भगवान विष्णु के अंश चक्रावतार थे सहस्त्रबाहु अर्जुन

वाल्मीकि रामायण के मुताबिक राक्षसों का राजा रावण लगभग सभी राजाओं पर जीत हासिल कर चुका था। जब उसने राजा सहस्त्रबाहु अर्जुन का नाम सुना तो उसके मन में उन्हें भी हराने की इच्छा हुई। लेकिन वे इतने बलशाली थे कि रावण को बंधक बनाकर अपने बच्चों को उससे खेलने के लिए दे दिया था। इसीलिए उन्हें चक्रवर्ती सम्राट भी कहा जाता है। वे भगवान विष्णु के 24वें अंश चक्रावतार थे। उनका जन्म हैहयवंशी महाराज की 10वीं पीढ़ी में माता पद्मिनी के गर्भ से हुआ था। जन्म से ही वे काफी ताकतवर थे, उनके 1000 हाथ थे। चन्द्रवंश के महाराजा कार्तवीर्य के पुत्र होने के कारण उन्हें कार्तवीर्य-अर्जुन कहा जाता है। हैहयवंशी क्षत्रियों में जन्म होने के चलते इस वंश को सर्वश्रेष्ठ उच्च कुल का क्षत्रिय माना गया है। रावण को हराने के कारण ही इन्हें राज राजेश्वर भी कहा जाता है

सुरेश गांधी

मध्य प्रदेश के महिष्मती नगर (आज का महेश्वर) में राजा सहस्त्रार्जुन का शासन था। वे क्षत्रियों के हैहय वंश के राजा कार्तवीर्य और रानी कौशिक के पुत्र थे। उनका का वास्तविक नाम अर्जुन था। उन्होंने दत्तात्रेय भगवान को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की। उनकी इस तपस्या से भगवान दत्तात्रेय प्रसन्न हुए और वरदान मांगने की बात कही। तब सहस्त्रार्जुन ने दत्तात्रेय से एक हजार हाथों होने का वर मांगा। इसके बाद से उनका नाम अर्जुन से सहस्त्रार्जुन पड़ गया। महाराज सहस्त्रबाहु उन पराक्रमी राजाओं में से थे, जिन्होंने रावण को भी अपनी मुट्ठी में कैद कर लिया था। इसके लिए वह उन्हें जीतने उनके नगर माहिष्मती नगर पहुंचा। उस समय राजा सहस्त्रबाहु अपनी पत्नियों के साथ नर्मदा नदी में जल-क्रीड़ा कर रहे थे। रावण को जब पता चला कि सहस्त्रबाहु अर्जुन नगर में नहीं है तो वह युद्ध की इच्छा से वहीं रुक गया। नर्मदा की जलधारा देखकर रावण ने वहां भगवान शिव की पूजा करने के बारे में सोचा। जिस जगह पर रावण भगवान शिव की पूजा कर रहा था, वहां से थोड़ी ही दूरी पर सहस्त्रबाहु अर्जुन अपनी पत्नियों के साथ जल-क्रीड़ा में मग्न थे। सहस्त्रबाहु अर्जुन ने अपने एक हजार हाथों से खेल-खेल में नर्मदा का बहाव रोक दिया, जिससे नर्मदा का पानी तटों के ऊपर चढ़ने लगा। जिस जगह पर रावण भगवान शिव की पूजा कर रहा था, वह भी नर्मदा के जल में डूब गया। अचानक नर्मदा में आई इस बाढ़ का कारण जानने के लिए रावण ने अपने सैनिकों को भेजा। सहस्त्रबाहु ने अचानक नर्मदा का जल छोड़ दिया, जिससे रावण की पूरी सेना बहाव में बह गई।

