व्यवस्था सुधारना डॉक्टरों के हाथ में नहीं
डॉक्टरों का कहना है कि उनका काम इलाज करना है, व्यवस्थाओं में कमी और सुधार का काम उनके हाथ में नहीं है. उन्हें ज़िलों में पटवारी, तहसीलदार, एसडीएम के दखल की वजह से तमाम तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे में काम आसान नहीं है इसलिए सरकार को इस दखलंदाज़ी पर लगाम लगानी चाहिए.
डॉक्टरों का कहना है कि वे फ्रंट लाइन वर्कर्स के तौर पर काम कर रहे हैं. सबसे ज़्यादा रिस्क के दौर से गुज़र रहे हैं, ऐसे में बाकी कर्मचारियों की तरह उनकी एक दिन की सैलेरी नहीं काटी जानी चाहिए, बल्कि उन्हें प्रोत्साहन राशि दी जानी चाहिए. डॉक्टरों का कहना है कि उनके लिए हालात दूसरे कर्मचारियों की तरह नहीं हैं, इसलिए सरकार और शासन को उनकी मांग पर ध्यान देना चाहिए.
सरकार ख़ामोश
डॉक्टरों का कहना है कि वे एक सितंबर से काली पट्टी बांधकर काम करेंगे और सरकार फिर भी नहीं मानी, तो सितंबर के तीसरे हफ्ते में पहले सामूहिक अवकाश और फिर कार्य बहिष्कार किया जाएगा.
उत्तराखंड में नर्सेज का भी कहना है कि वे भी एक दिन की सैलेरी काटने के विरोध में हैं इसलिए सरकार को यह फैसला वापस लेना चाहिए. नर्सों का यह भी कहना है कि कोरोना काल में नर्सेज की कमी से उन्हें बेहद दबाव में काम करना पड़ रहा और तमाम दिक्कतें हैं, इसलिए नर्सेज की भर्ती की जाए. हालांकि डॉक्टर्स और नर्सेज की मांगों और चेतावनी पर सरकार की प्रतिक्रिया सामने आना अभी बाकी है.