेमाल से दिल की बीमारियों का खतरा कम होता है। मैग्नीशियम उच्च मात्रा में पाए जाने से शरीर में कोलेस्ट्राल का स्तर सामान्य बना रहता है।
खोज : इस गेहूं की रिसर्च नेशनल एग्री फूड बायोटेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट नाबी मोहाली पंजाब ने की है। कृषि वैज्ञानिक डॉ. मोनिका गर्ग ने 2010 से रिसर्च की थी। इसके बाद काला गेहूं तैयार किया है। इसलिए इस गेहूं का नाम भी नाबी एमजी रखा है। बनारस के चांदपुर स्थित अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (इरी) के नर्सरी में काले गेहूं के बीज पर शोध शुरू हो गया है। इसके बाद किसानों में इसके बीज का वितरण किया जाएगा। बनारस सहित पूर्वांचल के पर्यावरण के अनुकूल और उत्पादन क्षमता पर काले गेहूं के बीज का शोध किया जा रहा है। शोध के पहले चरण के लिए चांदपुर स्थित इरी के नर्सरी में 25 हजार वर्ग फीट में काले गेहूं की बुआई की गई है।
कैंसर से बचाएगा, जल्दी नहीं होंगे बुजुर्ग : किसान ने बताया कि वैज्ञानिकों ने रिसर्च कर गेहूं के बारे में बताया कि खाना खाने के बाद जब हमारे शरीर में ऑक्सीजन किसी अन्य पदार्थ के साथ मिलकर फ्री रेडिकल्स बनाते हैं। इससे त्वचा को नुकसान होता है, त्वचा सुकुड़ने लगती है और लोग जल्दी बुजुर्ग हो जाते हैं। कई बार लोग कैंसर जैसी बीमारी के शिकार हो जाते हैं। अगर यह गेहूं इस्तेमाल करते हैं तो इन बीमारियों से बच सकेंगे।
एनथोसाइनिन की मात्रा होती है अधिक : काला गेहूं में सामान्य गेहूं के अनुसार एनथोसाइनिन की मात्रा अधिक होती है। सामान्य गेहूं में पिगमेंट की मात्रा पांच से 15 पीपीएम होती है, जबकि काले गेहूं में पिगमेंट मात्रा 40 से 140 पीपीएम होती है। एनथोसाइनिन एंटीऑनक्सीडेंट का काम करती है। इसमें जिंक की मात्रा भी अधिक होती है।
किसानों के लिए फायदेमंद : किसान अगर काला गेहूं करते हैं, तो दोनों ओर से लाभदायक है। किसान अगर खाने में इस्तेमाल करते हैं तो स्वस्थ्य रहेंगे और बेचते भी हैं, तो किसान को रेट ज्यादा मिलेगा। बाजार में सामान्य गेहूं 1800 से 1900 रुपये हैं। काला गेहूं बीज में 70 से 170 रुपये किलो बिक रहा है। बाजार में सामान्य तौर पर बेंचेगे तो कम से कम 3500 रुपये प्रति किं्वटल मिल जाएंगे।
अभी नाबी ले रही गेहूं : काला गेहूं अभी बाजार में नहीं बेचा जा रहा। एक किसान दूसरे किसान से जरूर ले सकता है या फिर रिसर्च सेंटर ही दे रहा है। रिसर्च सेंटर जल्द ही बाजार में कंपनियां उतारने जा रहा है। इसके बाद यह बाजार में बिकेगा और मिलेगा। इसलिए अभी काले गेहूं को रिसर्च सेंटर ही लेगा। नाबी के पास इसका पेटेंट भी है।
बीएचयू में भी हो रही काले गेहूं की खेती : बीएचयू कृषि विज्ञान संस्थान के प्रोफेसर पीके सिंह ने बताया कि काले गेहूं में पौष्टिकता अधिक मिलती है। यह बात सही है। इसके अलावा और अन्य खूबियों पर अध्ययन किया जा रहा है। मेरठ और हरियाणा के विश्वविद्यालयों में इस पर शोध भी चल रहा है। बीएचयू कृषि विज्ञान संस्थान के कृषि फार्म पर काले गेहूं की खेती की जा रही है। जिससे उत्पादन क्षमता की सही जानकारी मिल सके।