इस हार के बाद रावण सहस्त्रबाहु से युद्ध करने पहुंचा और उन्हें ललकारा। नर्मदा के तट पर ही रावण और सहस्त्रबाहु अर्जुन में भयंकर युद्ध हुआ। आखिर में सहस्त्रबाहु अर्जुन ने रावण को कैद कर लिया। जब यह बात रावण के दादा पुलस्त्य ऋषि को पता चली तो वे सहस्त्रबाहु अर्जुन के पास आए और अपने पोते को वापस मांगा। महाराज सहस्त्रबाहु ने ऋषि के सम्मान में उनकी बात मानते हुए रावण पर विजय पाने के बाद भी उसे मुक्त कर दिया और उससे दोस्ती कर ली। हर साल कार्तिक शुक्ल सप्तमी को सहस्त्रबाहु जयंती मनाई जाती है। इस बार उनकी जयंती 21 नवंबर है। जायसवाल क्लब इस बार उनकी जयंती के उपलक्ष्य में सात दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन किया है। भागवत पुराण में भगवान विष्णु व लक्ष्मी द्वारा सहस्त्रबाहु महाराज की उत्पत्ति की जन्मकथा का वर्णन है। उनका जन्म नाम एकवीर तथा सहस्रार्जुन भी है। वो भगवान दत्तात्रेय के भक्त थे। महाभारत, वेद ग्रंथों तथा कई पुराणों में सहस्त्रबाहु की कई कथाएं पाई जाती हैं। पौराणिक ग्रंथों एवं पुराणों के अनुसार कार्तवीर्य अर्जुन के व्याधिपति, सहस्रार्जुन, दषग्रीविजयी, सुदशेन, चक्रावतार, सप्तद्रवीपाधि, कृतवीर्यनंदन, राजेश्वर आदि कई नाम होने का वर्णन मिलता है। सहस्रार्जुन जयंती क्षत्रिय धर्म की रक्षा एवं सामाजिक उत्थान के लिए मनाई जाती है। भगवान सहस्त्रबाहु को वैसे तो सम्पूर्ण सनातनी हिन्दू समाज अपना आराध्य और पूज्य मानकर इनकी जयंती पर इनका पूजन अर्चन करता हैं किन्तु ये कलार समाज इस दिन को विशेष रूप से उत्सव-पर्व के रूप में मनाकर भगवान सहस्त्रबाहु की आराधना करता हैं।

पौराणिक मान्यताएं

पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक राजा सहस्त्रबाहु ने संकल्प लेकर शिव तपस्या प्रारंभ कीं थी एवं इस घोर तप के समय में वो प्रति दिन अपनी एक भुजा काटकर भगवान शिव जी को अर्पण करते थे। इस तपस्या के फलस्वरूप भगवान निलकंठ ने सहस्त्रबाहु को अनेको दिव्य चमत्कारिक और शक्तिशाली वरदान दिए थे। हरिवंश पुराण के अनुसार महर्षि वैशम्पायन ने राजा भारत को उनके पूर्वजों का वंश वृत्त बताते हुए कहा कि राजा ययाति का एक अत्यंत तेजस्वी और बलशाली पुत्र हुआ था “यदु“ के पांच पुत्र हुए जो 1-सहस्त्रदः, 2-पयोद, 3-क्रोस्टा, 4-नील और 5-अंजिक इनमें से प्रथम पुत्र सहस्त्रद के परम धार्मिक 3 पुत्र हुये तथा वेनुहय नाम के हुए थे। महेश्वर नगर मध्यप्रदेश के खरगोन जिले में नर्मदा के किनारे स्थित हैं। कहते है इस नगर की स्थापना उन्होंने ही की थी। अब इसे शिव नगरी के नाम से जाना जाता हैं। अतीत में यह महान देवी अहिल्या बाईं होलकर की राजधानी भी रहा है। वास्तुकला और स्थापत्य कला के उच्च मापदंडो के अनुसार निर्मित ये नगर अपने भव्य विशाल और तंत्र-यंत्र पुर्ण किन्तु कलात्मक शिव मंदिरों और मनोरम धाटो के लिए प्रसिद्ध हैं। कलार शब्द का शव्दिक अर्थ है मृत्यु का शत्रु या काल का भी काल अर्थात कलार वंशीयो को बाद में काल का काल की उपाधि दीं जाने लगी जो शब्दिक रूप में बिगड़ते हुए काल का काल से कल्लाल हुई और फिर कलाल और अब कलार हो गई। ज्ञातव्य है की भगवान शिव के कालातंक या मृत्युजय स्वरूप को बाद में अपभ्रश रूप में कलाल कहा जाने लगा। भगवान शिव के इसी चालातंक स्वरूप का अपभ्रश शब्द ही है कलवार। जो अब जायसवाल लिखते है।

सहस्त्रबाहु राजराजेश्वर मंदिर

राजराजेश्वर मंदिर में युगों-युगों से देसी घी के ग्यारह नंदा दीपक अखण्ड रूप से प्रज्वलित हैं। सहस्त्रबाहु कर्तावीर अर्जुन की जयंती महेश्वर में एक बड़ा त्योहार है। यह अगहन माह की शुक्ल सप्तमी को मनाया जाता है। यह उत्सव तीन दिनों तक जारी रहता है और सभी के लिए एक बड़े भंडारा के साथ समाप्त होता है। राजराजेश्वर मंदिर के बीच में शिवलिंग के रूप में राजराजेश्वर सहस्त्रार्जुन की समाधी है। आज भी उनकी समाधी स्थल में उनकी देवतुल्य पूजा होती है। उन्ही के जन्म कथा के महात्म्य के सम्बन्ध में मतस्य पुराण के 43 वें अध्याय के श्रलोक 52 की पंक्तियां द्रष्टव्य हैं।

