भारतीय राजनीति में बिरले नेताओं का कद ऐसा होता है कि उसकी पार्टी के अलावा विपक्षी नेता और विचारधारा से इतर के संगठन भी उससे रायशुमारी और मार्गदर्शन लेते हों। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी इन्हीं बिरले नेताओं में शुमार थे। कांग्रेस में प्रणब मुखर्जी का कद ‘भीष्म पितामह’ जैसे रणनीतिकार और ‘संकट मोचक’ का था तो विपक्षी भाजपा और संघ के नेताओं के लिए वह एक सच्चे ‘मार्गदर्शक’ थे। आइये दिग्गज नेताओं की जुबानी ही भारतीय सियासत के इस ‘अजातशत्रु’ की अहमियत को जानते हैं।
मुखर्जी की समझ की कायल थीं इंदिरा
बात सन 1969 की है तब प्रणब दा पहली बार राज्यसभा सदस्य के तौर पर संसद पहुंचे थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी राजनीतिक मसलों पर प्रणब मुखर्जी की समझ की कायल थीं। उन्होंने प्रणब दा को अपनी कैबिनेट में नंबर दो का दर्जा दिया। तब प्रणब दा ने आर. वेंकटरामन, पीवी नरसिम्हाराव, ज्ञानी जैल सिंह जैसे कद्दावर नेताओं के बीच अपने काम का लोहा मनवाया था। इंदिरा जी की हत्या के बाद प्रधानमंत्री के लिए प्रणब दा का नाम भी चर्चा में रहा लेकिन सियासत का खेल देखिए उन्हें प्रधानमंत्री नहीं बनाया गया।
कांग्रेस के लिए संकट मोचक थे प्रणब दा
1984 के लोकसभा चुनावों के बाद तो प्रणब दा को कैबिनेट में भी जगह नहीं दी गई। इसका उन्हें मलाल था। बाद में उन्होंने कहा था कि जब मुझे पता चला कि मैं कैबिनेट का हिस्सा तक नहीं हूं तो हैरान रह गया। हालांकि मैंने खुद को संभाल लिया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी प्रणब दा की अहमियत को बखूबी समझते थे। मनमोहन सिंह की कैबिनेट में प्रणब मुखर्जी नंबर-2 पर रहे। उन्होंने विदेश से लेकर वित्त मंत्रालय तक संभाला। यूपीए सरकार में उनकी भूमिका एक संकटमोचक की रही।
कांग्रेस के भीष्म पितामह थे मुखर्जी
कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल कहते हैं कि प्रणब दा अपने आप में एक इनसाइक्लोपीडिया थे। ऐसे शख्स राजनीति में बहुत कम दिखते हैं। उन्होंने प्रणब दा को कांग्रेस का भीष्म पितामह बताया है। सिब्बल कहते हैं कि कांग्रेस में तब प्रणब दा की सहमति के बिना पार्टी कोई फैसला नहीं ले सकती थी। वहीं कांग्रेस नेता और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का कहना है कि जब भी सरकार संकट में आती थी तो एक संकट मोचक के रूप में सामने प्रणब मुखर्जी होते थे। कांग्रेस नेता जनार्दन द्विवेदी की मानें तो प्रणब जी अकेले व्यक्ति थे जिनकी इतिहास और राजनीति पर गहरी पकड़ थी।
…और खुद चलकर पास आए थे अटल
प्रणब भले ही कांग्रेसी थे लेकिन भाजपा के नेता यहां तक कि संघ भी उनको एक सच्चा ‘मार्गदर्शक’ मानता था। भाजपा के दिग्गज नेताओं में शुमार अटल बिहारी वाजपेयी भी उनसे प्रभावित थे। प्रणब ने साल 2017 मार्च में खुद इसका जिक्र एक कार्यक्रम में किया था। प्रणब दा ने कहा था कि मैं राज्यसभा में था। मैंने देखा कि प्रधानमंत्री अटल जी मेरी सीट की ओर आ रहे हैं। मैंने उनसे कहा था कि अटलजी मुझे बुला लेते मैं खुद आ जाता। तब अटलजी ने कहा था जॉर्ज फर्नांडीज काफी मेहनती मंत्री है कृपया उनके लिए ज्यादा तल्ख न हों। यह वह दौर था जब जॉर्ज साहब रक्षा मंत्री थे।
पीएम मोदी को बताई थी सियासी बारिकियां
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी प्रणब दा से खासा प्रभावित थे। जुलाई 2016 में प्रधानमंत्री मोदी ने तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की तारीफ करते हुए कहा था कि जब मैं दिल्ली में नया-नया आया था तब राष्ट्रपति ने एक अभिभावक की भांति मुझे उंगली पकड़कर दिल्ली की सियासी बारिकियां सिखाई थीं। ऐसा बहुत कम लोगों में देखने का मिलता है। प्रधानमंत्री मोदी ने यह भी कहा था कि मैंने सीखा कि कैसे अलग-अलग सियासी विचारधारा के साथ लोकतंत्र के लिए कंधे से कंधा मिलाकर काम किया जा सकता है।
संघ के लिए मार्गदर्शक थे प्रणब दा
प्रणब दा की विचारधारा कांग्रेसी थी लेकिन संघ से भी उनके रिश्ते अच्छे रहे। संघ प्रमुख ने खुद इसे प्रणब दा के निधन पर याद किया। मोहन भागवत ने प्रणब दा को संघ के लिए एक मार्गदर्शक करार दिया और कहा कि वह राजनीतिक भेदभाव में यकीन नहीं रखने वाले नेता थे। भगवत ने संघ के महासचिव सुरेश भैयाजी जोशी के साथ संयुक्त बयान में कहा कि मुखर्जी एक कुशल प्रशासक थे जो राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखते थे। संघ के प्रति उनका अपार स्नेह था। उनके निधन से आरएसएस की अपूर्णीय क्षति हुई है।
सियासत के अजात शत्रु
प्रणब दा कांग्रेस के साथ साथ विपक्षी नेताओं के लिए भी सहज उपलब्ध थे। हम कह सकते हैं कि वह भारतीय सियासत के अजात शत्रु थे। लोक जनशक्ति पार्टी के संरक्षक रामविलास पासवान कहते हैं कि जब भी कोई व्यक्ति उनसे संपर्क करता था तो वह हमेश ही सही रास्ता दिखाते हुए सहायता के लिए तैयार रहते थे। चाहे अर्थव्यवस्था का मसला हो, हमारी ससंदीय प्रणाली या राजनीति से संबंधित कोई मसला। प्रणब दा का मार्गदर्शन और उनका ज्ञान अद्वितीय था। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का कहना है कि प्रणब मुखर्जी का पिछले 50 वर्षों से अधिक का जीवन भारत के 50 वर्षों के इतिहास को दर्शाता है।