-राघवेन्द्र प्रताप सिंह
लखनऊ : ‘घर को आग लग गयी घर के चिराग से’ यह कहावत राज्य सरकार पर पूरी तरह लागू होती है। दरअसल एक ओर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ स्वच्छ एवं भ्रष्टाचार मुक्त शासन देना चाहते हैं वहीं ठीक उनके अधीन कार्यरत एक विषेष कार्याधिकारी यानि ओएसडी भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए अपने पद और कार्यालय का दुरुपयोग करने से नहीं चूक रहे हैं। स्थिति यह है पूर्ववर्ती अखिलेश सरकार में उत्तर प्रदेश कोऑपरेटिव बैंक भर्ती घोटाले में आरोपित तत्कालीन एमडी ही यह तय कर रहे हैं उनके खिलाफ चल रही जांच रिपोर्ट में क्या लिखा जाये ताकि उनकी गर्दन बच जाये। इतना ही नहीं वह यह भी तय करने में ‘सक्षम’ हैं कि उन्हें दण्ड यानि सजा क्या दी जाये। साफ है कि दण्ड की प्रकृति दोषी स्वयं तय कर रहा है। ऐसे में इस ‘घोटालेबाज’ की पहुंच और उसे मिल रहा संरक्षण की किस स्तर का है इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।
सूत्रों के मुताबिक पूर्ववर्ती सपा सरकार में उत्तर प्रदेश कोऑपरेटिव बैंक भर्ती घोटाले की जांच में तत्कालीन एमडी आर.के. सिंह फंसते नजर आ रहे हैं। जिसके बाद उन्होंने स्वयं को बचाने के लिए हाथपांव मारना शुरू कर दिया। इसी क्रम में उन्हें योगी सरकार के एक चर्चित ओएसडी का कंधा मिल गया है। जिसे पकड़ कर वह इस भवसागर का पार करने की जुगत में लगे हुए हैं और काफी हद तक सफल भी होते दिख रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि विभागीय जांच में प्रमुख सचिव द्वारा तीन दण्ड प्रस्तावित कर पत्रावली उचित माध्यम से मुख्यमंत्री को प्रेषित की गई है। स्थिति यह है कि दण्ड क्या प्रस्तावित करना है ये चर्चित ओएसडी साहब ने विभागीय प्रमुख सचिव को बता दिया था। एक विशेष सचिव, सहकारिता जो इसी माह सेवानिवृत्त होने वाले हैं, ने विभागीय जाँच में ओएसडी साहब के मंशा के अनुरूप आर.के. सिंह की विभागीय जाँच गोपनीय तरीके से निष्पादित करते हुए तीन दण्ड प्रस्तावित किया तथा इन्हीं प्रस्तावों के साथ विभागीय प्रमुख सचिव ने पत्रावली को उचित माध्यम से मुख्य मंत्री को अग्रसरित कर दिया गया। उधर, चर्चित ओएसडी साहब इन प्रस्तावित दण्डों को दरकिनार कर मात्र दो वेतन वृद्धि रोकने के दण्ड को अनुमोदित करा कर मामले को रफा-दफा कर एसआईटी जाँच की हवा निकाल के प्रयास में लगे हुए हैं, भले ही इससे वर्तमान सरकार की छवि खराब ही क्यों न हो जाय। चर्चा है कि ओएसडी साहब पूर्व सरकार में प्रभावशाली थे एवं उनकी वफादारी कर अपनी स्थिति उधर भी बरकरार रखना चाहते हैं और इसमें लगभग वह सफल भी होते दिख रहें हैं।
सूत्रों के अनुसार मुख्यमंत्री के अनुमोदन के उपरांत भी एसआईटी को एफआईआर से अभी तक रोके रखना टाइपिस्ट से विशेष सचिव, मुख्य मंत्री और वर्तमान में सबसे प्रभावशाली ओएसडी सफल होते नजर आ रहे हैं। यदि सब कुछ उनके अनुसार चला हो गया तो तत्कालीन एमडी, यूपीसीबी आर.के. सिंह को एसआईटी जांच में मुख्यमंत्री द्वारा अनुमोदित दण्ड से छूट हेतु पूरा आधार प्राप्त हो जायेगा जिससे वे जेल जाने से बच जाएंगे और पूरी एसआईटी जाँच का कोई औचित्य नहीं रह जायेगा। सूत्रों की मानें तो ये चर्चित ओएसडी मुख्यमंत्री के कार्यालय लेटर पैड पर सारा खेल कर रहे हैं। चर्चा यह भी है कि इस पूरे खेल में ‘अर्थ तंत्र’ की बड़ी भूमिका है। लेकिन सवाल यह भी है कि आखिर फिर भ्रष्टाचार पर योगी सरकार के जीरो टॉलरेंस के दावे का क्या होगा।