सर्वश्रेष्ठ चिकित्सीय सेवाएं देने वाले शहरों में से एक राष्ट्रीय राजधानी में कोरोना वायरस से मरने वालों की संख्या कम नहीं हो रही है। स्थिति यह है कि पिछले आठ में से सात दिन रोज 40 से ज्यादा लोगों ने संक्रमण के चलते दम तोड़ दिया है। इतना ही नहीं दिल्ली में मृत्युदर राष्ट्रीय औसत से काफी ज्यादा है।
बेहतर उपचार और आईसीयू केयर होने के बावजूद राजधानी में मौत के बढ़ते आंकड़े गंभीर सवाल खड़ा कर रहे हैं। दिल्ली सरकार के हेल्थ बुलेटिन के अनुसार अब तक राजधानी में कोरोना वायरस से 6652 लोगों की मौत हो चुकी है। दिल्ली में कोरोना वायरस की मृत्युदर 1.65 फीसदी है जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह दर 1.49 फीसदी है।
इन्हीं आंकड़ों को लेकर पिछले सप्ताहों की तुलना करें तो दिल्ली में सबसे ज्यादा मौतें 26 अक्तूबर को दर्ज की गईं, जब एक दिन में 54 लोगों की मौत हुई थी। इससे पहले 16 जून को एक दिन में 437 मौतें दर्ज की गई थीं हालांकि ऑडिट कमेटी तक जानकारी देरी से पहुंचने की वजह से इनके आंकड़े बाद में सामने आए थे। जबकि मौतें पहले ही हो चुकी थीं।
रोजाना जारी होने वाले बुलेटिन के ही अनुसार बीते 26 अक्तूबर से अब तक रोजाना 40 से ज्यादा लोगों की मौत हुई है। केवल 29 अक्तूबर को 27 लोगों की मौत दर्ज की गई। दिल्ली सरकार के ही अनुसार राजधानी में बिस्तरों की कमी नहीं है।
आईसीयू में पर्याप्त बिस्तर हैं और समय पर मरीजों को उपचार मिल रहा है लेकिन कोरोना उपचार में ही रात दिन सेवा में जुटे डॉक्टरों के अनुसार दिल्ली में रोजाना मौतें बढ़ने के पीछे कई बड़े कारण हो सकते हैं। इनमें से एक मरीज के समय पर अस्पताल न पहुंचना बड़ा कारण है। जबकि दूसरे अस्पतालों से रेफर होने या फिर सरकारी अस्पतालों में लंबा इंतजार होने के बावजूद भर्ती न होना भी कारण हो सकते हैं। हालांकि इन कारणों को लेकर दिल्ली सरकार को समीक्षा करनी चाहिए।
वहीं केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि सरकारों के दावे भले ही कुछ और हो सकते हैं लेकिन आंकड़ों की गवाही कुछ और ही है। दिल्ली के अस्पतालों में पर्याप्त बिस्तर हो सकते हैं लेकिन मौत का आंकड़ा बढ़ने से बिस्तर खाली होने का कोई औचित्य नहीं बचता है। उन्होंने कहा कि दिल्ली सरकार को एक बार फिर अपनी रणनीति पर पुन: विचार की आवश्यकता है। अस्पतालों के स्तर पर मौत को लेकर एक सूची तैयार करनी चाहिए और उन पर निगरानी बढ़ानी चाहिए।