विनाशकारी जलप्रलय में अब तक 350 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. राज्य में बाढ़ से प्रभावित लोगों की मदद देश के तमाम हिस्सों से मदद तो आ ही रही है, दुनिया के अन्य देश भी मदद की पेशकश कर रहे हैं. लेकिन अन्य देशों से मदद को केंद्र सरकार ने 2004 के नीतिगत फैसले का हवाला देते हुए ठुकरा दिया है. सरकार के इस रुख पर अब केंद्रीय मंत्री केजे अल्फोंस ने विदेशी मदद को स्वीकार करने का अनुरोध किया है.
विदेशी मदद स्वीकार नहीं करने के केंद्र सरकार के फैसले की विपक्ष आलोचना कर रहा है. दरअसल 2004 में सुनामी के बाद मनमोहन सिंह सरकार द्वारा विदेशी सहायता स्वीकार नहीं करने के नीतिगत फैसले का हवाला देकर मोदी सरकार भी विदेशी सहायता की पेशकश को नामंजूर कर रही है. अब केंद्रीय मंत्री केजे अल्फोंस ने अपील की है कि 14 साल पुरानी इस परंपरा में ‘एक बार अपवाद’ को लागू कर विदेशी सहायता को मंजूर किया जाए. उन्होंने खासतौर पर संयुक्त अरब अमीरात द्वारा मदद की पेशकश को स्वीकार करने की अपील की है.
समाचार एजेंसी भाषा के मुताबिक अल्फोंस ने कहा है कि पिछले 50 सालों के दौरान केरल ने विदेशी विनिमय के तौर पर भारी मात्रा में योगदान किया है. वास्तव में पिछले साल ही उससे 75,000 करोड़ आए हैं. इन कारणों से एक कनिष्ठ मंत्री के तौर पर मैं अपने वरिष्ठ मंत्री से अनुरोध करता हूं कि वे राज्य के लिये खासतौर पर विचार करें. मैं उनसे इस नीति में एक बार अपवाद का अनुरोध करता हूं.
केरल से आने वाले अल्फोंस ने इससे पहले दिन में केंद्र के फैसले का बचाव करते हुए कहा था कि सुनामी के बाद दिसंबर 2004 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार ने एक नीतिगत फैसला किया था जिसमें प्राकृतिक आपदा के दौरान सरकार विदेश से आने वाली सहायता को स्वीकार नहीं करेगी.
विजयन और उनके मंत्रीमंडलीय सहयोगी थॉमस इसाक ने कल कहा था कि भारत, कानून के तहत, भीषण संकट के दौरान विदेशी सरकारों द्वारा स्वैच्छिक वित्तीय सहायता को स्वीकार कर सकता है. उन्होंने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना का हवाला दिया. मुख्यमंत्री का समर्थन करते हुए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान काम कर चुके वरिष्ठ कूटनीतिज्ञों और नौकरशाहों ने सुझाव दिया कि 2004 का फैसला कोई पत्थर की लकीर नहीं है.
केरल के वित्त मंत्री इसाक ने सहायता को स्वीकार नहीं करने को लेकर भाजपा नीत सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि बाढ़ प्रभावित दक्षिणी राज्य ने केंद्र से 2,200 करोड़ रुपये की मदद मांगी लेकिन उसने केवल 600 करोड़ रुपये जारी किये.
इसाक ने ट्विटर पर कहा कि हमने विदेशी सरकारों से कोई अनुरोध नहीं किया, लेकिन यूएई सरकार ने स्वेच्छा से 700 करोड़ रूपये की पेशकश की थी. केंद्र सरकार ने कहा, नहीं, विदेशी सहायता स्वीकार करना हमारी गरिमा के अनुकूल नहीं है.