पितृपक्ष में पितरों के श्राद्ध और तर्पण करने से बहुत बड़े लाभ होता है. ऐसे में आप जानते ही होंगे इस साल 2 सितंबर से 17 सितंबर तक पितृपक्ष रहने वाले हैं. जी दरअसल ऐसी मान्यता है कि पितृपक्ष में पितृलोक से पितर धरती लोक पर आते हैं और अपने घर के सदस्यों को आशीर्वाद देकर जाते हैं. ऐसे में इस दौरान पितरों को प्रसन्न करना चाहिए और इसी के लिए पिंडदान करना चाहिए. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर पितृपक्ष में पिंड चावल का ही क्यों बनाया जाता है? अब आज हम आपको इसी के बारे में बताने जा रहे हैं.
जी दरअसल हिंदू धर्म को माने तो किसी वस्तु के गोलाकार आकार को पिंड कहते है. जी दरअसल धरती को भी एक पिंड का रूप कहते है. वहीँ सनातन धर्म में निराकार स्वरूप की बजाए साकार स्वरूप की पूजा को महत्व दिया जाता है. जी दरअसल ऐसा होने से ही साधना करना आसान हो जाता है. इस वजह से पितृपक्ष में भी पितरों को पिंड मानकर यानी पंच तत्व में व्याप्त मानकर उन्हें पिंडदान करते है. वैसे पिंडदान के दौरान मृतक की आत्मा को चावल पकाकर उसके ऊपर तिल, घी, शहद और दूध को मिलाकर एक गोला बनाते है जिसे पाक पिंडदान कहते है. वहीँ यह कार्य करने के बाद दूसरा जौ के आटे का पिंड बनाकर दान देते है. जी दरअसल सनातन धर्म में पिंड का सीधा संबंध चंद्रमा से होता है और कहा जाता है कि पिंड चंद्रमा के माध्यम से पितरों को मिलता है. वहीँ ज्योतिषाचार्यों के कहे अनुसार पिंड को बनाने के लिए जिन चीजों की जरूरत होती है, उनका नवग्रहों से संबंध है. जिसके कारण पिंडदान करने वाले को भी शुभ लाभ मिलता है.
पिंडदान में क्यों शामिल करते हैं सफेद फूल? – आपको बता दें कि सफेद रंग सात्विकता का प्रतीक है. जी दरअसल हम सभी जानते हैं कि आत्मा का कोई रंग नहीं होता, इसलिए पूजा में सफेद रंग को इस्तेमाल करते हैं.