वर्षों से युद्धग्रस्त अफगानिस्तान में जब भी महिलाओं का जिक्र होता है तो उनकी दयनीय स्थिति आंखों के आगे नजर आती है, लेकिन इन दिनों देश में एक ऐसी महिला नौकरशाह की चर्चा हो रही है, जो अपने प्रयासों से इस मुल्क में तालिबानी आतंकियों को अमन के रास्ते पर लाने की कोशिशें कर रही हैं। इस महिला नौकरशाह का नाम है, सलीमा मजारी। सलीमा की कोशिशों का ही नतीजा है कि बीते अक्तूबर से अब तक कुल 125 तालिबानी आतंकियों ने हथियार डालकर शांति का रास्ता चुना है। यूएई के अखबार ‘द नेशनल’ की रिपोर्ट के मुताबिक, सलीमा को देश में अमन लाने के काम में पुलिस और दूसरे सुरक्षाबलों का भी समर्थन मिल रहा है।
सलीमा ने कहा कि वह अफगानिस्तान में शांति लाना चाहती हैं, इसके लिए वह हर संभव प्रयास करेंगी। सलीमा (39) का जन्म अफगान शरणार्थी के रूप में ईरान में हुआ। उनकी परवरिश ईरान में ही हुई, लेकिन उन्होंने सोचा कि वह अपनी बाकी की जिंदगी एक शरणार्थी के तौर पर नहीं काटना चाहती हैं। उन्होंने कहा, ‘मैंने यूनिवर्सिटी से पढ़ाई पूरी की। मुझे ईरान में नौकरी भी मिल गई, फिर मैंने नौ साल पहले पति और बच्चों के साथ अफगानिस्तान लौटने का फैसला किया, क्योंकि मैं अपने मुल्क में अमन लाना चाहती थी।’
सलीमा ने बताया कि उन्हें मैनेजमेंट का अच्छा अनुभव है, जिसकी बदौलत वह सिविल सर्विस के जरिए इस पद तक पहुंची। फिलहाल उनकी तैनाती उनके जिले चारकिंत में हुई है। सलीमा यहां पर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर (कलेक्टर) के तौर पर तैनात हैं। उनकी सुरक्षा के लिए दो अंगरक्षक हमेशा तैनात रहते हैं। सलीमा ने कहा, ‘इससे पहले मैंने बंदूकों को इतने करीब से कभी नहीं देखा था, लेकिन अब गोलियों की आवाज सुनने की आदत सी पड़ गई है। मैं स्थानीय लोगों और सुरक्षाबलों के बीच समन्वय स्थापित करना चाहती हूं। अफगानिस्तान में भ्रष्टाचार बहुत ज्यादा है, इसलिए काम करना बेहद कठिन होता है।’
कलेक्टर मजारी ने कहा, ‘मेरे जिले में कई थानों पर आतंकियों ने कब्जा जमा लिया था। वे स्थानीय लोगों पर दबाव बनाते थे कि वे लोग उन्हें टैक्स दें।’ साथ ही वह सुरक्षाबलों से हथियार लूटकर भी ले जाते थे। उन्होंने कहा कि मैंने लोगों को आतंकियों से निपटने की ट्रेनिंग दिलवाई और उन्हें हथियार मुहैया करवाया। भ्रष्टाचार अधिक होने की वजह से पुलिस भी काम नहीं करती, इसलिए लोगों को खुद ही महफूज रहने के लिए तैयार किया गया।
सलीमा मजारी ने कहा कि आप जिंदगीभर जंग नहीं लड़ सकते हैं। मैंने तालिबान को भी यही बात समझाई। एक महीने पहले तालिबान ने यहां के गांव पर हमला कर कब्जा कर लिया और लोगों से टैक्स देने को कहा। जब लोगों ने ऐसा करने से मना किया तो उन्होंने महिलाओं और बच्चों की हत्या कर दी। उन्होंने कहा कि मैंने गांव के कुछ बुजुर्गों के जरिए तालिबानी आतंकियों से संपर्क किया और उन्हें अमन के लिए मनाया। मैंने उन्हें कहा कि हम दोनों ही लोगों का इस्लाम एक ही है।
मजारी ने बताया कि उन्होंने आतंकियों से कहा कि आप लोग महिलाओं को हिजाब पहनता हुआ देखना चाहते हैं, मुझे इससे कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन इस्लाम हत्या करना नहीं सिखाता है। इसके परिणामस्वरूप 125 आतंकियों ने एक माह के भीतर ही हथियार डाल दिए।
मजारी ने कहा कि पाकिस्तान स्थानीय युवाओं को भड़काने का काम करता है। युवाओं को ट्रेनिंग देकर कट्टरपंथ के रास्ते पर चलाया जाता है। बाद में ये लोग अपने ही लोगों का खून बहाते हैं। भ्रष्टाचार से तो हम लोग साथ मिलकर ही लड़ सकते हैं। मुझे उम्मीद है कि जल्द ही हजारों आतंकी हथियार छोड़ेंगे और देश की मुख्यधारा में शामिल होंगे।