यस्तस्य कीर्तेनाम कल्यमुत्थाय मानवः।
न तस्य वित्तनाराः स्यन्नाष्ट च लभते पुनः।।
कार्तवीर्यस्य यो जन्म कथयेदित धीमतः।
यथावत स्विष्टपूतात्मा स्वर्गलोके महितये।।

अर्थात जो प्राणी सुबह-सुबह उठकर श्री कार्तवीर्य सह्स्त्राबहुअर्जुन का स्मरण करता है उसके धन का कभी नाश नहीं होता है। यदि कभी नष्ट हो भी जाय तो पुनः प्राप्त हो जाता है। जो लोग उनके जीवन की महिमा का गुणगान करते व सुनाते है उनकी जीवन और आत्मा यथार्थ रूप से पवित्र हो जाति है। उन्हें मोक्ष का वरदान मिल जाता है।

परशुराम ने किया था वध

कहते है एक बार सहस्त्रबाहु सेना के साथ जंगल से गुजर रहा था। उस जंगल में ऋषि जमदग्नि का आश्रम था। सहस्त्रबाहु ऋषि जमदग्नि के आश्रम में आराम करने के लिए रूके। ऋषि जमदग्नि के आश्रम में कामधेनु गाय थी, जो सभी इच्छाएं पूरी करती थी। उनकी कृपा से ऋषि जमदग्नि ने सहस्त्रबाहु और सैनिकों का राजसी स्वागत किया। कामधेनु का चमत्कार देखकर सहस्त्रबाहु बलपूर्वक उन्हें अपने साथ ले जाने लगे। उस समय आश्रम में ऋषि जमदग्नि के पुत्र भगवान परशुराम नहीं थे। परशुराम जब आश्रम में आए, तो उन्हें घटना का पता चला। यह सुनकर परशुराम क्रोधित हो उठे। वे अपना परशु साथ लेकर माहिष्मती की ओर चल पड़े। सहस्त्रबाहु अभी माहिष्मती के मार्ग में ही थे कि परशुराम उनके पास जा पहुंचे। सहस्त्रबाहु ने जब देखा कि परशुराम उनसे युद्ध करने आ रहे हैं तो उन्होंने उनका सामना करने के लिए अपनी सेना खड़ी कर दीं। लेकिन परशुराम ने अकेले ही सहस्त्रबाहु की सेना का सफाया कर दिया। अंत में सहस्त्रबाहु परशुराम से युद्ध करने के लिए आएं। परशुराम ने उनकी हजार भुजाओं को अपने फरसे से काट दिया और सहस्त्रबाहु अर्जुन का वध कर दिया। प्रतिशोध लेने के लिए सहस्त्रबाहु के पुत्रों ने बाद में ऋषि जमदग्नि का वध कर दिया। अपने निर्दोष पिता की हत्या से क्रोधित हो परशुराम ने 21 बार पृथ्वी को क्षत्रिय विहिन कर दिया था।

काशी में बनेगा सहस्त्राबाहुजी मंदिर

वर्तमान में सहस्त्रबाहुजी महराज के विचारों एवं उनके पराक्रम को आगे बढ़ाने के लिए वाराणसी के मनोज जायसवाल ने बीड़ा उठाया है। वे जायसवाल क्लब के राष्ट्रीय अध्यक्ष है। उन्होंने चक्रवर्ती सम्राट भगवान सहस्त्रबाहु जी महराज के वशंज के रुप में जाना जाने वाले कलार, जायसवाल, कलवार, समेत अन्य संबंधित उपजातियों को एकजुट करने का संकल्प लिया है। श्री मनोज जायसवाल वाराणसी में जायसवाल क्लब की स्थापना की है। इसके बैनरतले वे शादी-विवाह से लेकर अन्य कार्यक्रमों के जरिए समाज को एकजुट करने में पूरी लगन एवं तन्यमता से जुटे है। उनके मेहनत व लगन का परिणाम है कि अब देशभर में एक विशाल संगठन खड़ा हो गया है।

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