कांच ही बांस के बंहगिया, बहंगी लचकत जाए

डूबते सूर्य को श्रद्धालुओं ने नमन कर दिया अर्घ्य, व्रती महिलाओं ने भगवान सूर्य की उपासना कर मांगी अपने संतान की लंबी उम्र, समृद्धि व परिवार की खुशियों की मन्नत

वाराणसी। कांच ही बांस के बंहगिया, बहंगी लचकत जाए… सूर्योपासना के पावन पर्व छठ के मौके पर तीनों लोकों में न्यारी बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी की फीजा में यह छठ का पारंपरिक गीत रच बस गया। शुक्रवार को अस्ताचगामी सूर्य को पहला अर्घ्य देने के लिए नदी घाट व सरोवरों की ओर बढते कदम और हर जुबान पर छठ मईया के गीत ने वातावरण को भक्तिमय बना दिया। पूरा शहर छठ के रंग में सराबोर नजर आया। हर तरफ उत्साह का माहौल है। गंगा नदी के किनारे आस्था का अद्भुत नजारा देखा गया। कोरोना संक्रमण के बावजूद बड़ी संख्या में लोग गंगा व नदी घाट पहुंचे और छठ पूजन कर छठ मैया के गीत गाते हुए व्रती महिलाओं ने दीप जलाकर अस्तलाचलगामी सूर्य को अर्घ्य प्रदान किया। इस तरह पूरे असीम श्रद्धा व आस्था के साथ श्रद्धालुओं ने भागवान भास्कर को पहला अर्घ्य अर्पित किया और अपने संतान की लंबी उम्र, समृद्धि व परिवार की खुशियों की मन्नत मांगी।

इस दौरान कोरोना के तहत आवश्यक सावधानी रखी गई। छठ पूजन समिति और नगर निगम द्वारा घाट पर जरूरी व्यवस्थाएं की गई हैं। शनिवार को महिलाओं द्वारा उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। इसके साथ ही चार दिवसीय छठ महापर्व का समापन होगा। घाटों पर सुबह से ही आज नजारा आम दिनों से अलग हट कर था। दोपहर बाद छठ मइया के भक्त बड़ी संख्या में डाला उठाए गंगा समेत जल स्थलों की ओर कूच कर गए। सूर्य अस्त होते ही व्रतियों का सैलाब घाट पर उमड़ गया। सायंकाल घाटों पर छठ मइया के पावन गीत गाते, गुनगुनाते कमर भर जल में खड़े होकर भगवान सूर्य देव के डूबने का इंतजार किया। आसमान में जैसे ही डूबते सूर्य की लालिमा छाते ही सस्वर मंत्रों के बीच श्रद्धालुओं ने जलांजलि व दुग्धाजंलि समर्पित कर दिया।

व्रतियों ने कमर तक पानी में पैठ कर भगवान सूर्य की प्रदक्षिणा भी की। इस दौरान वरुणा का शास्त्री घाट, कंकड़वा घाट, गंगा के राजघाट, पंचगंगा घाट, सिंधिया घाट, भोसला घाट, पांडेय घाट, मीरघाट, डा. राजेंद्र प्रसाद घाट, दशाश्वमेध घाट, तुलसीघाट, केदारघाट, अस्सी घाट सामने घाट आदि पर अपार भीड़ लगी रही। उस पार रामनगर तो इधर, डीरेका सूर्य सरोवर, कर्दमेश्वर महादेव, सारंग तालाब, अर्दली बाजार महावीर कुंड समेत जल स्थलों पर अर्घ्यदान के लिए रेला उमड़ा। ग्रामीण अंचलों में भी व्रतियों ने जोड़े नारियल, सेव, केला, घाघरा निंबू, ठेकुंआ से अर्घ्य दिया। इससे पहले घाटों पर बच्चों ने जमकर आतिशबाजी की।

बता दें, छठ महापर्व अंतर्गत 18 नवंबर को नहाय खाय से पर्व की शुरुआत के बाद दूसरे दिन गुरुवार को खरना मनाया गया। इस दिन पवित्रता से प्रसादी तैयार की गई। खरना के बाद से 36 घंटे का उपवास शुरू हो चुका है। महिलाओं द्वारा छठी माई की प्रसादी चावल, दूध के पकवान, ठेकुआ (घी, आटे से बना प्रसाद) तैयार किया गया है। छठ के तीसरे दिन शुक्रवार को छठी माता का पूजन कर घाट पर पानी में खड़े होकर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया गया। कोरोना के संक्रमण को देखते हुए छठ पर्व के दौरान आवश्यक सतर्कता बरती जा रही है।

उगते सूर्य को अर्घ्य देने का शुभ मुहूर्त

मान्यता है कि लोकआस्था और सूर्योपासना के महापर्व सूर्य, प्रकृति, जल, वायु और उनकी बहन छठी मइया को समर्पित है। छठ सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है। मान्यता है कि कोई भी व्यक्ति अगर पूरे श्रद्धा भाव से व्रत कर के सूर्य देव की उपासना करता है और उन्हें अर्घ्य देता है तो उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को छठ पूजा का अंतिम दिन मनाया जाता है। इस दिन सूर्योदय के समय सूर्य देव को अर्घ्य देने की परंपरा है। 21 नवंबर को सूर्योदय का अर्घ्य दिया जाएगा। उगते सूरज के अर्घ्य देने का शुभ मुहूर्त सुबह 06ः49 बजे है। इसके बाद पारण कर इस व्रत को पूरा किया जाता है। सूर्य को जल चढ़ाने के लिए तांबे के लोटे का उपयोग करना चाहिए। गिरते जल की धारा में सूर्यदेव के दर्शन कराना चाहिए।

छठ पूजा या व्रत के लाभ क्या हैं?

ऐसी मान्यता है कि जिन लोगों को संतान न हो रही हो या संतान होकर बार बार समाप्त हो जाती हो ऐसे लोगों को इस व्रत से अदभुत लाभ होता है। अगर संतान पक्ष से कष्ट हो तो भी ये व्रत लाभदायक होता है। अगर कुष्ठ रोग या पाचन तंत्र की गंभीर समस्या हो तो भी इस व्रत को रखना शुभ होता है। जिन लोगों की कुंडली में सूर्य की स्थिति खराब हो अथवा राज्य पक्ष से समस्या हो ऐसे लोगों को भी इस व्रत को जरूर रखना चाहिए।

छठ पूजा में महिलाएं लगाती हैं लंबा सिंदूर

संतान के अलावा छठ का व्रत पति की लंबी आयु की कामना से भी रखा जाता है। इसलिए इस पूजा में सुहाग के प्रतीक सिंदूर का खास महत्व है। इस दिन स्त्रियां अपने पति और संतान के लिए बड़ी निष्ठा और तपस्या से व्रत रखती हैं। हिंदू धर्म में विवाह के बाद मांग में सिंदूर भरने को सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। छठ पूजा में भी महिलाएं नाक से लेकर मांग तक लंबा सिंदूर लगाती हैं। मान्यता है कि मांग में लंबा सिंदूर भरने से पति की आयु लंबी होती है। कहा जाता है कि विवाहित महिलाओं को सिंदूर लंबा और ऐसा लगाना चाहिए जो सभी को दिखे। ये सिंदूर माथे से शुरू होकर जितनी लंबी मांग हो उतना भरा जाना चाहिए। मान्यता है कि जो भी महिलाएं पूरे नियमों के साथ छठ व्रत को करती हैं, छठी मइया उनके परिवार को सुख और समृद्धि से भर देती हैं।

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