कोरोना फैलता है खांसने-छींकने से, मुर्दा खांस व छींक नहीं सकता
मृत शरीर से संक्रमण खतरे का भ्रम न पालें, जरूरी प्रोटोकाल अपनाएं
लखनऊ। कोविड-19 यानि कोरोना वायरस शरीर के विभिन्न अंगों पर ही गहरा असर नहीं छोड़ रहा बल्कि सामाजिक ताने-बाने को भी छिन्न-भिन्न कर रहा है। कोरोना को लेकर फैले भय व भ्रांतियों का असर यह रहा कि अब लोग उपचाराधीन का हालचाल लेना भी उचित नहीं समझ रहे, इसके पीछे उनकी सोच है कि कहीं वह कोई मदद न मांग लें। यही नहीं अब करीबी के निधन पर अंतिम संस्कार तक में भी जाने से कतराने लगे हैं और तो और अस्पताल में निधन के बाद डेड बाडी लेने कई दिन बाद लोग पहुँच रहे हैं। किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के रेस्परेटरी मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष व कोरोना टास्क फ़ोर्स और डेथ आडिट कमेटी के सदस्य डॉ. सूर्यकान्त का स्पष्ट कहना है कि कोरोना का वायरस खांसने और छींकने से निकलने वाली बूंदों से फैलता है और एक मुर्दा न तो खांस सकता है और न ही छींक सकता है तो ऐसे में लोगों को भ्रम तोड़ने की जरूरत है न कि रिश्ता-नाता क्योंकि कोरोना के चलते निधन वाले व्यक्ति के अंतिम संस्कार में पूरे प्रोटोकाल का पालन करते हुए शामिल होने से संक्रमण का खतरा नहीं रहता है।
केस-1 : राजधानी के ही एक निजी अस्पताल में कुछ दिन पूर्व एक महिला की कोरोना से हुई मौत के बाद अस्पताल के कर्मचारी परिवार वालों को सूचना देने के साथ ही डेड बाडी ले जाने की बात कही तो भाई ने बताया कि वह खुद कोरोना पाजिटिव हैं और इलाज चल रहा है और उनकी पत्नी भी होम आइसोलेशन में हैं, ऐसे में कोई नहीं आ सकता । आखिर में थक हारकर अस्पताल को पुलिस प्रशासन से इस बारे में मदद लेनी पड़ी।
केस-2 : शाहजहांपुर के ब्लाक कम्युनिटी प्रोसेस मैनेजर (बीसीपीएम) सौरभ गंगवार बताते हैं कि होम आइसोलेशन के दौरान करीबी दोस्त से दवा लाने को बोला तो वह पर्चा लेकर गया और दो-तीन घंटे तक जब नहीं लौटा तो फोन किया तो बोला, उसके अधिकारियों ने दवा पहुंचाने से मना कर दिया है। मोहल्ले की राशन की दुकान वाले को फोन कर जरूरी सामान पहुँचाने को बोला, पूरे दिन सामान न पहुंचाने पर फोन किया तो उसने बताया कि पडोसी को बोला था कि सामान लेते जाओ तो उन्होंने बोल दिया कि उनकी तो उनके घर से बोलचाल ही नहीं है, जबकि ऐसी कोई बात ही नहीं थी।
केस-3 : नोएडा की एक घटना है जो दर्शाती है कि खून के रिश्तों में भी कोरोना के चलते किस तरह दूरी आ चुकी है। संजीव (बदला हुआ नाम) नोएडा में रहकर नौकरी करते थे, कोविड के चलते उनकी मौत हो गयी। बेटा-बेटी बाहर रहकर पढ़ाई करते हैं, उनको जब तक पिता के कोरोना पाजिटिव होने की खबर लगती उसके कुछ घंटों बाद ही संजीव ने दम तोड़ दिया । ऐसे वक्त में संजीव के भाई-बहन जानकारी होने के बाद भी अस्पताल तक नहीं आये, संजीव के एक मित्र ने जाँच कराने से लेकर अस्पताल में भर्ती कराने तक में साथ दिया और जब बच्चे आ गए तो अंतिम संस्कार में भी पूरे वक्त साथ रहे।
सेनेटाइज और रैप कर ही दी जाती है डेड बाडी
केजीएमयू के डेथ आडिट कमेटी के सदस्य डॉ.सूर्यकान्त का कहना है कि कोरोना के चलते होने वाली मौत के मामलों में सबसे पहले डेड बाडी को एक फीसद हाइपोक्लोराईट के घोल से अच्छी तरह से विसंक्रमित किया जाता है । इसके बाद उसे पूरी तरह से रैप करके और पंचनामा करके ही परिवार वालों को सुपुर्द किया जाता है । परिवार के लोग भी मृत व्यक्ति का केवल चेहरा देख सकते हैं, पूरे शरीर को खोलने या कोई और क्रिया कर्म करने की अनुमति नहीं होती। इसके अलावा मृत्यु के कुछ समय बाद वायरस का असर अपने आप भी ख़त्म होने लगता है। डेड बाडी पहले से भी पूरी तरह सेनेटाइज होती है, इसलिए सतह पर भी संक्रमण की गुंजाइश नहीं होती। इसलिए लोगों को अपनों के अंतिम संस्कार में पूरे प्रोटोकाल का पालन करते हुए भाग लेने से कोरोना के चपेट में आने के भ्रम को दूर कर देना चाहिए और विचार करना चाहिए कि जिससे इतने लम्बे समय का नाता रहा कम से कम उसको अंतिम विदाई तो पूरे आदर और सम्मान के साथ दें।
पिछले करीब आठ-नौ माह से कोरोना मरीजों के इलाज में जुटे डॉ. सूर्यकान्त का कहना है कि इसी तरह किसी उपचाराधीन की मदद से भी लोगों को कतराना नहीं चाहिए क्योंकि जब चिकित्सक न जाने कितने अनजान लोगों का पूरी सावधानी के साथ इलाज में जुटे हैं तो आप भी पूरी सावधानी के साथ अपनों की मदद को आगे आएं। उनका कहना है कि यकीन मानें, अगर इस दौरान ट्रिपल लेयर मास्क पहनें, उपचाराधीन की कोई वस्तु को छूने के बाद साबुन-पानी या सेनेटाइजर से अच्छी तरह से हाथ धुलते हैं और दो गज की दूरी बनाये रखते हैं तो संक्रमण का खतरा नहीं रहता।