गंगा तट पर सजी 15 लाख दीपमालाएं, चहुंओर उजियारा, अद्भुत-अप्रतिम नजारा
राजघाट से अस्सी तक सभी घाट भक्ति से सराबोर, लेजर शो खूब उठाया लुत्फ
वाराणसी। पूनम की रात (कार्तिक पूर्णिमा) देवों की दीपावली मनाने के लिए बनारस के घाटों और कुंडों पर मानो सितारे उतर आए। लाखों श्रद्धालुओं की मौजूदगी में सोमवार को गंगा तीरे जगमग हुए लाखों दीपों ने कण-कण को रोशन कर दिया। अद्भुत, अकल्पनीय, अविस्मरणीय, आनंदकारी, अद्वितीय, अलौकिक, अविश्वसनीय जैसे सारे शब्द कम पड़ गए। जल दीपोत्सव के इस नयनाभिराम दृश्य को देखकर लोग पलकें झपकाना भूल गए। वैसे भी इस बार की देव दीपावली बहुत खास है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काशी में दीया जलाए। अलकनंदा क्रूज़ से घोटों पर भी घूमा। संबोधन के बाद पीएम मोदी और सीएम योगी आदित्यनाथ ने चेत सिंह घाट पर आयोजित लेजर शो का लुत्फ लिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दीप प्रज्ज्वलित करके देव दीपावली महोत्सव का शुभारंभ किया। इस मौके पर पीएम ने मंदिरों की वेबसाइट का भी उद्घाटन किया।
बता दें, भगवान शिव के त्रिपुरासुर का वध कर अत्याचार से मुक्ति दिलाने व भगवान विष्णु के योगनिद्रा से जागरण पर देव दीपावली मनाने की परंपरा है। धर्म-अध्यात्म और राष्ट्रीय भावना के इस पर्व पर दीपों के प्रकाश से प्रदीप्त गंगा के अप्रतिम सौंदर्य को निहारने के लिए चारों तरफ मुंड ही मुंड नजर आएं। अति प्राचीन पंचनदतीर्थ (पंचगंगा घाट) पर मां गंगा के पूजन संग जैसे ही हजारा की रोशनी बिखरी, काशी के चौरासी घाट भी असंख्य दीपों से जगमगा उठे। दीपों का साथ पाकर पूनम की रात भी इठला उठी। चहुंओर उजियारा फैल गया। इस अद्भुत व अप्रतिम नजारे की झलक पाने के लिए घंटों पहले से तट जमा जन सैलाब का उत्साह देखते ही बन रहा था। सभी श्रद्धालु दीपों की अनुपम छटा में खो गए। वैश्विक स्तर पर अपनी विशिष्टता कायम करने वाला काशी का यह लक्खा मेला शाम ढलने के साथ ही पूरी रौ में दिखा।
भगवान शिव की तीनों लोकों से न्यारी मानी जाने वाली नगरी काशी में अनूठे जल प्रकाश उत्सव के रूप में विश्व विख्यात देव दीपावली के मौके पर उत्तरवाहिनी मां गंगा के घाटों पर एक खास नजारा देखने के लिए घाटों पर दोपहर बाद से ही लोग पहुंचने लगे थे। धीरे-धीरे घाटों की ओर जाने वाला हर रास्ता पद यात्रियों के हुजूम से जाम होता गया। पैदल चलने में भी मशक्कत करनी पड़ रही थी। मानो मां गंगा की अनुपम और अनोखी छवि को लंबे समय के लिए लोग नजरों में कैद कर लेने को व्याकुल हों। रात गहराने के साथ ही अस्सी घाट से आदिकेशव तक सात किमी लंबी घाटों की श्रृंखला पर रोशनी का सौंदर्य ऐसा सवार हुआ कि उसकी गंगा में बनने वाली छवियां नौकायन करने वालों के मन मस्तिष्क पर जादू सरीखा छा गया। अस्सी से राजघाट के बीच घाट पर बने