बिहार विधान सभा चुनाव में ’मोदी मैजिक’ ने तेजस्वी यादव का सपना तोड़ दिया। एनडीए की जीत का श्रेय बड़े नायक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही है, इसे इनकार नहीं किया जा सकता। यह मोदी का ही कमाल है कि एनडीए को 125 सीटों पर जीत के साथ बहुमत मिली। बीजेपी को 74 और जेडीयू को 43 सीटे मिली। जबकि राजद ने 75 सीटों पर जीत दर्ज की, लेकिन उसकी सहयोगी कांग्रेस 19 सीटों पर सिमट गई। 15 साल से लगातार बिहार में नीतीश कुमार की सरकार के एंटीकंबेंसी के बावजूद ब्रांड मोदी ने खत्म कर दिया। या यू कहे मोदी…मुस्लिम और साइलेंट महिला वोटरों ने बिहार में पलट दी बाजी।
फिलहाल, बिहार चुनाव ने फिर साबित कर दिया, भारत में भरोसे की राजनीति के सबसे बड़े ब्रांड एंबेसडर नरेंद्र मोदी हैं। बीजेपी भले नीतीश के नेतृत्व में चुनाव लड़ी, लेकिन पूरे चुनाव के नेतृत्व नरेंद्र मोदी ही कर रहे थे। बिहार चुनाव में बीजेपी की जीत कोरोना के वक्त मोदी सरकार के काम पर मुहर है। चीन की गुरुर की गर्दन तोड़ने पर पहला जनमत है और आत्मनिर्भर भारत के अभियान पर विजय दस्तक है। इसका परिणाम यह है कि बिहार में एक बार फिर एनडीए की अगुवाई में सरकार बनने जा रही है। तमाम एग्जिट पोल को पछाड़ते हुए नीतीश कुमार की अगुवाई में एनडीए ने जीत दर्ज की और अपने दम पर बहुमत के आंकड़े को पार कर लिया। युवा तेजस्वी यादव की अगुवाई में लड़ा महागठबंधन जादुई नंबर पाने से चूक गया।
एनडीए की जीत की हीरो इस बार भाजपा रही, जिसने जदयू से कहीं ज्यादा सीट हासिल की। जबकि नीतीश कुमार के प्रति जनता में जबरदस्त गुस्सा था। लेकिन जब बिहार में मोदी ने एनडीए की ओर से मोर्चा संभाला तो हवा का रुख बदल दिया। दर्जनभर सभाएं कर महिला हो या युवा या प्रवासी मजदूर सबकों अपने पाले में ला खड़ा किया। केंद्र की योजनाओं का जिक्र हो, या राष्ट्रीय मुद्दों को लेकर विपक्ष पर वार करना हो या फिर राजद के जंगलराज का हवाला देकर तेजस्वी पर निशाना साधना रहा हो, मोदी ने बड़े ही सधे अंदाज में जनता के सामने रख न सिर्फ नाराजगी दूर की, बल्कि बिहार को विकासवाद के मुद्दे से जोड़ा, डबल युवराज के मुकाबले डबल इंजन का नारा दिया और भ्रष्टाचार मुक्त सुशासन पर भरोसा बढ़ाया, बिहार को अहंकार की हार और परिश्रम की जीत के नारे के साथ जोड़ा, नीतीश सरकार विरोधी लहर को जय श्रीराम के नारों से जोडा। परिणाम एनडीए को बहुमत तक पहुंचा दिया।
