स्वच्छता एक ऐसा उपाय है जो जीवन को शुद्ध और दुरुस्त दोनों बनाता है। कोरोना में इसकी पुष्ट होती अहमियत को तो हर कोई जानता है। महात्मा गांधी ने बचपन में ही स्वच्छता को लेकर देश की उदासीनता को महसूस कर लिया था फिर दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद यात्र कर लोगों को इसके लिए जागरूक किया था। महात्मा गांधी की 151वीं जयंती पर प्रस्तुत हैं कुछ प्रसंग जब उन्होंने स्वच्छता के लिए लोगों को प्रोत्साहित किया और इसे लेकर बदलाव भी दिखा।
छोटी से छोटी चीजों पर नजर
देश की बड़ी-बड़ी समस्याओं की सुलझाते हुए भी गांधीजी अपने आश्रम के रसोईघर के छोटे-छोटे कामों पर नजर रखते थे। चावल और दूसरे अनाजों की सफाई उनके ही कमरे में होती थी। रसोई घर में जाकर खुद सफाई और व्यवस्था देखते थे। एक दिन उन्होंने रसोईघर के एक अंधेरे कोने की छत में मकड़ी का जाला लगा हुआ देखा। उसकी तरफ इशारा करते हुए उन्होंने रसोईघर के व्यवस्थापक बलवंत सिंह से कहा, देखो, वह क्या है? रसोईघर में जाला शर्म की बात है। बलवंत ने अपनी भूल स्वीकार की और भविष्य में लापरवाही न करने का वादा किया।
सफाई महान कार्य
दिल्ली की बात है। गांधीजी बिड़ला भवन में ठहरे हुए थे। नहाने के लिए गए। थोड़ी देर पहले ही सेठ घनश्यामदास बिड़ला वहां से स्नान करके निकले थे। उनकी भीगी हुई धोती वहीं पड़ी हुई थी। नहाने से पहले बापू ने बिड़ला जी की धोती धो दी। फिर नहाकर बाहर निकले। पहले उन्होंने अपना अंगौछा सूखने के लिए फैलाया और बाद में सेठ जी की धोती भी झटक कर फैला रहे थे। इतने में सेठ जी आ गए और धोती हाथ से छीनते हुए बोले, बापू यह क्या कर रहे हैं? गांधीजी ने सहजता के साथ कहा, किसी का पैर पड़ जाता तो धोती और गंदी हो जाती। मैंने इसे धो दिया तो क्या बुरा हुआ? सफाई से बढ़कर महान कार्य और कौन सा है?
स्वच्छता के लिए कुछ भी
एक बार जोहांसबर्ग के आस-पास के क्षेत्र में सोने की खदानों वाले इलाके में प्लेग फैला था। गांधीजी ने अपनी पूरी शक्ति के साथ स्वेच्छा से रोगियों की सेवा की। नगर चिकित्सक और अधिकारियों ने गांधीजी की सेवाओं की बहुत तारीफ की। गांधी जी चाहते थे कि लोग उस घटना से सभी लोग सबक लें। गांधी जी अपनी आत्मकथा में इस घटना का जिक्र किया है।