Unlocking Happiness…(2)
हम जीवन में सुबह से शाम तक जो भी कार्य करते हैं, वह किन्हीं इच्छाओं और आवश्यकताओं से प्रेरित होकर करते हैं। इन दो शब्दों पर गौर कीजिये– इच्छा और आवश्यकता। दोनों में बहुत बड़ा अंतर है। हर आवश्यकता एक इच्छा होती है, लेकिन हर इच्छा एक आवश्यकता हो, यह जरुरी नहीं। जिस इच्छा के पीछे उद्देश्य छिपा हो वह आवश्यकता हो जाता है।अब सारा खेल इन्हीं दो को समझने में है। तो आइये अब हम कुछ व्यवहारिक उदाहरणों से समझने की कोशिश करते है। मान लीजिये आप पानी पी रहे है। अब मैं आपसे प्रश्न करता हूँ कि क्यों पी रहे है? अब इसके दो जवाब हो सकते है– पहला मन हुआ, इच्छा हुई। दूसरा प्यास लगी,एक उद्देश्य बना और आवश्यकता हुई। ऐसा ही आप अपने दैनिक जीवन के हर कार्य में देख सकते है और आपको दो ही चीज़े देखने को मिलेगी। एक इच्छा तो दूसरी आवश्यकता ।एक बिना उद्देश्य और दूसरा उद्देश्य के साथ। बस! मन का सारा खेल इन दो चीजों को समझने में है। जब आप अपनी इच्छा और आवश्यकता में अंतर करना सीख लेते है तो आप मन को समझ लेते है। यदि इसी अंतर को समझ लेते हैं तो जीवन आसान हो जाता है।
अनियंत्रित इच्छाओं के तमाम रूप हैं… अनियंत्रित इच्छा का एक रूप है- लालच। कई बार ऐसा होता है कि हमें पता होता है कि अमुक कार्य को करना हमारी आवश्यकता नहीं, महज इच्छा है, फिर भी हम उस कार्य को करने के लिए स्वयं को मजबूर महसूस करते है। जैसे आपको भूख नहीं है। लेकिन सामने तरह–तरह के मिष्ठान्न पड़े है, जिन्हें देखकर आपके मुंह में पानी आ रहा है। बहुत कोशिश करने के बाद भी आप खुद को नहीं रोक पाते है और उन्हें खा लेते है। अनियंत्रित इच्छा का एक रूप है-व्यसन। मान लीजिये किसी अश्लील चलचित्र या कहानी को सुनकर आपके मन में कुविचारों की वर्षा शुरू हो गई। आपकी इच्छा ना होते हुए भी उन विचारों में डूब रहे हो अर्थात आप अपने मन पर काबू नहीं रख पाए। केवल संकल्पशक्ति की कमी के कारण।
मन बड़ा लालची और व्यसनी है ।मन ऐसा घोड़ा है, जिसे यदि काबू में न किया जाये तो वह आपके समय, स्वास्थ्य, और जीवन को मटियामेट करके तबाह कर सकता है। इसके ठीक विपरीत यदि उसे काबू में रखा जाये तो वही आपको महानता और सफलता के चरमोत्कर्ष तक पहुँचा सकता है। अब प्रश्न यह उठता है कि इस बेलगाम घोड़े पर लगाम कैसे लगाये, इसकी ज़िद को कैसे तोडा जाये? ऐसी अवस्था में सबसे पहला काम है– मन को मनाइये। मन जिस भी उद्देश्यहीन कार्य के लिए ज़िद करता है। आवश्यकता न होते हुए भी लालच और व्यसन के वशीभूत होकर करता है। उसे उस बात के लिए समझाइए। अतीत का दृश्य दिखाइए। उससे कहिये कि “देख! तूने अतीत में भी यही घटिया काम किया था, परिणाम क्या हुआ?, दुःख संताप, पश्चाताप, दर्द। तो इसे दुबारा करने के लिए ज़िद क्यों कर रहा है?” उसे भविष्य का दृश्य दिखाइए और बताइए कि “देख! अगर अभी तू यह गलती करेगा तो भविष्य में तुझे अमुक– अमुक नुकसान झेलने पड़ेंगे। तो फिर क्यों क्षणिक स्वाद, आनंद और मनोरंजन के लिए अपने भविष्य को अंधकारमय बनाता है।” मन के सामने लाभ और हानि की बराबर समीक्षा करें। किसी भी कार्य के करने से होने वाले फायदे और नुकसान के बारे में उसे यथार्थ रूप से अवगत कराएं।
यदि आप चैतन्य होकर अच्छे-बुरे के विवेक से यथार्थ को समझ गए तो फिर आपको इच्छा और आवश्यकता की समझ आ जाएगी और आप गलती करने से बच जायेंगे। लेकिन फिर भी यदि मन जिद पर उतर आये तो यह तरीका अपनायिए। यह बात तो आप बखूबी जानते होंगे कि लोहे को लोहा ही काटता है। जहर का तोड़ जहर ही होता है। यहाँ भी लालच और व्यसन जैसे जिद का तोड़ जिद ही है। मगर इस जिद का मतलब है विवेकपूर्ण दृढ़ संकल्पशक्ति। जब पानी सर के उपर निकल जाये। जहाँ समझाने से काम न चले तो युद्ध छेड़ दीजिए। वहाँ मुकाबले के लिए तैयार रहना चाहिए। उस युद्ध को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लेना चाहिए। जिस भी बुरी आदत से आप छुटकारा पाना चाहते है। उसे अपने दुश्मन की तरह देखना शुरू कर दीजिये। उससे घृणा कीजिये। उसे चुनौती समझिये। और दृढ़ संकल्पशक्ति पूर्वक अपने मन को चुनौती दीजिये कि “तू मेरा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता। मेरे साथ क्या होना है और क्या नहीं, ये मैं तय करूंगा तू नहीं।” जब तक उद्देश्यहीन इच्छाओं से मुक्त नही होंगे जीवन का वास्तविक उद्देश्य को प्राप्त नही कर पाएँगे। जीवन के वास्तविक आनंद से विरत रहेंगे।
We are Consciousness… Realise it.