भले पूरे परिणाम अभी तक नहीं आए हैं पर इतने तो आ ही गए हैं कि आप बिहार के मतदाताओं को प्रणाम कीजिए, सलाम कीजिए, सैल्यूट कीजिए, शुक्रिया अदा कीजिए कि बिहार को सेक्यूलर, जंगलराज के हाथों में जाने से पूरी तरह रोक लिया है। जाति और धर्म के फच्चर से भले पूरी तरह नहीं निकल पाए पर 10 लाख फर्जी नौकरी के झांसे में नहीं आए बिहार के लोग। इस से न सिर्फ बिहार का भला हुआ है, बल्कि देश का भी भला हुआ है। सारे बिकाऊ एग्जिट पोल के अनुमान कुचलते हुए बिहार के मतदाता ने जो क्लियरकट जनादेश दिया है, सेक्यूलर और जंगलराज के पैरोकारों को इसे सहर्ष स्वीकार कर लेना चाहिए। क्यों कि फासिज्म का रास्ता गुड नहीं होता। जनादेश और लोकतंत्र का सम्मान करना अब से सही, सीख लीजिए। देश का ही नहीं, आप जंगलराज वालों का भी भला होगा। कठमुल्ले सेक्यूलरिज्म का तो खैर अब पुतला ही शेष है। हां, लेकिन ई वी एम को दोष देने की बीमारी का कोई इलाज नहीं है।
याद कीजिए ओपिनियन पोल में एनडीए को जब न्यूज चैनलों ने जिताया था तब हिप्पोक्रेट सेक्यूलर के पेट में बहुत तेज़ मरोड़ उठा था। क्या-क्या नहीं बका था। लेकिन जब सभी एग्जिट पोल में एक सुर से महागठबंधन की सरकार बनने की बात हुई तो सभी हिप्पोक्रेट सेक्यूलर के चेहरे गुलाब की तरह खिल गए। आज सुबह तक खिले रहे। दस-ग्यारह बजे तक यही आलम था। पर अब उन खिले फूलों पर गोया कांटे उग आए हैं। पता तो यह किया ही जाना चाहिए कि यह फ्राड एग्जिट पोल किस ने प्रायोजित किए थे। क्यों कि एग्जिट पोल का समूचा आकलन ज़मीन से पूरी तरह गायब दिख रहा है। दिलचस्प यह कि एग्जिट पोल के बाद जिस तरह उस लंपट तेजस्वी की आरती उतारने में यह सेक्यूलर हिप्पोक्रेट लग गए कि कोर्निश बजाने और चमचई में चंदरबरदाई फेल हो गए। बड़े-बड़े पढ़े-लिखे, अपने को विद्वान और प्रोफेशनल बताने वाले पत्रकार, बुद्धिजीवी, लेखक, कवि भी नौवीं फेल और लंपट तेजस्वी यादव की मिजाजपुर्सी में दंडवत लेट गए थे। क्या तो बिहार को एक डायनमिक नेता मिल गया है जिस ने मोदी और नीतीश को धूल चटा दिया है। आदि-इत्यादि। तुर्रा यह कि तेजस्वी भी अपनी पीठ ठोंकते हुए बताने लगे कि दस लाख नौकरी की बात इकोनॉमिक्स के विद्वानों से पूछ कर कही थी। जाने कौन इकोनॉमिक्स के चूतियम सल्फेट विद्वान् थे। बहरहाल अब आज तक चैनल पर एक सैफोलॉजिस्ट प्रदीप गुप्ता एग्जिट पोल के लिए माफी मांग रहा है।
जो भी हो सेक्यूलरिज्म की हिप्पोक्रेसी और सनक में भी किसिम-किसिम के आनंद हैं। यह भी एक अलग मजा है कि मोदी से नफरत की नागफनी इतनी गहरी है कि ट्रंप की हार में भी लोग आनंद खोज लेते हैं। क्यों कि मोदी से दोस्ती थी। अरे दोस्ती तो ओबामा से भी थी। ओबामा से भेंट में ही सूट-बूट की सरकार की बात निकली थी। अच्छा क्या बाइडेन से दोस्ती नहीं होगी क्या। अच्छा दुनिया में दो-चार राष्ट्राध्यक्षों को छोड़ कर किस से दोस्ती नहीं है मोदी का। किस-किस का बुरा सोचेंगे भला। छोड़िए और तो और अर्णब गोस्वामी के जेल जाने में भी यह विघ्नसंतोषी लोग सुख ढूंढ सकते हैं। क्यों कि वह मोदी के एजेंडे पर काम करता है। अर्णब गोस्वामी मसले पर खुश होने वाले पत्रकार इतने मतिमंद हैं कि यह नहीं सोच पा रहे कि अगर केंद्र सरकार या बाकी प्रदेश सरकारें भी पत्रकारों से अर्णब गोस्वामी जैसे सुलूक पर उतर आईं तो ? कहां जाएंगे और किस से फ़रियाद करेंगे। कोई साथ तो आएगा नहीं। क्यों कि अर्णब गोस्वामी अब सरकारों को लिए नजीर बन गए हैं। कि कोई सरकार किसी पत्रकार से कोई भी सुलूक कर दे, कोई क्या उखाड़ लेगा?
कुछ भी हो यह बात तो तय है कि जो भी कोई मोदी से चाहे-अनचाहे जुड़ा हुआ हो उस की हार, उस का अपमान ही उन का सुख है। उन का परम आनंद है। कोरोना में मज़दूरों के पलायन के कष्ट को भी मोदी से बदला लेने के लिए औजार बनाने का पूरे वीर रस में आह्वान कर रहे थे। भूल गए यह लोग मुफ्त राशन, मुफ्त गैस, मुफ्त आवास, जनधन और किसानों के खाते में पैसा भूल गए। शायद इसी लिए बिहार तो बिहार बाकी प्रदेशों में हुए उपचुनाव में भी मोदी की बल्ले-बल्ले हो गई है। फिर बिहार ही क्यों, क्या उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात क्या तेलंगाना। मोदी के जादू में कहीं कोई कमी नहीं है। हर जगह जीत ही जीत है। आज की तारीख में बिहार में भी एन डी ए अगर जीवित दिख रही है तो सिर्फ मोदी के जादू के बूते। नीतीश तो हम तो डूबेंगे सनम, तुम को भी ले डूबेंगे वाली अदा के मारे हुए हैं। बाकी दिल के बहलाने के लिए ई वी एम ऊर्फ एम वी एम है, प्रशासनिक दुरूपयोग है और हेन-तेन है। इस सब का पूरा मजा लीजिए। और फिर दुहरा रहा हूं कि आप बिहार के मतदाताओं को प्रणाम कीजिए, सलाम कीजिए, सैल्यूट कीजिए, शुक्रिया अदा कीजिए कि बिहार को सेक्यूलर, जंगलराज के हाथों में जाने से पूरी तरह रोक लिया है।