इस जीत में शराबबंदी व उज्ज्वला योजना, शौचालयों निर्माण, पक्का घर, मुफ्त राशन, आर्थिक मदद जैसी कई ऐसी योजनाओं से प्रभावित साइलेंट महिला वोटरों की बड़ी भूमिका रहीं। खुद पीएम मोदी ने बिहार चुनाव के नतीजों के बाद महिला वोटरों को खास तौर पर धन्यवाद किया। मतलब साफ है बिहार चुनाव परिणाम उन टीवी चैनलों के मालिकानों को तमाचा है, जो देश के 44 हजार घरों में टीआरपी मापने वाले मीटर्स लगाकर तय कर देते है कि देश के अस्सी, नब्बे करोड़ लोग क्या देखना चाहते हैं? यानी अब चुनाव में मुट्ठी भर लोगों की राय लेकर पूरा देश क्या सोचता है, का नौटंकी नहीं चलेगी। अब वहीं राज करेगा जो भ्रष्टाचार, आतंकवाद, मुस्लिमपरस्ती से दूर सबका साथ सबका विकास की बात करेगा। परिवारवाद से दूर रहेगा। जनता की संकट में साथ रहेगा, सबके स्वास्थ्य का ख्याल रखेगा। राफेल की झूठ, युवाओं को नौकरी का झांसा व किसानों को भ्रमित नहीं करेगा। इसकी गवाही चुनाव में कांग्रेस का खराब परफॉर्मेंस है, जो इस महागठबंधन में 70 सीटों पर लड़ी, लेकिन सिर्फ 20 सीटों पर जीती।
कांग्रेस अगर 10-15 सीटों पर और बढ़त बना लेती तो तेजस्वी यादव सीएम की कुर्सी तक पहुंच सकते थे। जबकि प्रधानमंत्री इस चुनाव में 12 सभाएं की उनमें से अधिकतर सीटें एनडीए की झोली में आयी। वहीं राहुल गांधी की 6 रैलियों कर सिर्फ एक ही प्रत्याशी को जीता पाएं। अब नेताओं को समझना होगा कि जनता सत्ता की मालिक होती है और चाबी उसके पास होती है। सत्ता में वही रहेगा जो भ्रष्टाचार से दूर रहकर बिजली, पानी, स्वास्थ्य और सड़क पर काम करेगा। जनता के मन को जीतेगा। सामान्य गरीब जनता, किसान, मजदूर के लिए कुछ करेगा। वैचारिक अस्पृश्यता और घृणा पत्रकारिता का पर्याय नहीं हो सकती, यह बिहार ने सिद्ध किया। जो सामने है, वह न देखते हुए वाम-दाम दिल्ली की मीडिया ने वह बताया, जो उसे सुहाता था। लेकिन बिहार में महिलाओं की बढ़ती चुनावी सक्रियता ने नरेंद्र मोदी के डबल-इंजन को अपनी सुरक्षा, समृद्धि और विकास के लिए चुना। राजद-कांग्रेस-वामपंथियों का शोर पूर्णतः नकारात्मकता और अपशब्दों से भरा हुआ था, जिसमें घर-परिवार की बात नहीं, बल्कि शत्रुतापूर्ण राजनीतिक शब्द-हिंसा का आतंक था।
बिहार ने गड्ढों में सड़कें, तीन घंटे बिजली, जातिगत नरसंहार, कम्युनिस्टों की अराजकता, फिरौती के लिए अपहरण, कॉलेजों का सर्वनाश, व्यापार-उद्योग का भयादोहन और सड़कों पर मंडराते निरंकुश माफिया का राज देखा था। नीतीश ने जोखिम उठाया-नशाबंदी की, कॉलेजों में कक्षाएं शुरू हुईं, गुंडों में भय व्यापा, अपहरण-नरसंहार पर रोक लगी, कम्युनिस्टों को नाथा, मोदी-शाह का साथ और विश्वास लिया और इसके लिए देश की सेकुलर मीडिया का विरोध सहा। विकास होता है, तो आंखों से दिखता है। जो अराध्य देव श्रीराम का तिरस्कार करता, कश्मीर में तिरंगे की प्रभुता पर पलीता लगाता है, जवानों का अनादर करता है, विभाजनवादियों को प्रश्रय देगा, उस अब जनता बर्दास्त नहीं करेगी। जिहादी-कम्युनिस्ट-कांग्रेस के घृणा पर टिके हिंदू विरोध की राजनीति नहीं चलेगी। जातिगत ध्रुवीकरण नहीं चलेगा।