मठों, मंदिरों, महलों, शिवालों हर लम्हा रंग बदलती रोशनी और घाटों पर जगमग दीपकों के प्रतिबिंब गंगा की लहरों पर पड़ कर अलग ही चित्र संरचना कर रहे थे। गंगा की लहरों पर पड़ती सतरंगी रोशनी, जलधारा पर तैरती चंद्रकिरणों के साथ मिल कर कभी जल में तैरते इंद्रधनुष सी नजर आती तो कभी गंगा की लहरों पर प्रवाहित हो रहे दीप गंगा में आकाश गंगा जैसी अनुभूति करा रहे थे। ऐसा प्रतीत होता मानो सुनहरी और रूपहली किरणधाराएं सैकड़ों टिमटिमाते सितारों के बीच से होकर गुजर रही है।
ऐसा लगा जैसे सितारे गंगा तीरे उतर आएं हो। लोगों को अनुभूत हुआ मानो आज देवाधिदेव की नगरी काशी में समस्त देवगणों संग भगवान भास्कर भी बाबा भोलेनाथ की आराधना करने के लिए अस्त नहीं हुए। चारों ओर उजाला ही उजाला। माटी के दीपों में तेल की धार बह चली और रुई की बाती तर होते ही प्रकाशित होने को आतुर नजर आई। गोधूलि बेला के साथ ही एक – एक कर दीपों की अनगिन श्रृंखला पूर्णिमा के चांद की चांदनी को चुनौती देने के लिए बेकरार हो चले। दीपों की अनगिन कतारों से घाटों की अर्धचंद्राकार श्रृंखला दिन ढलते ही नहा उठी और मुख्य घाट पर आयोजन में शामिल उजाला मानो चंद्रहार में लॉकेट की भांति नदी के दूसरे छोर से प्रकाशित नजर आने लगा। घाटों पर विभिन्न आकृतियों की दीपमालिका, भवनों-अट्टालिकाओं पर रंग-बिरंगे विद्युत झालरों से की गई सजावट मन-मस्तिष्क में गहरे तक उतर गई। आतिशबाजी संग भजनों की धुन ने महोत्सव में चार चांद लगा दिए। इस अद्भुत छटा को निहारने के लिए जुटी भीड़ ने अस्सी से लेकर दशाश्वमेध घाट और आदिकेशव के बीच के लंबे क्षेत्रफल के भी छोटा होने का आभास कराया। हजारों नौकाओं, बजड़े व स्टीमर से लोग गंगा किनारे मनाए जाने वाले इस अलौकिक व अनूठे पर्व के साक्षी बने।
कहा जाता है कि वामन अवतार लेने के बाद जब नारायण स्वर्गलोक पहुंचे तो वहां उनका भव्य स्वागत किया गया। देवताओं ने हरि का वैसा ही अभिनंदन किया जैसा कि अयोध्या लौटने पर श्रीराम का हुआ था। जिस दिन भगवान विष्णु स्वर्गलोक पहुंचे व भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध कर आम जनमानस को अत्याचार से मुक्ति दिलाई वो कार्तिक पूर्णिमा का ही दिन था। वो दिन आज भी देव दीपावली के रूप में मनाया जाता है। भगवान भोलेनाथ की नगरी काशी में देव दीपावली मनाने का बिल्कुल अनोखा अंदाज हैं। घाट की सीढ़ियों पर टिमटिमाते दिये और आसमान में चमकते तारों के साथ चांदनी बिखेरता पूर्णिमा की चांद के बीच पूरा गंगातट लाखों दीपों से जगमगा उठा, कण-कण को रोशन हो गया।
हजारा संग जगमगाए चौरासी घाट
