कहा, फिल्मी दुनिया की रंगीनी दिखाने में लग गए सीएम योगी
लखनऊ। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने शुक्रवार को कहा कि भाजपा चारों तरफ भ्रम फैलाकर अपना स्वार्थ साधन करना चाहती है पर अब लोग उसमें फंसने वाले नहीं है। उन्होंने कहा कि भाजपा के कुशासन से समाज का हर वर्ग बुरी तरह त्रस्त है। किसान अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए सड़क पर संघर्ष कर रहे हैं। कृषि विरोधी कानूनों के जरिए किसान को अपनी खेती से बेदखल करने और पूंजी घरानों की मर्जी पर उसकी जिंदगी बंधक बनाने की साजिशों का देशव्यापी विरोध हो रहा है। किसान के साथ जनसामान्य भी तमाम परेशानियों से गुजर रहा है। अखिलेश ने कहा कि आज भी यह स्थिति है कि कर्ज के बोझ तले दबकर किसान आत्महत्या कर रहा है। बांदा में गिरवा थाना क्षेत्र के बरई मानपुर गांव में कर्ज से बदहाल किसान गोविन्द ने फांसी लगाकर अपनी जान दे दी। आजमगढ़ में क्रय केन्द्रों पर कभी बोरे की कमी तो कभी धान की उठान न होने से किसान परेशान है। शासन-प्रशासन के न्यूनतम समर्थन मूल्य और डेढ़ गुना उत्पादन लागत दिलाने के दावे झूठे साबित हो रहे हैं।
उन्होंने कहा कि डाॅ. स्वामीनाथन की सिफारिशें भी लागू नहीं की गई। तथाकथित कृषि सुधारों के प्रति अविश्वास घर कर गया है। अब किसान अपनी समस्याओं का तत्काल समाधान और जवाब चाहता है। लोकतंत्र में उनके साथ अलोकतांत्रिक व्यवहार क्यों किया जा रहा है। भाजपा सरकार किसानों से लम्बी वार्ता षड्यंत्र के तहत कर रही है। लेकिन, इससे वह आन्दोलन को कमजोर नहीं कर पाएगी क्योंकि देश किसानों के साथ है। उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार में पेट्रोल-डीजल के साथ रसोई गैस के दाम भी बड़ी तेल कम्पनियों की मनमर्जी से जब तब बढ़ा दिए जाते हैं। अभी रसोई गैस के दामों में 50 रुपये की वृद्धि हो गई है।
अखिलेश ने फिल्म सिटी को लेकर एक बार फिर तंज कसते हुए कहा कि मुख्यमंत्री जी के ठोको, राम नाम सत्य है जैसे जुमलों का जब कोई असर नहीं दिखाई दिया तो वह फिल्मी दुनिया की रंगीनी दिखाने में लग गए हैं। वैसे भी बहुरंगी बड़े मानसिक क्षितिज की उम्मीद रखने वाली फिल्म सिटी इण्डस्ट्री आज एकांगी और संकीर्ण सोच वाली सत्ता को स्वीकार्य नहीं हो सकती है। उन्होंने कहा कि कल को यही भाजपाई फिल्म के विषय, भाषा, पहनावे एवं दृश्यों के फिल्मांकन पर भी अपनी पाबंदिया लगाने लगेंगे। उन्होंने कहा कि सच बात तो यह है कि भाजपा स्वयं अपने कामों और आचरण से रोज-ब-रोज अप्रासंगिक होती जा रही है।