भारतीय सोने को चार तरीके से खरीदते हैं। पहला, आभूषण और सिक्कों के रूप में भोतिक सोने की खरीद। दूसरा, गोल्ड म्युचुअल फंड्स और एक्सचेंज ट्रेडेड फंड्स (ETF)। तीसरा, डिजिटल गोल्ड और चौथा, सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (SGB) के रूप में। जब ग्राहक यह सोना बेचते हैं, तो उस पर टैक्स लगाया जाता है, यह टैक्स सोने के रूप पर निर्भर करता है। अगर आप सोना खरीद रहे हैं या बेच रहे हैं, तो आपको इस टैक्स के बारे में जरूर पता होना चाहिए। आइए विस्तार से जानते हैं।
आभूषण व सिक्कों पर टैक्स
आभूषण व सिक्कों की बिक्री पर टैक्स इस बात पर निर्भर करता है कि आपने कितने समय के लिए यह सोना अपने पास रखा है। सोना खरीदने के तीन साल के अंदर अगर आप इसे बेच देते हैं, तो उस लाभ को अल्पकालिक माना जाता है। इसे डेट फंड्स में कैपिटल गेन्स के समान ही ट्रीट किया जाता है। यह अल्पकालिक पूंजीगत लाभ खरीदार की कुल आय में जुड़ जाता है और इस पर उसके इनकम टैक्स स्लैब के अनुसार ही टैक्स लगता है। अगर खरीदने के तीन साल के बाद इस सोने को बेचा जाता है, तो उस लाभ को लॉन्ग टर्म लाभ माना जाता है और इस पर 20 फीसद लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स लगता है।
Gold ETF और Gold Mutual Funds पर टैक्स
गोल्ड ईटीएफ की बात करें, तो ये सोने की भौतिक कीमत को ट्रैक करने के लिए भौतिक सोने में निवेश करते हैं और गोल्ड म्युचुअल फंड्स गोल्ड ईटीएफ में निवेश करते हैं। गोल्ड ईटीएफ और गोल्ड म्युचुअल फंड्स दोनों से प्राप्त पूंजीगत लाभ भौतिक सोने की तरह ही करयोग्य होता है।
SGB पर टैक्स
सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड्स में मैच्योरिटी पर पूंजीगत लाभ पूरी तरह करमुक्त है। हालांकि, अगर आप सेकेंडरी मार्केट में बाहर निकलते हैं, तो भौतिक सोने की तरह ही टैक्स लगता है।
डिजिटल गोल्ड
कई बैंक्स, मोबाइल वॉलेट्स और ब्रोकरेज कंपनियां एप्स के जरिए सोना बेचने के लिए MMTC-PAMP या सेफगोल्ड से साझेदारी करती हैं। इनसे प्राप्त पूंजीगत लाभ पर भी भौतिक सोने या Gold ETF की तरह ही टैक्स लगता है।