पूर्व सेहत मंत्री व पूर्व डिप्टी स्पीकर सतपाल गोसाईं 40 साल की लंबी राजनीतिक पारी के बाद मंगलवार को इस दुनिया से रुख्सत कर गए। गोसाईं को जुझारूपन व लोकहित के लिए लडऩे की फितरत के कारण हमेशा याद रखा जाएगा। गोसाईं चाहे साधारण कार्यकर्ता रहे हों या फिर डिप्टी स्पीकर व सेहत मंत्री, लोकहित के लिए वह कहीं भी दरी बिछाकर धरने पर बैठ जाते थे।
गाेसाईं ने कभी प्रोटोकाल की परवाह नहीं की। वह शुरू से ही अपनी गाड़ी में दरी रखकर चलते थे, ताकि कहीं पर भी धरना लगाना पड़े तो तुरंत दरी बिछाई जा सके। जब वह सेहत मंत्री थे तब भी दरी उनकी कार की डिक्की में ही रहती थी। उन्हें भाजपाई व शहरवासी दरी वाले बाबा के नाम से भी जानते थे।
गोसाईं जहां कार्यकर्ताओं के लिए हर वक्त खड़े होते थे, वहीं राष्ट्रीय नेताओं के साथ भी उनके अच्छे संबंध रहे। अटल बिहारी वाजपेयी हों या लाल कृष्ण आडवाणी, राजनाथ सिंह से लेकर नितिन गडकरी तक सभी से गोसाईं के अच्छे संबंध रहे। जब भी पंजाब की राजनीति पर पार्टी कोई फैसला लेती तो गोसाईं की अनदेखी नहीं हुई। सतपाल गोसाईं लोकहित व कार्यकर्ताओं के लिए कभी पीछे नहीं हटते थे। जब वह 2009 में डिप्टी स्पीकर थे तो लुधियाना के डिप्टी कमिश्नर पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे। वह चाहते तो डीसी को अपने पास बुलाकर फटकार लगा सकते थे, लेकिन ऐसा नहीं किया। वह कार में डीसी दफ्तर पहुंचे।
डीसी से बहस हुई और फिर कार में से अपनी दरी निकाली और धरने पर बैठ गए। तब मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के हस्तक्षेप के बाद उन्होंने धरना उठाया था। वह जिद पर अड़े थे कि लुधियाना से भ्रष्ट अफसर हटाया जाए। इसके बाद डीसी उनके घर माफी मांगने पहुंचे थे। गोसाईं खुद ही कहते थे कि वह दरी साथ लेकर चलते हैं पता नहीं कब धरने पर बैठना पड़े। उनका कहना था कि लंबे समय तक विपक्ष में रहे तो उन्हें लोगों के काम करवाने के लिए धरने ही लगाने पड़ते थे।
गोसाईं का राजनीतिक सफर
सतपाल गोसाईं का जन्म 1935 में पाकिस्तान के गुजरांवाला में हुआ। भारत-पाक बंटवारे के वक्त वह यहां आकर बस गए। यहीं पर उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और बिजली बोर्ड में इंजीनियर बने। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से शुरू से नजदीकियां रहीं। जब भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ तो नौकरी पर रहते हुए गोसाईं ने भाजपा से नजदीकियां बढ़ा लीं और कुछ समय बाद सक्रिय राजनीति में आ गए। आपातकाल में जेल भी गए। गोसाईं ने सबसे पहले 1991 में पार्षद का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की।
एक साल बाद ही 1992 में विधायक बन गए। 1996 में गोसाईं ने लुधियाना संसदीय क्षेत्र से लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए। 1997 में दूसरी बार विधायक बने। इसी कार्यकाल के आखिरी दो साल में वह पंजाब विधानसभा में पहली बार डिप्टी स्पीकर बने।
2002 में हार गए थे चुनाव
2002 में वह चुनाव हार गए। 2007 में फिर विधायक बने और उन्हें डिप्टी स्पीकर बनाया गया। सरकार के आखिरी साल में उन्हें सेहत मंत्री बनाया गया। 2012 में वह चुनाव हार गए। 2016 में उनका भाजपा से मोह भंग हुआ और वह अपने चेले गुरदीप सिंह नीटू के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए। संघ के दबाव में गोसाईं अगले दिन ही फिर भाजपा में शामिल हो गए। अब वह शारीरिक तौर पर स्वस्थ नहीं थे, लेकिन कोरोना काल में भी भाजपा की बैठकों में शामिल होते रहे। हाल ही में भाजपा कार्यालय में हुई प्रदेश कार्यकारिणी की वर्चुअल मीटिंग में हिस्सा लेने पहुंचे थे। यह उनकी आखिरी बैठक थी।
गोसाईं गर्म मिजाज नेता
गोसाईं गर्म मिजाज के नेता थे। लोगों के हित के लिए वह किसी से डरते नहीं थे और बेबाक अपनी बात रखते थे। भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी गोसाईं को पंजाब का शेर भी बुलाते थे। गोसाईं के चुनाव प्रचार में हेमा मालिनी, नवजोत सिंह सिद्धू समेत कई बड़े नेताओं ने रैलियां की हैं।
मिनी रोज गार्डन, चिल्ड्रन पार्क व सेहत सुविधाओं को किया था अपग्रेड
लुधियाना से गोसाईं पहले डिप्टी स्पीकर व बाद में सेहत मंत्री बने तो उन्होंने शहर में सेहत सुविधाओं को अपग्रेड करने पर फोकस किया। पहले उन्होंने सिविल अस्पताल में बर्न यूनिट का निर्माण करवाया और फिर मदर चाइल्ड अस्पताल का प्रोजेक्ट तैयार करवाया। मदर चाइल्ड अस्पताल का काम वह अपने कार्यकाल में शुरू नहीं करवा पाए थे। किदवई नगर में मिनी रोज गार्डन व दुख निवारण गुरुद्वारा के पीछे से निकलने वाले नाले को ढकने का काम भी उन्होंने ही शुरू करवाया था।