बच्चों के भविष्य की चिंता हर माता-पिता को रहती है। पढ़ाई चाहे बेसिक लेवल पर हो या हायर लेवल पर, बहुत महंगी है। माता-पिता इसके लिए जरूरी रकम बचाने का प्रयास भी करते हैं। लेकिन एक अहम मुद्दा ऐसा है, जिसे लेकर लोग कम जागरूक हैं। यह मुद्दा है बच्चों को कमाई और बचत जैसी बातों के बारे में समझाना। हर माता-पिता का प्रयास रहता है कि बच्चों के अच्छे भविष्य के लिए बचत करें। इस दिशा में सबसे बड़ी समस्या वे प्रोडक्ट हैं, जिनको खासतौर पर इसी मकसद के नाम पर बेचा जा रहा है। ‘अगर आप अपने बच्चे से प्यार करते हैं, तो हमारा प्रोडक्ट खरीदें।’ यह बहुत सरल, सीधी और गुमराह करने वाली ट्रिक है।
हेल्थ ड्रिंक से लेकर कार बेचने तक इस तरह की ट्रिक अपनाई जाती है। लेकिन फाइनेंशियल प्रोडक्ट का मामला अलग है। इंश्योरेंस के साथ म्यूचुअल फंड प्रोडक्ट जिनमें चाइल्ड या चिल्ड्रेन शब्द का इस्तेमाल होता है, काफी समय से बाजार में हैं। हर ओर से सुन-सुन कर अभिभावक मान लेते हैं कि टैक्स प्लान या पेंशन प्रोडक्ट की तरह चाइल्ड प्लान भी पर्सनल फाइनेंस का अभिन्न अंग है। दुर्भाग्य से चाइल्ड प्लान मार्केटिंग से जुड़ा शब्द है और फाइनेंशियल मामलों से इसका कोई लेना देना नहीं है।
दुर्भाग्य यह भी है कि बाजार नियामक सेबी ने फंड की कैटेगरी तय की तो चिल्ड्रेन प्लान के गुमराह करने वाले विचार को भी आशीर्वाद दे दिया। ऐसे प्रोडक्ट की बिक्री के लिए इस बात पर जोर दिया जाता है कि आप इसमें निवेश करें और रकम का इस्तेमाल बच्चे की कॉलेज फीस के लिए करें। हालांकि इनसे मिलने वाला रिटर्न सामान्य रकम है। भारत में मौजूदा नियम कानून के तहत बच्चों के भविष्य की जरूरतों को पूरा करने के लिए खास तौर पर बनाए गए फाइनेंशियल प्रोडक्ट के लिए कोई विशेष टैक्स छूट या दूसरी सुविधा उपलब्ध नहीं है।
निवेश के लिए आपको समय और जरूरत का अनुमान लगाना होगा। इसके बाद आप निवेश के लिए ऐसे विकल्प का चुनाव कर सकते हैं, जो आपकी जरूरत के हिसाब से सही हो। इसमें चाइल्ड प्लान वाला हिस्सा बेकार है। बच्चों और रकम को लेकर एक दूसरा मुद्दा भी है।
कम महत्वपूर्ण लगने वाली यह बात लंबी अवधि में बहुत अहम है। हम में से ज्यादातर लोग बच्चों को पैसे के बारे में कुछ नहीं सिखाते। किशोरावस्था तक पहुंच गए बच्चे भी कमाई, बचत और निवेश के बारे में बहुत कम जानते हैं। उन्हें नहीं पता होता कि रकम कैसे काम करती है? निवेश क्या है और रिटर्न कैसे मिलता है? समय के साथ कुछ चीजें सस्ती और कुछ महंगी क्यों होती जाती हैं? ऐसे ही बहुत से सवालों के जवाब उनके पास नहीं होते। इस मामले में स्कूल के भरोसे बैठना भी गलत है। स्कूलों में यह नहीं सिखाया जाता। वहां बच्चा सीखता भी है, तो बस अन्य विषयों की तरह रट लेता है। उसका वास्तविक जीवन से कोई लेना देना नहीं होता। बच्चों के फाइनेंशियल फ्यूचर के लिए सबसे अच्छी चीज आप यह कर सकते हैं कि उनको यह बात समझाएं कि रकम काम कैसे करती है। यह सीख या जानकारी रकम से ज्यादा उपयोगी हो सकती है।