सोमवार को होने वाली जीएसटी काउंसिल की बैठक खासी हंगामेदार रहने वाली है। बैठक में जीएसटी क्षतिपूर्ति को लेकर केंद्र सरकार की तरफ से प्रस्तावित दोनो मुद्दों पर अंतिम फैसला होना है। अभी तक की स्थिति यह है कि ओडिशा और पुड्डुचेरी को छोड़ कर अन्य सभी गैर भाजपाई राज्यों की तरफ से जीएसटी क्षतिपूर्ति को लेकर केंद्र के दोनो प्रस्तावों को स्वीकार नहीं किया गया है। दूसरी तरफ 21 राज्यों की तरफ से पहले प्रस्ताव को स्वीकार करने को लेकर रजामंदी दिखाई जा चुकी है।
ऐसे में केंद्र सरकार इन राज्यों की तरफ से स्वीकृत प्रस्ताव के आधार पर दूसरे सभी राज्यों को इसे स्वीकार करने को बाध्य कर सकती है। महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, केरल, राजस्थान, पंजाब, झारखंड, दिल्ली, तमिलनाडु, तेलंगाना जैसे गैर भाजपाई राज्य पहले ही कह चुके हैं कि उन्हें क्षतिपूर्ति को लेकर अपने स्तर पर कोई भी कर्ज लेना स्वीकार नहीं।
सूत्रों का कहना है कि केंद्र सरकार की तरफ से आगामी बैठक में साफ तौर पर सभी राज्यों को यह बता दिया जाएगा कि जो भी जीएसटी क्षतिपूर्ति को लेकर पिछली बैठक में जारी प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करेंगे उन्हें भारी वित्तीय हानि उठाने के लिए तैयार रहना होगा। जीएसटी कानून के मुताबिक परिषद से जारी प्रस्ताव को अगर 20 राज्य स्वीकार कर लेते हैं तो उसे बाकी राज्यों को भी स्वीकार करना होगा। अभी तक 21 राज्यों ने इसे स्वीकार कर लिया है।
एक तरह से देखा जाए तो प्रस्ताव को लेकर अभी तक हामी नहीं भरने वाले राज्यों के पास इसे स्वीकार करने के अलावा कोई चारा नहीं होगा। इस प्रस्ताव के मुताबिक सभी राज्यों की तरफ से कुल 97 हजार करोड़ रुपये का कर्ज लेना होगा। इस कर्ज को उपलब्धता केंद्र सरकार आरबीआइ के जरिए कराएगी। इस बात की भी व्यवस्था की जाएगी इस कर्ज की अदाएगी राज्यों की तरफ से लंबे समय तक क्षतिपूर्ति टैक्स वसूल कर पूरी की जाए ताकि उसका ब्याज चुकाने में कोई परेशानी ना हो।
वित्त मंत्रालय की तरफ से इस बैठक के लिए जो एजेंडा तैयार किया गया है उसमें कहा गया है कि जीएसटी क्षतिपूर्ति के तौर पर सिर्फ 15 हजार करोड़ रुपये ही बकाया है। इसमें कहा गया है कि जबसे जीएसटी लागू की गई है यानी जुलाई, 2017 से अभी तक जीएसटी क्षतिपूर्ति टैक्स के तौर पर 2,81,373 करोड़ रुपये की वसूली की गई है जबकि 2,96,465 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया है। अब राज्यों का इस मद में सिर्फ 15,092 करोड़ रुपये का बकाया है।
सनद रहे कि 27 अगस्त, 2020 को हुई जीएसटी परिषद की बैठक में भी क्षतिपूर्ति का मुद्दा काफी हंगामेदार रहा था। तब यह कहा गया था कि क्षतिपूर्ति के तौर पर राज्यों को 2.35 लाख करोड़ रुपये का भुगतान किया जाना है। सरकार का कहना है कि इसमें सिर्फ 97 हजार करोड़ रुपये का कम संग्रह आर्थिक मंदी की वजह से हुआ है। शेष कमी कोविड की वजह से हुई है और महामारी से हुई राजस्व हानि की जिम्मेदारी सरकार की नहीं है।
केंद्र की तरफ से दो विकल्प दिए गए थे। पहले विकल्प के तहत वित्त मंत्रालय की मदद से आरबीआइ से कर्ज लेनी है जबकि दूसरे विकल्प के तहत बाजार से कर्ज लेने की बात थी। जबकि गैर भाजपाई राज्यों का कहना है कि जीएसटी क्षतिपूर्ति पूरी तरह से केंद्र की जिम्मेदारी है और उसे ही पूरा कर्ज ले कर राज्यों को देनी चाहिए।