ज्यादातर देशों में पिछले 150 साल में काम के औसत घंटे नाटकीय रूप से कम हुए हैं। लोग दिन में अब कम घंटे काम कर रहे हैं, हफ्ते में भी काम के दिन कम हुए हैं और इसी तरह साल में काम के हफ्ते कम हो गए हैं। यानी हर तरह से काम के घंटों में कमी आई है। खासकर अधिक आय वाले देशों में काम के घंटे कम हुए हैं। यही कारण है कि काम के घंटों को लेकर विभिन्न देशों में अंतर हो गया है। यह अध्ययन आर्थिक इतिहासकार माइकल ह्यूबरमैन और क्रिस मिंस ने किया है।
रिपोर्ट के मुताबिक, लोगों को लगता है कि आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में लोग ज्यादा काम कर रहे हैं, लेकिन काम के घंटों के इतिहास पर शोध से पता चलता है कि हकीकत इसके विपरीत है। मौजूद डाटा से पता चलता है कि 19वीं सदी में दुनियाभर में लोग ज्यादा घंटे काम करते थे। लेकिन पिछले 150 साल में धीरे-धीरे काम के घंटे कम हो गए हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक किसी देश में लोग कितने घंटे काम करते हैं, इसका अध्ययन जरूरी है, क्योंकि इससे आर्थिक उत्पादकता, आर्थिक प्रगति और लोगों की सेहत को समझने में मदद मिलती है।
औद्योगिक क्रांति का असर
रिपोर्ट के मुताबिक, 1870 की औद्योगिक क्रांति के बाद काम के घंटे कम हुए। खासकर उन देशों में, जहां औद्योगीकरण पहले हुआ। 1870 में ज्यादातर देशों में लोग साल में 3,000 घंटे से अधिक काम करते थे, करीब हर हफ्ते 60-70 घंटे और साल में 50 हफ्ते। लेकिन आज के समय में काम के घंटे तब के मुकाबले आधे हो गए हैं, उदाहरण के लिए, जर्मनी में काम के घंटे 60 प्रतिशत कम हुए हैं। वहीं 1870 में लोग साल में 3,284 घंटे काम करते थे, लेकिन 2017 में काम के घंटे 1,354 हो गए। उधर, ब्रिटेन में काम के घंटे 40 फीसदी कम हुए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, काम के घंटे कम होने के साथ ज्यादातर देशों में छुट्टियां भी बढ़ी हैं।
कैसे कम हुए काम के घंटे
डाटा से पता चलता है कि 1870 से 1913 के बीच काम के घंटों में कम कमी आई है। इसके बाद 1913 से 1938 के बीच इसमें तेजी से कमी आई। इसका कारण शक्तिशाली सामाजिक-राजनीतिक बदलाव, तकनीक और आर्थिक बदलाव थे। यह बदलाव प्रथम विश्वयुद्ध, ग्रेट डिप्रेशन और द्वितीय विश्वयुद्ध की ओर बढ़ती दुनिया के कारण हो रहे थे। इसके बाद द्वितीय विश्व युद्ध हुआ और फिर काम के घंटे तेजी से कम हुए। हाल के वर्षों में भी कई देशों में काम के घंटे कम हुए हैं। पर अब काम के घंटों में देश के हिसाब से काफी अंतर है। जहां औद्योगीकरण पहले हुआ, वहां घंटे कम हैं। जर्मनी जैसे देश में घंटे लगातार कम हो रहे हैं, लेकिन अमेरिका में हाल के साल में इसमें थोड़ा इजाफा नजर आया है। वहीं कुछ देशों में यू-शेप बदलाव हुआ है। जैसे दक्षिण कोरिया जहां 1950 से 1980 के बीच काम के घंटे बढ़ गए। हालांकि, 1980 के बाद इसमें गिरावट आ गई। शोधकर्ताओं के मुताबिक, उनके पास हर देश का 1870 तक पुराना डाटा अध्ययन के लिए उपलब्ध नहीं था, लेकिन पिछले कुछ दशक का अध्ययन करने पर उन्हें ट्रेंड पता करने में आसानी हुई।
भारत और चीन का हाल
चीन में 1990 और 2000 के शुरुआती साल में काम के घंटे तेजी से बढ़े, लेकिन हाल के सालों में इसमें कम इजाफा हुआ है। वहीं भारत में 1970 में लोग औसतन साल में 2,077 घंटे काम करते थे, जो 2017 में 2,117 घंटे हो गए। यानी इसमें 2 फीसद का इजाफा हुआ है।