बिहार विधानसभा चुनावों में करीब सात लाख लोगों ने नोटा (इनमें से कोई नहीं) के विकल्प का इस्तेमाल किया। चुनाव आयोग द्वारा मंगलवार रात जारी आंकड़ों में यह जानकारी दी गई, तब तक सभी परिणामों की घोषणा नहीं हुई थी। आयोग के मुताबिक फिलहाल 6,89,135 लोगों ने नोटा विकल्प का इस्तेमाल किया है। ये संख्या कुल मतदाताओं की करीब 1.69 प्रतिशत है। राज्य में ऐसी कई सीटें हैं जहां नोटा को प्रत्याशियों के जीत के अंतर से ज्यादा वोट प्राप्त हुए।
मालूम हो कि इस विकल्प की शुरुआत इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) में 2013 में की गई थी। सितंबर, 2013 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद आयोग ने ईवीएम में अंतिम विकल्प के तौर पर नोटा का बटन जोड़ा था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पहले जो लोग किसी भी प्रत्याशी को वोट नहीं देना चाहते थे, उनके पास एक फार्म भरने का विकल्प होता था जिसे फार्म 49-ओ कहा जाता था, लेकिन इसे भरने से मतदाता की गोपनीयता भंग होती थी।
2015 में नोटा का किया था जमकर इस्तेमाल
2015 में बिहार में विधानसभा चुनाव में जनता ने जमकर नोटा विकल्प का इस्तेमाल किया था। चुनाव में करीब साढ़े नौ लाख लोगों ने नोटा का प्रयोग किया था जो कि कुल वोट शेयर का 2.5 प्रतिशत था। चुनावों में 21 सीटें ऐसी थीं, जहां नोटा जीत के अंतर से अधिक रहा था। इसमें से 7 सीटें बीजेपी ने, 6 आरजेडी ने, पांच जदयू ने, दो कांग्रेस ने और 1 सीपीआई (एमएल) (एल) ने जीती थी। वहीं 38 सीटों पर नोटा तीसरे नंबर पर था तो 65 सीटों पर नोटा चौथे नंबर पर था।