क्यों होता है काला : शुरू में इसकी बालियां भी आम गेहूं जैसी हरी होती हैं, पकने पर दानों का रंग काला हो जाता है। फलों, सब्जियों और अनाजों के रंग उनमें मौजूद प्लांट पिगमेंट या रंजक कणों की मात्रा पर निर्भर होते हैं। काले गेहूं में एंथोसाएनिन नाम के पिगमेंट होते हैं। एंथोसाएनिन की अधिकता से फलों, सब्जियों, अनाजों का रंग नीला, बैंगनी या काला हो जाता है। एंथोसाएनिन नेचुरल एंटीऑक्सीडेंट भी है। इसी वजह से यह सेहत के लिए फायदेमंद माना जाता है। आम गेहूं में एंथोसाएनिन महज 5पीपीएम होता है, लेकिन काले गेहूं में यह 100 से 200 पीपीएम के आसपास होता है। एंथोसाएनिन के अलावा काले गेहूं में जिंक और आयरन की मात्रा में भी अंतर होता है। काले गेहूं में आम गेहूं की तुलना में 60 फीसदी आयरन ज्यादा होता है। हालांकि, प्रोटीन, स्टार्च और दूसरे पोषक तत्व समान मात्रा में होते हैं।
काला चावल भी होता है : गेहूं ही नहीं काला चावल भी होता है। इंडोनेशिअन ब्लैक राइस और थाई जैसमिन ब्लैक राइस इसकी दो जानीमानी वैरायटी हैं। म्यामांर और मणिपुर के बॉर्डर पर भी ब्लैक राइस या काला चावल उगाया जाता है। इसका नाम है चाक-हाओ। इसमें भी एंथोसाएनिन की मात्रा ज्यादा होती है। चंदौली में इसकी अब बड़े पैमाने पर खेती होती है बल्कि इक्सपोर्ट भी होने लगा है।
खेती करने का तरीका : काले गेहूं की बुवाई समय से एवं पर्याप्त नमी पर करना चाहिए। देर से बुवाई करने पर उपज में कमी होती है। जैसे-जैसे बुवाई में विलम्ब होता जाता है, गेहूं की पैदावार में गिरावट की दर बढ़ती चली जाती है। दिसंबर में बुवाई करने पर गेहूं की पैदावार 3 से 4 कु प्रति हे एवं जनवरी में बुवाई करने पर 4 से 5 कु प्रति हे0 प्रति सप्ताह की दर से घटती है। गेहूं की बुवाई सीडड्रिल से करने पर उर्वरक एवं बीज की बचत की जा सकती है। पंक्तियों में बुवाई करने पर सामान्य दशा में 100 किग्रा तथा मोटा दाना 125 किग्रा प्रति है, तथा छिटकाव बुवाई की दशा में सामान्य दाना 125 किग्रा मोटा-दाना 150 किग्रा प्रति हे0 की दर से प्रयोग करना चाहिए। बुवाई से पहले जमाव प्रतिशत अवश्य देख ले। यदि बीज अंकुरण क्षमता कम हो तो उसी के अनुसार बीज दर बढ़ा ले तथा यदि बीज प्रमाणित न हो तो उसका शोधन अवश्य करें। बीजों का कार्बाक्सिन, एजेटौवैक्टर व पी.एस.वी. से उपचारित कर बुवाई करें। सीमित सिंचाई वाले क्षेत्रों में रेज्ड वेड विधि से बुवाई करने पर सामान्य दशा में 75 किग्रा तथा मोटा दाना 100 किग्रा प्रति हे की दर से प्रयोग करे। खेत की तैयारी के समय जिंक व यूरिया खेत में डालें तथा डीएपी खाद को ड्रिल से दें। बोते समय 50 किलो डीएपी, 45 किलो यूरिया, 20 किलो म्यूरेट पोटाश तथा 10 किलो जिंक सल्फेट प्रति एकड़ दें। पहली सिंचाई के समय 60 किलो यूरिया दें। पहली सिंचाई तीन हफ्ते बाद करें। इसके बाद फुटाव के समय, गांठें बनते समय, बालियां निकलने से पहले, दूधिया दशा में और दाना पकते समय सिंचाई करें।