पटना। केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के निधन के बाद बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर अब अलग तरह की चर्चायें होने लगीं हैं। सवाल यह हैं कि रामविलास पासवान की कमी उनके सांसद पुत्र चिराग पासवान किस तरह से भरते हैं। सवाल यह भी है कि क्या सीनियर पासवान के नाम पर एकजुट होने वाला बिहार का दलित समुदाय, क्या भविष्य में भी उनकी बनायी पार्टी लोकजनषक्ति पार्टी के साथ आगे भी खड़ा रहेगा। साफ है कि अब बिहार विधानसभा चुनाव पूरी तरह अप्रत्याषित परिणाम देने वाला हो सकता है। बिहार की राजनीति पर नजदीकी नजर रखने वालों का मानना है कि यदि रामविलास पासवान के निधन से उपजी सहानुभूति को भुनाने में चिराग पासवान सफल होते हैं तो लोजपा विधानसभा चुनाव में पहले से कहीं बेहतर प्रदर्षन करेगी। लेकिन यदि ऐसा नहीं हुआ तो फिर लोजपा को तो नुकसान होगा ही इसका लाभ जदयू और भाजपा भी नहीं उठा पायेगी। हालांकि बिहार में लोजपा अध्यक्ष एवं लोकसभा सदस्य चिराग (37) के सामने ऐसा कोई युवा दलित नेता नहीं है, जिसकी पूरे राज्य में पहुंच हो। बस इस बात पर बहुत कुछ निर्भर करेगा कि चिराग खुद को किस तरह से पेश करते हैं। उनके पिता जमीन से जुड़े व्यक्ति थे तथा आम लोगों की भाषा बोलते थे।
विदित हो कि रामविलास पासवान के निधन से कुछ घंटे पहले, गुरुवार को लोजपा ने चिराग द्वारा भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा को लिखा पत्र जारी किया था, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि कुमार ने उनके पिता का ‘‘अपमान’’ किया और दावा किया कि बिहार के मतदाताओं के बीच उनके (नीतीश के) खिलाफ नाराजगी की लहर है। यह बात दीगर है कि इन आरोपों पर जद (यू) की ओर से कोई जवाब नहीं आया है। वहीं लोजपा खुद को चुनाव के बाद के परिदृश्य में भाजपा की सहयोगी तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मजबूत समर्थक के रूप में प्रस्तुत कर रही है, साथ ही वह जद(यू) पर लगातार निशाना साध रही है। सत्तारूढ़ राजग में भाजपा और जदयू सहयोगी दल हैं। यह भी एक तथ्य है कि भाजपा ने राज्य में नीतीश कुमार के नेतृत्व पर विश्वास व्यक्त किया है, लेकिन अब वह लोजपा के साथ समीकरणों को लेकर दोगुनी सतर्कता बरतेगी।