अंधविश्वास के खिलाफ काम करने वाले नरेंद्र दाभोलकर की हत्या के संबंध में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने हाल ही में ‘सनातन संस्था’ के कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया है. इस गिरफ्तारी के बाद संस्था पर प्रतिबंध लगाने की मांग जोर पकड़ रही है. ‘सनातन संस्था’ पर साल 2013 में ही बैन लगाए जाने की पूरी तैयारी हो चुकी थी, लेकिन ऐन वक्त पर कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) ने अपना फैसला बदल लिया था. क्योंकि, अगले साल 2014 में लोकसभा चुनाव होने थे और कांग्रेस नहीं चाहती थी कि वोटर्स के बीच उसकी इमेज ‘एंटी-हिंदू’ वाली बने.
‘सनातन संस्था’ एक गैर-लाभकारी संगठन है, जिसकी स्थापना एचएच डॉ. जयंत बालाजी अठावले ने 1990 में की थी. ‘सनातन संस्था’ गोवा में ‘चैरिटी संस्था’ के तौर पर रजिस्टर्ड है और यह एक दैनिक अखबार ‘सनातन प्रभात’ का प्रकाशन करती है. संगठन का एक और बड़ा केंद्र महाराष्ट्र के पनवेल में है.
पुणे, मुंबई, मिराज (सांगली) और राज्य के अन्य हिस्सों में इसके कार्यालय हैं.’सनातन संस्था’ तब चर्चा में आई; जब नरेंद्र दाभोलकर, एमएम कलबुर्गी और गोविंद पनसारे की हत्या के आरोपियों का इस संस्था के साथ कनेक्शन सामने आया. इसके बाद तत्कालीन यूपीए सरकार में ‘सनातन संस्था’ को प्रतिबंधित करने की मांग होने लगी. कांग्रेस नेता पृथ्वीराज चव्हाण का कहना है, ‘हालांकि, तमाम कोशिशों के बाद भी उस प्रस्ताव को मंजूरी नहीं मिली, क्योंकि चुनाव नज़दीक थे और कांग्रेस नहीं चाहती थी कि उसकी छवि हिंदू विरोधी बने.’
महाराष्ट्र के पूर्व सीएम ने कहा, ‘सनातन संस्था पर बैन लगाने का 1000 पन्नों वाला डॉज़ियार (सरकारी फाइल) करीब दो साल तक गृह मंत्रालय की पास पड़ी रही. इस फाइल पर गृह मंत्रालय को फैसला लेना था.’ सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस पार्टी काफी सोच-विचार और वरिष्ठ नेताओं के साथ मंथन के बाद इस नतीजे पर पहुंची कि ऐसे वक्त में जब चुनाव नज़दीक हैं, ‘सनातन संस्था’ पर बैन लगाकर पार्टी वोटर्स के सामने अपनी इमेज को खराब करने का रिस्क नहीं ले सकती है.
अगर चुनाव के पहले पार्टी की ‘हिंदू विरोधी’ छवि बनती है, तो इसका सीधा असर वोट बैंक पर पड़ेगा. सनातन संस्था’ के प्रवक्ता शंभू गवारे ने कांग्रेस के इस कदम को ‘राजनीति से प्रेरित’ करार दिया था. उधर, पूर्व केंद्रीय गृह सचिव के मुताबिक, ‘पिछले तीन-चार सालों में ‘सनातन संस्था’ पर प्रतिबंध लगाने का कोई औपचारिक प्रस्ताव नहीं है. यह काम प्रगति पर है. खुफिया एजेंसियों के पास कुछ इनपुट हैं. अगर भविष्य में बैन लगाया जाता है और इसे ट्रिब्यूनल में चुनौती दी जाती है, तो जांच के लिए ये सबूत काफी हैं.