वयं राष्ट्रे जागृयाम ।(68)
-विवेकानंद शुक्ला
अफ़सोस तो ये है की स्वतंत्रता के सत्तर सालों बाद भी ये छद्म बौद्धिक तथा पदार्थवादी लम्पट वामपंथी राष्ट्रीय अस्मिता और सांस्कृतिक गौरव को ख़त्म करने का कोई भी कसर नही छोड़ते हैं।सभी हिंदुस्तानियों में अपनी संस्कृति के ख़िलाफ़ हीन भावना को भरने का कोई मौक़ा नही छोड़ते हैं।इंसान के स्वाभाविक दुर्गुणो और वहशीपन का कारण सीधे सनातन संस्कृति के ग्रंथों,प्रतीकों और परम्पराओं पर थोप देने का दुराग्रही चलन बन गया है। जैसे अंग्रेज़ों ने हिंदुस्तान को ग़ुलाम बनाने के बाद अपने को बेहतर साबित करने के लिए सनातन संस्कृति और परम्पराओं को नीचा दिखाने के लिए हिंदुस्तान को असभ्य और सँपेरों तथा मदारियों का देश घोषित कर दिया।आज वही अंग्रेज़ भारतीय सनातन संस्कृति की देन ‘अध्यात्म,ध्यान और योग’ के पीछे पागल हो कर घूम रहे हैं। इन देहवादी तथा भोगवादी खैराती वामपंथियों से कोई पूछे तो कि अन्य पंथों के ग्रंथों,प्रतीकों और त्योहारों पर ऊँगली उठाने की हिम्मत कहाँ घुस जाती है? सनातन संस्कृति की उदारता का नाजायज़ फ़ायदा कब तक उठाते रहोगे?अब इनको इन्ही के ज़ुबान और तरीक़ों में जबाब देने का वक़्त आ गया है !
इनकी मानसिकता को समझने के लिए एक डा.विवेक आर्य की पोस्ट साझा कर रहा हूँ…
1. क्या हिन्दू देवियों के चित्र को विकृत रूप में दर्शाने का उद्देश्य नारी के अधिकारों के नाम पर हिन्दू देवियों के प्रति हिन्दू समाज के युवाओं में आक्रोश भरना नहीं है?
2. षड़यंत्र उस समय गया जब नवरात्र आरम्भ हो रहे है। नवरात्र पर्व को हिन्दू समाज नौ देवियों की पूजा के प्रतीक पर्व के रूप में बनाता है। इस अवसर पर व्रत और स्तुतिगान के साथ साथ कन्यायों को यजमान अपने घर पर भोजन के लिए आमंत्रित करते हैं। आपको जानकर अचरज होगा कि सम्पूर्ण विश्व में किसी भी मत-सम्प्रदाय में किसी भी अवसर पर लगातार 9 दिनों तक इस प्रकार से देवी के रूप में कन्या को प्रतिष्ठित नहीं किया जाता। जैसा हिन्दू समाज में नवरात्र के अवसर पर किया जाता हैं। इसका अर्थ क्या हिन्दू युवाओं को भड़का कर नास्तिक बनाना नहीं निकलता?
3. हिन्दू समाज की इस नारी जाति के सम्मान की परम्परा का उद्गम वेदों से है। वेदों में नारी की स्थिति अत्यंत गौरवास्पद वर्णित हुई हैं। वेद की नारी देवी है, विदुषी है, प्रकाश से परिपूर्ण है, वीरांगना है, वीरों की जननी है, आदर्श माता है, कर्तव्यनिष्ट धर्मपत्नी है, सद्गृहणी है, सम्राज्ञी है, संतान की प्रथम शिक्षिका है, अध्यापिका बनकर कन्याओं को सदाचार और ज्ञान-विज्ञान की शिक्षा देनेवाली है, उपदेशिका बनकर सबको सन्मार्ग बतानेवाली है ,मर्यादाओं का पालन करनेवाली है, जग में सत्य और प्रेम का प्रकाश फैलानेवाली है। यदि गुण-कर्मानुसार क्षत्रिया है,तो धनुर्विद्या में निष्णात होकर राष्ट्र रक्षा में भाग लेती है। यदि वैश्य के गुण कर्म है उच्चकोटि कृषि, पशुपालन, व्यापार आदि में योगदान देती है और शिल्पविद्या की भी उन्नति करती है। वेदों की नारी पूज्य है, स्तुति योग्य है, रमणीय है, आह्वान-योग्य है, सुशील है, बहुश्रुत है, यशोमयी है,उषा के समान प्रकाशवती है, वीरांगना है,वीर प्रसवा है, विद्या अलंकृता है,स्नेहमयी माँ है, अन्नपूर्णा हैं। ऐसी महान स्तुति, प्रशंसा , गुणगान वेदों में नारी की किया गया हैं। नारी के लिए वेदों में वर्णित ऐसे महान आदर्श विचारों को अगर कोई पढ़ ले तो न केवल उनका नारी जाति के लिए सम्मान बढ़ जायेगा अपितु वेदों के प्रति भी उनकी आस्था बढ़ जाएगी। अब विधर्मी और साम्यवादी मानसिकता रखने वालों को यह कैसे सहन होता। उनका उद्देश्य तो केवल वैदिक मान्यताओं को विकृत रूप में पेश करना है। क्या इसलिए उन्होंने अपना यह कुचक्र रचा?
4. नारी के प्रति हिंसा का हमारी वैदिक विचारधारा ऐसे कोई सम्बन्ध ही नहीं हैं। आपको जानकर अच्छा लगेगा कि संसार में केवल वैदिक विचारधारा में नारी को पुरुष से श्रेष्ठ बताया गया हैं। मत-मतान्तर की आसमानी किताबों जैसे बाइबिल और क़ुरान में नारी को पुरुष के समक्ष छोड़िये पुरुष से निकृष्ट बताया गया हैं। बहुत लम्बे काल तक तो ईसाई समाज नारी में आत्मा का होना ही नहीं मानता था, यूरोप में नारी को वोट देने तक का अधिकार न था, उन्हें चुड़ैल खाकर जीवित जला दिया जाता था। क़ुरान में नारी की तुलना खेती/फ़सल से की गई है। हलाला ,मुता, बहुविवाह, तीन तलाक आदि विषयों पर मुस्लिम नारी के अधिकारों को लेकर यह साम्यवादी जमात कभी भी कोई टिप्पणी नहीं करती। इसे आप पक्षपात पूर्ण व्यवहार नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे?
5. वेदों में जैसा नारी को सम्मान देने का जो सन्देश दिया गया है। अगर कोई उस सन्देश के बिलकुल विपरीत आचरण करे। तो उसका दोष आप वेदों को देंगे अथवा उसके विपरीत व्यवहार करने वाले को देंगे। साधारण सा उत्तर है दोषी व्यक्ति है धर्मग्रंथ नहीं। फिर भी जबरन वेद, मनुस्मृति आदि को निशाना बनाकर उनकी विकृत व्याख्या को प्रचारित कर, हिन्दुओं की परम्पराओं का उपहास कर, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर यह जो वैचारिक प्रदुषण फैलाया जा रहा हैं। उससे युवाओं की अपरिपक्व सोच को भ्रमित किया जा रहा हैं। उन्हें नास्तिक बनया जा रहा है। इस षड़यंत्र से समाज की रक्षा करना हमारा परम उद्देश्य हैं।
(साभार : डा.विवेक आर्य)
मेरा देश बदल रहा है , ये पब्लिक है , सब जानने लगी है … जय हिंद-जय राष्ट्र !
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