लखनऊ। लालजी टंडन के लिए राजनीति और प्रदेश की राजनीति के लिए टंडन कभी अपरिचित नहीं रहे। 83 साल के जीवन में 1952 से जनसंघ की स्थापना से साल 2014 की लखनऊ की सांसदी तक उन्होंने सक्रिय राजनीति के कई पड़ाव पार किए लेकिन, बीते चार साल उनके लिए आसान नहीं थे। भारत रत्न व पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की विरासत कही जाने वाली लखनऊ की लोकसभा सीट भी उनके हाथ में नहीं रही थी। बिहार के राज्यपाल बनाए जाने के बाद लंबी सांस लेकर टंडन कहते हैैं- ‘अब दलीय राजनीति से मुक्त हो गया हूं।
शुभचिंतकों-परिचितों का जमावड़ा
मंगलवार शाम टंडन को बिहार का राज्यपाल बनाए जाने की खबर फैलते ही हजरतगंज में भाजपा कार्यालय के निकट स्थित उनके आवास पर भाजपा कार्यकर्ताओं से लेकर शुभचिंतकों-परिचितों और बड़े नेताओं तक का जमावड़ा लग गया। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सहित कई लोगों ने उन्हें फोन करके बधाई दी तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद ही रात करीब साढ़े आठ बजे उनके आवास पर पहुंच गए। मुख्यमंत्री के जाने के बाद टंडन ने बताया- ‘कोई आज का नहीं, मेरा पुराना साथ है…, वह मेरा सम्मान करते हैैं और इसी सम्मानवश जैसे ही उन्हें आज सूचना मिली वह आ गए। ‘ टंडन का मानना है कि योगी आदित्यनाथ दोहरी भूमिका में हैैं, वह मुख्यमंत्री के साथ संत भी हैैं।
मिली है बड़ी जिम्मेदारी
नया दायित्व मिलने को बड़ी जिम्मेदारी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा जिम्मेदारी सौंपने को बहुत बड़ी बात मान रहे टंडन कहते हैैं कि इसके लिए मैैं प्रधानमंत्री का आभार व्यक्त नहीं करूंगा, बल्कि जो उनकी अपेक्षाएं हैैं, उसे पूरा करना ही मेरी अब जिम्मेदारी है। लंबी सक्रिय राजनीति के बाद गैर राजनीतिक संवैधानिक पद की ओर बढ़ रहे टंडन कहते हैैं- ‘राज्यपाल बनने के बाद अब मेरा दलीय संबंध खत्म हो जाएगा। जिनके साथ काम किया है, उन साथियों से तो अलग नहीं हो सकते। व्यक्तिगत संबंध तो रहेंगे लेकिन, अब दलीय राजनीति से मुक्ति पा गया हूं। ‘
बिहार के मुख्यमंत्री को रहेगा सहयोग
पार्षद से लेकर विधायक, मंत्री और सांसद के साथ पार्टी में कई महत्वपूर्ण जिम्मेदार पदों का लंबा अनुभव संभालने वाले लालजी टंडन बिहार में कानून व्यवस्था की कोई समस्या नहीं मानते। वह विश्वास जताते हैं कि बिहार की समस्याएं यदि कोई हैं तो उनके संबंध में वहां के मुख्यमंत्री को मेरा सहयोग ही प्राप्त होगा। संविधान में राज्यपाल की एक मर्यादा है तो संविधान के दायरे में रहते हुए उस राज्य के विकास और सुशासन के लिए जो भी संभव है, वह किया जाएगा।
अटल होते तो मुझसे ज्यादा खुश होते
बातचीत के बीच में ही अटल की स्मृतियों में जाते हुए टंडन कहते हैैं- आज वह होते तो मुझसे ज्यादा खुश होते। मुझे तो दुख है कि आज अटल जी नहीं हैैं और मैैं जा रहा हूं ऐसी जिम्मेदारी संभालने…, मेरा प्रयास है कि परसों उनके अस्थि विसर्जन में यहां मैैं वापस आ जाऊं। कल (बुधवार को) जाना है बिहार…, परसों (गुरुवार को) शपथ ग्रहण है।