विवि के कार्यक्रम में बोले पीएम मोदी ‘लखनऊ हम पर फिदा, हम फिदा ए लखनऊ’
लखनऊ। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बुधवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से लखनऊ विश्वविद्यालय के शताब्दी वर्ष स्थापना दिवस समारोह में भाग लिया। प्रधानमंत्री ने इस पर डाक टिकट, विशेष कवर तथा स्मारक सिक्कों का विमोचन किया। अपने सम्बोधन में उन्होंने विश्वविद्यालय के सौ वर्षों के इतिहास को सराहा, ‘लखनऊ हम पर फिदा, हम फिदा ए लखनऊ’ का जिक्र किया और लखनऊ विश्वविद्यालय की आत्मीयता, यहां की रुमानियत की प्रशंसा की। प्रधानमंत्री ने कहा कि मुझे बताया गया कि विश्वविद्यालय के गेट नम्बर एक के पास पीपल का वृक्ष विश्वविद्यालय के 100 वर्ष की यात्रा का अहम साक्षी है। इस वृक्ष ने विश्वविद्यालय के परिसर में देश और दुनिया के लिए अनेक घटनाओं को अपने सामने बनते, घटते हुए देखा है। उन्होंने कहा कि सौ साल की इस यात्रा में न्यायिक, राजनीतिक, प्रशासनिक, शैक्षणिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक, खेलकूद से लेकर हर क्षेत्र की प्रतिभाएं लखनऊ विश्वविद्यालय से निकली हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि लखनऊ विश्वविद्यालय से अनगिनत लोगों के नाम जुड़े हैं। चाह कर भी सबका नाम लेना संभव नहीं है। प्रधानमंत्री ने इन सभी का वंदन करते हुए कहा कि सौ वर्ष की यात्रा में अनेक लोगों ने अनेक प्रकार से योगदान दिया है। यह सब अभिनंदन के अधिकारी हैं। उन्होंने कहा कि जब भी उन्हें लखनऊ विश्वविद्यालय से पढ़कर निकले लोगों से बात करने का मौका मिला है और बात हुई तो उनकी आंख में चमक ना हो ऐसा कभी मैंने नहीं देखा। उन्होंने कहा कि लखनऊ विश्वविद्यालय में बिताए दिनों, उसकी बातें करते-करते वे सभी बड़े उत्साहित हो जाते हैं और तभी तो ‘लखनऊ हम पर फिदा, हम फिदा ए लखनऊ’ का मतलब और अच्छे से समझ में आता है। प्रधानमंत्री ने कहा कि लखनऊ विश्वविद्यालय की आत्मीयता, यहां की रुमानियत ही कुछ और है। यहां के छात्रों के दिल में टैगोर लाइब्रेरी से लेकर अलग-अलग कैंटीन के चाय, समोसे और बन्द मक्खन अभी भी जगह बनाए हुए हैं। उन्होंने कहा कि बदलते समय के साथ बहुत कुछ बदल गया है लेकिन लखनऊ विश्वविद्यालय का मिजाज अब भी वही है।
रायबरेली की रेल कोच फैक्टरी का किया जिक्र
उन्होंने कहा कि रायबरेली की रेल कोच फैक्टरी में वर्षों पहले निवेश हुआ, संसाधन लगे, मशीनें लगीं, बड़ी-बड़ी घोषणाएं हुई। लेकिन कई वर्षों तक वहां सिर्फ डेंटिंग-पेंटिंग का ही काम होता था। 2014 के बाद हमने सोच बदली, तौर तरीका बदला। परिणाम ये हुआ कि कुछ महीने में ही यहां से पहला कोच तैयार हुआ और आज यहां हर साल सैकड़ों कोच तैयार हो रहे हैं। सामर्थ्य के सही इस्तेमाल का ये एक उदाहरण है। प्रधानमंत्री ने कहा कि एक जमाने में देश में यूरिया उत्पादन के बहुत से कारखाने थे। लेकिन, बावजूद इसके काफी यूरिया भारत बाहर से आयात करता था। इसकी बड़ी वजह है थी कि जो देश के खाद कारखाने थे, वो अपनी पूरी क्षमता से कार्य ही नहीं करते थे। हमने सरकार में आने के बाद एक के बाद एक नीतिगत निर्णय किए। इसी का नतीजा है कि आज देश में यूरिया कारखाने पूरी क्षमता से काम कर रहे हैं। यूरिया की सौ फीसद नीमकोटिंग की। पुराने और बन्द खाद कारखाने खुलेंगे। जिसके लिए गैस लाइन बिछाई जा रही है।