हिन्दू धर्म के अनुसार हमारा ब्रह्मांड, धरती, जीव, जंतु, प्राणी और मनुष्य सभी का निर्माण आठ तत्वों से हुआ है। इन आठ तत्वों में से पांच तत्व को हम सभी जानते हैं। आओ जानते हैं पांच तत्व क्या है।
हिन्दू धर्म के अनुसार इस ब्रह्मांड की उत्पत्ति क्रम इस प्रकार है- अनंत-महत्-अंधकार-आकाश-वायु-अग्नि-जल-पृथ्वी। अनंत जिसे आत्मा कहते हैं। पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार यह प्रकृति के आठ तत्व हैं। उक्त सभी की उत्पत्ति आत्मा या ब्रह्म की उपस्थिति के कारण है।
आकाश के पश्चात वायु, वायु के पश्चात अग्नि, अग्नि के पश्चात जल, जल के पश्चात पृथ्वी, पृथ्वी से औषधि, औषधियों से अन्न, अन्न से वीर्य, वीर्य से पुरुष अर्थात शरीर उत्पन्न होता है।- तैत्तिरीय उपनिषद
1. पृथ्वी तत्व : इसे जड़ जगत का हिस्सा कहते हैं। हमारी देह जो दिखाई देती है वह भी जड़ जगत का हिस्सा है और पृथ्वी भी। इसी से हमारा भौतिक शरीर बना है, लेकिन उसमें तब तक जान नहीं आ सकती जब तक की अन्य तत्व उसका हिस्सा न बने। जिन तत्वों, धातुओं और अधातुओं से पृथ्वी बनी है उन्हीं से यह हमारा शरीर भी बना है।
2. जल तत्व : जल से ही जड़ जगत की उत्पत्ति हुई है। हमारे शरीर में लगभग 70 प्रतिशत जल विद्यमान है उसी तरह जिस तरह की धरती पर जल विद्यमान है। जितने भी तरल तत्व जो शरीर और इस धरती में बह रहे हैं वो सब जल तत्व ही है। चाहे वो पानी हो, खून हो, वसा हो, शरीर में बनने वाले सभी तरह के रस और एंजाइम।
3. अग्नि अत्व : अग्नि से जल की उत्पत्ति मानी गई है। हमारे शरीर में अग्नि ऊर्जा के रूप में विद्यमान है। इस अग्नि के कारण ही हमारा शरीर चलायमान है। अग्नि तत्व ऊर्जा, ऊष्मा, शक्ति और ताप का प्रतीक है। हमारे शरीर में जितनी भी गर्माहट है वो सब अग्नि तत्व ही है। यही अग्नि तत्व भोजन को पचाकर शरीर को निरोगी रखता है। ये तत्व ही शरीर को बल और शक्ति वरदान करता है।
4. वायु तत्व : वायु के कारण ही अग्नि की उत्पत्ति मानी गई है। हमारे शरीर में वायु प्राणवायु के रूप में विद्यमान है। शरीर से वायु के बाहर निकल जाने से प्राण भी निकल जाते हैं। जितना भी प्राण है वो सब वायु तत्व है। धरती भी श्वांस ले रही है। वायु ही हमारी आयु भी है। जो हम सांस के रूप में हवा (ऑक्सीजन) लेते हैं, जिससे हमारा होना निश्चित है, जिससे हमारा जीवन है। वही वायु तत्व है।
5. आकाश तत्व : आकाश एक ऐसा तत्व है जिसमें पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु विद्यमान है। यह आकाश ही हमारे भीतर आत्मा का वाहक है। इस तत्व को महसूस करने के लिए साधना की जरूरत होती है। ये आकाश तत्व अभौतिक रूप में मन है। जैसे आकाश अनन्त है वैसे ही मन की भी कोई सीमा नहीं है। जैसे आकाश में कभी बादल, कभी धूल और कभी बिल्कुल साफ होता है वैसे ही मन में भी कभी सुख, कभी दुख और कभी तो बिल्कुल शांत रहता है। ये मन आकाश तत्व रूप है जो शरीर मे विद्यमान है।
इन पंच तत्व से ऊपर एक तत्व है जो आत्मा (ॐ) है। जिसके होने से ही ये तत्व अपना काम करते हैं।
इन्ही पांच तत्वों को सामूहिक रूप से पंचतत्व कहा जाता है। इनमें से शरीर में एक भी न हो तो बाकी चारों भी नहीं रहते हैं। किसी एक का बाहर निकल जाने ही मृत्यु है। आत्मा को प्रकट जगत में होने के लिए इन्हीं पंच तत्वों की आवश्यकता होती है। जो मनुष्य इन पंच तत्वों के महत्व को समझकर इनका सम्मान और इनको पोषित करता है वह निरोगी रहकर दीर्घजीवी होता है।