कार्तिक पूर्णिमा पर होने वाले देव दीपावली महोत्सव का आगाज शाम को पंचनदतीर्थ पंचगंगा घाट पर विधि विधान से गंगा पूजन और महारानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा बनवाए गए हजारा दीपस्तंभ में 1008 दीप जलाकर किया गया। इसके पश्चात अस्सी से आदिकेशव तक के चौरासी घाट दीपों से रोशन हो उठे। दशाश्वमेध, अस्सी, केदार, भैसासुर व आदिकेशव घाट पर दीपदान संग मां गंगा का दुग्धाभिषेक, पूजन और महाआरती की गई। घाटों पर दीपों की साज-सज्जा तो की ही गई थी। गंगा की पावन धारा में भी लोग दीप प्रवाहित करते रहे। इससे गंगा में दीपों की कतार लगी रही, जो हर किसी को लुभा रही थी। गंगा के उस पार कई स्थानों पर दीपदान कर लोग इस आयोजन में सहभागी बने।
गंगा में भी लगा जाम
देव दीपावली का नजारा लेने के लिए गंगा में सैकड़ों नाव, बजड़े, स्टीमर व मोटरबोट उतारे गए थे। काफी संख्या में नावें व स्टीमर मीरजापुर, भदोही व इलाहाबाद से भी यात्रियों को लेकर आई थीं। इसके चलते गंगा के बीच में नावों की अटूट कतार बनी रही। अस्सी घाट, दशाश्वमेध घाट व भैंसासुर घाट पर होने वाली गंगा आरती व सांगीतिक अनुष्ठान देखने के लिए नावें इन्हीं स्थानों पर ठहर गईं, जिससे काफी देर तक जाम की स्थिति बनी रही। वहीं नाविकों द्वारा मनमानी वसूली को लेकर भी लोग परेशान रहे। छोटी नावों पर सवारी के लिए लोगों को हजारों रुपये का भुगतान करना पड़ा। देवगणों की इस दीपावली में आम जनमानस ने भी पूरी सहभागिता निभाई। दीपदान में हाथ बटाया तो वहीं मन भर आतिशबाजी कर खुशियों में चार चांद लगाया।
घाटों पर झांकियों और रंगोली ने मोहा मन
भारी सुरक्षा के बीच हर घाट की अपनी विशेषता और पहचान को अलग तरीके से झांकियों के जरिए प्रस्तुत करने की कोशिश की गई। घाटों पर रंगोली सजाते लोगों ने अनोखे थीम पर घाटों की रंगत भी निखारने में कोई कोताही नहीं बरती। घाटों पर गुब्बारों और फूलों संग सजावट ने जहां विदेशियों को चमत्कृत किया तो रेत पर आकृतियां उकेर कर घाटों की रौनक से पर्व को उल्लासित किया। दूसरी ओर आस्थावानों की अपार भीड़ ने गंगा की निर्मलता को नमन कर गंगा के प्रति अपार आस्था को ऊंचाइयां प्रदान कीं। देव दीपावली के इस नजारे को कैमरे में खूब कैद किया। लोग नावों-बजरों पर सवार होकर अस्सी से राजघाट तक की सैर करते दिखे। गंगा में सजी धजी नौकाओं, बजड़ों, मोटरबोटों की संख्या में भी इजाफा होता जा रहा था। भैसासुर, गायघाट, रामघाट, दुर्गा घाट, पंचगंगा घाट, सिंधिया, ललिता घाट, प्राचीन दशाश्वमेध घाट, दशाश्वमेध, केदार घाट, जैन घाट, तुलसी और अस्सी घाट के सामने नौकाओं की भीड़ सर्वाधिक थी। करीब से गंगा आरती देखने की उत्कंठा में हर कोई अपनी नौका को सबसे आगे रखना चाहता था।
84 घाटों पर रहा श्रद्धालुओं का जमघट
