प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्लॉग लिखकर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) को श्रद्धांजलि अर्पित की है. साथ ही उनके राजनीतिक जीवन और उनसे मिलने की अपनी कहानी बयां की है.
पीएम मोदी ने कहा, अटल जी अब नहीं रहे. मन नहीं मानता. अटल जी, मेरी आंखों के सामने हैं, स्थिर हैं. जो हाथ मेरी पीठ पर धौल जमाते थे, जो स्नेह से, मुस्कराते हुए मुझे अंकवार में भर लेते थे, वे स्थिर हैं. अटल जी की ये स्थिरता मुझे झकझोर रही है, अस्थिर कर रही है. एक जलन सी है आंखों में, कुछ कहना है, बहुत कुछ कहना है लेकिन कह नहीं पा रहा. मैं खुद को बार-बार यकीन दिला रहा हूं कि अटल जी अब नहीं हैं, लेकिन ये विचार आते ही खुद को इस विचार से दूर कर रहा हूं. क्या अटल जी वाकई नहीं हैं? नहीं. मैं उनकी आवाज अपने भीतर गूंजते हुए महसूस कर रहा हूं, कैसे कह दूं, कैसे मान लूं, वे अब नहीं हैं.
उन्होंने कहा, वे पंचतत्व हैं. वे आकाश, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, सबमें व्याप्त हैं, वे अटल हैं, वे अब भी हैं. जब उनसे पहली बार मिला था, उसकी स्मृति ऐसी है जैसे कल की ही बात हो. इतने बड़े नेता, इतने बड़े विद्वान. लगता था जैसे शीशे के उस पार की दुनिया से निकलकर कोई सामने आ गया है, जिसका इतना नाम सुना था, जिसको इतना पढ़ा था, जिससे बिना मिले, इतना कुछ सीखा था, वो मेरे सामने था. जब पहली बार उनके मुंह से मेरा नाम निकला तो लगा, पाने के लिए बस इतना ही बहुत है. बहुत दिनों तक मेरा नाम लेती हुई उनकी वह आवाज मेरे कानों से टकराती रही. मैं कैसे मान लूं कि वह आवाज अब चली गई है.
मोदी ने कहा, कभी सोचा नहीं था कि अटल जी के बारे में ऐसा लिखने के लिए कलम उठानी पड़ेगी. देश और दुनिया अटल जी को एक स्टेट्समैन, धारा प्रवाह वक्ता, संवेदनशील कवि, विचारवान लेखक, धारदार पत्रकार और विजनरी जननेता के तौर पर जानती है, लेकिन मेरे लिए उनका स्थान इससे भी ऊपर का था. सिर्फ इसलिए नहीं कि मुझे उनके साथ बरसों तक काम करने का अवसर मिला, बल्कि मेरे जीवन, मेरी सोच, मेरे आदर्शों-मूल्यों पर जो छाप उन्होंने छोड़ी, जो विश्वास उन्होंने मुझ पर किया, उसने मुझे गढ़ा है, हर स्थिति में अटल रहना सिखाया है.
उन्होंने कहा, उनके लिए राष्ट्र सर्वोपरि था-बाकी सब का कोई महत्त्व नहीं. इंडिया फर्स्ट-भारत प्रथम, ये मंत्र वाक्य उनका जीवन ध्येय था. पोखरण देश के लिए जरूरी था तो चिंता नहीं की प्रतिबंधों और आलोचनाओं की, क्योंकि देश प्रथम था. सुपर कंप्यूटर नहीं मिले, क्रायोजेनिक इंजन नहीं मिले तो परवाह नहीं, हम खुद बनाएंगे, हम खुद अपने दम पर अपनी प्रतिभा और वैज्ञानिक कुशलता के बल पर असंभव दिखने वाले कार्य संभव कर दिखाएंगे. और ऐसा किया भी. दुनिया को चकित किया. सिर्फ एक ताकत उनके भीतर काम करती थी- देश प्रथम की जिद.
मोदी ने लिखा, काल के कपाल पर लिखने और मिटाने की ताकत, हिम्मत और चुनौतियों के बादलों में विजय का सूरज उगाने का चमत्कार उनके सीने में था तो इसलिए क्योंकि वह सीना देश प्रथम के लिए धड़कता था. इसलिए हार और जीत उनके मन पर असर नहीं करती थी. सरकार बनी तो भी, सरकार एक वोट से गिरा दी गई तो भी, उनके स्वरों में पराजय को भी विजय के ऐसे गगन भेदी विश्वास में बदलने की ताकत थी कि जीतने वाला ही हार मान बैठे.
अटल जी कभी लीक पर नहीं चले. उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक जीवन में नए रास्ते बनाए और तय किए. ‘आंधियों में भी दीये जलाने’ की क्षमता उनमें थी. पूरी बेबाकी से वे जो कुछ भी बोलते थे, सीधा जनमानस के हृदय में उतर जाता था. अपनी बात को कैसे रखना है, कितना कहना है और कितना अनकहा छोड़ देना है, इसमें उन्हें महारत हासिल थी.
पीएम मोदी ने कहा, राष्ट्र की जो उन्होंने सेवा की, विश्व में मां भारती के मान सम्मान को उन्होंने जो बुलंदी दी, इसके लिए उन्हें अनेक सम्मान भी मिले. देशवासियों ने उन्हें भारत रत्न देकर अपना मान भी बढ़ाया, लेकिन वे किसी भी विशेषण, किसी भी सम्मान से ऊपर थे.
जितना सम्मान, जितनी ऊंचाई अटल जी को मिली उतना ही अधिक वह ज़मीन से जुड़ते गए. अपनी सफलता को कभी भी उन्होंने अपने मस्तिष्क पर प्रभावी नहीं होने दिया. प्रभु से यश, कीर्ति की कामना अनेक व्यक्ति करते हैं, लेकिन ये अटल जी ही थे जिन्होंने कहा,
‘हे प्रभु! मुझे इतनी ऊंचाई कभी मत देना.
गैरों को गले ना लगा सकूं, इतनी रुखाई कभी मत देना.’
नए भारत का यही संकल्प, यही भाव लिए मैं अपनी तरफ से और सवा सौ करोड़ देशवासियों की तरफ से अटल जी को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं, उन्हें नमन करता हूं.
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