संसद के पिछले कई सत्रों के सियासी संग्राम की भेंट चढ़ चुकने के बाद मानसून सत्र को लेकर भी वही आशंका थी, जो गलत साबित हुई। इस सत्र में न सिर्फ गतिरोधों की संख्या कम हुई बल्कि कई महत्वपूर्ण विधायी कामकाज भी निपटाए गए। हम आपको बताते हैं वे पांच वजहें जिन्होंने इस सत्र को यादगार बना दिया।
1- दो दशक का रिकॉर्ड टूटा
लोकसभा ने करीब दो दशक के पुराने रिकॉर्ड को पीछे छोड़ते हुए मानसून सत्र में सबसे ज्यादा विधायी कामकाज की मिसाल बनाई है। लोकसभा ने जहां अपने तय समय से भी अधिक 118 फीसद काम किया, वहीं राज्यसभा ने भी अपने 74 प्रतिशत समय का सदुपयोग किया।
2- दोनों सदनों में 20 विधेयक पारित
दोनों सदनों ने इस संक्षिप्त सत्र के दौरान 20 बिल पारित किये इसमें एक संविधान संशोधन विधेयक समेत कई अहम बिल शामिल हैं। वैसे सत्र के दौरान 22 बिल पेश किये गए जिसमें 21 लोकसभा में हुए। इसमें छह बिल अध्यादेश की जगह लाए गए। केवल 17 बैठकों के इस सत्र में ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा देने, एसी-एसटी उत्पीड़न कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने संबंधी बिल, भगोड़ा आर्थिक अपराधी विधेयक, भ्रष्टाचार संशोधन विधेयक से लेकर राष्ट्रीय खेल-कूद विश्वविद्यालय बनाने संबंधी दूरगामी महत्व के विधेयक पारित किये गए।
3- बर्बादी की भरपाई के लिए अतिरिक्त काम
लोकसभा में हंगामे की वजह से 8 घंटे 26 मिनट का समय बर्बाद जरूर हुआ मगर सांसदों ने 20 घंटे 43 मिनट अतिरिक्त काम कर न केवल इसकी भरपाई की बल्कि ज्यादा काम किया। राज्यसभा में 27 घंटे 42 मिनट हंगामे की भेंट चढ़ गए और इसमें माननीयों ने देर तक बैठकर इसमें 3 घंटे की भरपाई की। जैसाकि सभापति वेंकैया नायडू ने सत्र समापन के मौके पर कहा भी कि राज्यसभा ने पिछले बजट सत्र की तुलना में अपने समय का तीन गुना अधिक काम किया। विधायी कामकाज के हिसाब से तो बीते दो सत्रों की तुलना में अकेले इसी सत्र में राज्यसभा ने 140 फीसद ज्यादा विधायी काम किये। सभापति ने इस बेहतर कामकाज के लिए खासतौर पर राज्यसभा में नेता विपक्ष गुलाम नबी आजाद को भी श्रेय दिया। संसदीय शोध पर काम करने वाली संस्था पीआरएस के मुताबिक सन 2000 के बाद इतने छोटे मानसून सत्र में लोकसभा ने सबसे अधिक काम का रिकार्ड बनाया है।
4-औंधे मुंह गिरा 16वीं लोकसभा का पहला अविश्वास प्रस्ताव
वैसे मानसून सत्र का आगाज अविश्वास प्रस्ताव की सियासी गरमी से जरूर हुआ। मगर 16वीं लोकसभा में सरकार के खिलाफ पहले अविश्वास प्रस्ताव के भारी बहुमत से खारिज होने के बाद विधायी कामकाज ने ऐसी रफ्तार पकड़ी की शुक्रवार सत्र समापन से ठीक पहले भी राज्यसभा ने एक बिल पारित किया।
5- विधायी कामों के लिए ज्यादा समय
विधायी कामकाज में अधिक समय लगाने के मामले में भी यह सत्र बेहतर साबित हुआ और राज्यसभा ने अपने कुल समय का 48 फीसद विधायी काम में लगाया। जबकि लोकसभा ने तो अपना 50 फीसद समय सरकारी विधायी कामकाज में लगाया। बीते कुछ सत्रों से सांसदों के लिए सबसे अहम प्रश्नकाल के संचालन में भी उल्लेखनीय सुधार आया है।
इस सत्र में लोकसभा में प्रश्नकाल के 84 फीसद समय का उपयोग हुआ तो राज्यसभा में यह थोड़ा कम 68 फीसद रहा। मानसून सत्र में राज्यसभा के उपसभापति का चुनाव होना भी अहम रहा जिसमें बहुमत न होते हुए भी एनडीए ने जीत हासिल की और जदयू नेता हरिवंश नये उपसभापति चुने गए। मानसून सत्र इसलिए भी याद रखा जाएगा कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का अविश्वास प्रस्ताव के दौरान प्रधानमंत्री से गले लगने का सबसे चर्चित सियासी प्रकरण इसी सत्र के दौरान हुआ।