बेशक देव दीपावली का उत्सव संपूर्ण काशी में मनाया गया। लेकिन देखा जाए तो आयोजन का मुख्य केंद्र अहिल्याबाई से लेकर, तुलसी घाट, डा. राजेद्र प्रसाद के बीच पांच घाटों पर केंदित था। श्रद्धालुओं की भीड़ इन्हीं पांच घाटों के ईद-गिर्द जमा थी। राजेंद्र प्रसाद घाट से लेकर प्रयाग घाट तक तीन घाटों पर गंगा सेवा निधि के आयोजन की सीमारेखा थी तो अगले दो घाट यानि दशाश्वमेध और अहिल्याबाई घाट गंगोत्री सेवा समिति की ओर से आयोजित समारोह की भव्यता का नजारा लेने वालों से खचाखच भरे थे। गंगा सेवा निधि के मंच से हरहर महादेव का जयघोष होता तो अहिल्याबाई घाट पर बैठी भीड़ प्रतिउत्तर देती। बता दें, जैसे-जैसे गंगा आरती का समय करीब आता जा रहा था वैसे-वैसे भीड़ का दोहरा दबाव बढ़ता जा रहा था। शहर के सभी मुख्य मार्गों से घाटों की ओर जाने वाले रासतों को बंद कर देने के बाद भी स्थानीय लोग किसी न किसी रास्ते से घाट की तक पहुंच ही जा रहे काशी के प्रमुख घाटों पर उमड़ी देशी-विदेशी दर्शकों की भीड़ के कारण तिल रखने की जगह नहीं थी। लोगों ने शाम से ही घाटों पर बैठकर घंटों उस ऐतिहासिक क्षण की प्रतीक्षा की जब देव दीपावली के दीपों के प्रकाश से पूरा क्षेत्र आलोकित हो उठा। गोधूलि में पंचगंगा घाट स्थित हजारा दीप फलक पर 1001 दीप जलने के बाद बाकी घाटों पर दीप आलोकित होने शुरू हो गए। इसके साथ ही ’हर-हर महादेव ‘हर-हर गंगे’ और धार्मिक गीत-संगीत से पूरा वातावरण सांस्कृतिक धार्मिक भावना से सराबोर हो गया। गंगा में सैकड़ों नावों और बजड़ों पर बैठे दर्शनार्थियों ने इस अद्भुत दृश्य को देखा।
गंगा की जलधारा पर दिखाई उन्हीं की अवतरण गाथा
काशीवासियों के लिए मंगलवार शाम का वह क्षण अविस्मरणीय रहा, जब गंगा के धरती पर अवतरण की गाथा सदानीरा की जलधारा को ही आधार बनाकर लाइट एंड साउंड शो के जरिये दिखाई गई। भैंसासुर घाट के सामने गंगा में फ्लोटिंग फाउंटेन (तैरता फव्वारा उपकरण) से निकली फुहारों पर कपिल मुनि के शाप से राजा सगर के 60 हजार भस्म पुत्रों की आत्माओं की मुक्ति के लिए भगीरथ के कठोर तप का प्रसंग जीवंत हुआ। पर्यटन विभाग के इस आयोजन में भागीरथी के अवतरण की आधुनिक और आकर्षक प्रस्तुति देख रहे लोग हर-हर महादेव का घोष लगाते रहे। मुख्यमंत्री के आगमन के पहले श्रद्धालुओं को पांच मिनट का यह शो दिखाया गया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के यहां पहुंचने पर उन्हें काशी की महत्ता दिखाई गई। पीएम मोदी ने अपने संसदीय क्षेत्र में 50 किलोमीटर का रास्ता हवाई मार्ग से और 40 किलोमीटर सड़क मार्ग से तय किया। पीएम मोदी पिछली बार फरवरी में वाराणसी आए थे। लॉकडाउन के बाद से वे पहली बार वाराणसी आए हैं। प्रधानमंत्री का वाराणसी का यह 23वां दौरा है। खास यह है कि चेत सिंह घाट पर जहां लेजर शो के जरिए देव दीपावली की अहमियत समझाई गई तो वहीं विश्वनाथ कॉरिडोर का निरीक्षण करने के बाद राजघाट पर पहला दीया जलाकर देव दीपावली की पारंपरिक शुरुआत की गई। कोरोना महामारी के दौरान प्रधानमंत्री पहली बार बनारस दौरे पर हैं। हालांकि वे पहले वर्चुअली तरीके से कई मौकों पर जुड़कर कार्यक्रमों में हिस्सा ले चुके हैं।