यूपी सहकारी ग्राम विकास बैंक की संगोष्ठी में छाया मुद्दा
लखनऊ : सहकार भारती द्वारा प्रदेश में आदर्श सहकारी अधिनियम लागू करने के सम्बन्ध में उ.प्र.सहकारी ग्राम विकास बैंक माल एवेन्यू में आहूत संगोष्ठी में सहकारी संस्थाओं को पूरी स्वायत्तता एवं स्वतंत्रता देने निबंधक एवं उसके तंत्र के आधिपत्य को समाप्त करने का मुद्दा छाया रहा। चेयरमैन यू.पी.सी.एल.डी.एफ वीरेन्द्र तिवारी ने सहकारी अधिनियम 1965 की धारा 31 मे संशोधन कर कर्मचारियों के निलम्बन एवं स्थानान्तरण के अधिकार को पुनः प्रबंध समिति को दिए जाने की मांग उठाई तो विधायक राजीव सिंह ने 97 वें संवाधानिक संशोधन को प्रदेश सरकार द्वारा वर्ष 2013 मे स्वीकार कर लिए जाने के बाद भी निबंधक द्वारा स्वयं इसका पालन न करने का उदाहरण देते हुए कहा कि शीर्ष सहकारी संस्थाओं की आडिटेड बैलेशीट विधान सभा के पटल पर आज तक नही रक्खी गयी। यूपी सहकारी ग्राम विकास बैंक के सहायक महाप्रबंधक अनिल पाण्डे ने कहा कि दिर्धकालीन संरचना मे कार्य कर रहे देश भर के भूमि विकास बैंक उपेक्षित है यदि सरकार इन्हें चलाना चाहती है तो इन बैंकों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर नीति बनाई जानी आवश्यक है। श्री पाण्डे ने बैघनाथन-2 की संस्तुतियों पर विचार करने का सुझाव दिया गया।
मुख्य अतिथि रिजर्व बैंक के निदेशक सतीश मराठे द्वारा अपने संबोधन मे कहा गया कि सहकारी समिति अधिनियम 1965 मे निबंधक को सहकारी समितियों के निबंधन, आडिड, निरीक्षण एवं विवादों के निपटारे के ही अधिकार है परन्तु उत्तर प्रदेश की अधिकतर संस्थाओं मे निबंधक एवं उनका तंत्र निगरानी एवं नियंत्रण की बजाय काबिज रहा है जिससे प्रदेश मे सहकारिता आंदोलन समाप्त हो गया उन्हो ने सहकार भारती के कार्य कर्ताओं से सहकारी कानूनों के उल्लंघन पर आर.टी.आई का प्रयोग कर सक्षम स्तर पर विरोध दर्ज कराने एवं 97 वें संवैधानिक संशोधन के अनुसार माडल सहकारी अधिनियम मसौदा सरकार के समक्ष प्रस्तुत किया जाय। श्री मराठे ने भूमि विकास बैंकों के सम्बन्ध में भी राष्ट्रीय स्तर पर कारगर निति बनाए जाने की आवश्यकता बताया। गोष्ठी मे आर.पी.बघेल, डी.पी.पाठक तथा द्वारिका प्रसाद ने भी अपने विचार रखे।