-राघवेन्द्र प्रताप सिंह
लखनऊ : उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भले ही सख्त प्रशासक हों लेकिन उनके पंचम तल के मातहत अपनी मनमानी करने की आदत को छोड़ नहीं पा रहे हैं। हालत यह है कि मुख्यमंत्री ने जिस पत्रावली को सिरे से खारिज करते हुए वापस कर दिया था, उसी को कथित ‘नियमों’ और ‘परम्पराओं’ का हवाला देकर पंचम तल के अधीनस्थों ने अपनी मनमानी करते हुए दूसरी बार में कुछ नये संशोधन के साथ मंत्री परिषद के स्वीकृति हेतु पत्रावली दोबारा प्रस्तुत करने के निर्देश मुख्यमंत्री से प्राप्त कर लिया है। साफ है कि पूरी प्रक्रिया से सीधे-सीधे मुख्यमंत्री योगी को न सिर्फ अंधेरे में ही रखा गया बल्कि ‘कइयों’ की जेबें भी भारी हो गयीं।
दरअसल, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सूबे में सरकार बनने के बाद कई महत्वपूर्ण विभागों की कमान अपने ही हाथों में रखी थी। ऐसे ही विभागों में से एक आवास एवं शहरी नियोजन विभाग भी है। “विभागीय प्रमुख सचिव एक स्वच्छ एवं ईमानदार छवि के अधिकारी हैं।” इसी विभाग में अवर अभियंता से मुख्य अभियंता तक के अनेक पद हैं तथा हर पद पर अर्हकारी सेवाकाल का कैबिनेट के माध्यम से निर्धारण है। पुरानी सरकारों में विभागीय मुखिया से लेकर तकनीक से संबंधित अधिकारियों एवं कर्मचारियों की तैनाती और उसमें फेरबदल पर भी अनियमितता की शिकायत अक्सर सामने आती रहती थी। लेकिन इस बार मुख्य अभियंता पद पर तैनाती न्यूनतम अर्हता को दरकिनार करने का प्रस्ताव हालांकि मुख्यमंत्री योगी ने सिरे से खारिज कर दिया था। दरअसल हुआ यूं कि मुख्यमंत्री योगी को अंधेरे में रखकर उनके अधीन आवास एवं शहरी नियोजन विभाग में मुख्य अभियंता के पद पर न्यूनतम अर्हकारी सेवा जो पहले आठ वर्ष अधिशासी अभियंता की थी, को आवास विभाग के अधीनस्थों ने दरकिनार कर डाली। साफ है कि अधिशासी अभियंता पद पर न्यूनतम अर्हकारी सेवा को शिथिल करते हुए मुख्य अभियंता पद पर प्रोन्नति किए जाने का खाका तैयार किया गया।
सूत्र बताते हैं कि अधिशासी अभियंता पद पर न्यूनतम अर्हकारी सेवा 8 वर्ष को शिथिल करते हुए पांच वर्ष किये जाने का प्रस्ताव शासन द्वारा मुख्यमंत्री को इसी साल 17 मार्च को भेजा गया था। जिसे मुख्यमंत्री ने न्यूनतम अर्हकारी सेवा शिथिलीकरण को औचित्यपूर्ण न मानते हुए निरस्त कर दिया। लेकिन वहीं दूसरी ओर आवास विभाग के ‘रसूखदारों’ ने दूसरी पत्रावली गठित कर पुनः मुख्यमंत्री को अंधकार में रखते हुए ब्यापक तथ्यों को बिना संज्ञान में लाये हुए सेवा शर्तों में शिथिलीकरण करने का प्रस्ताव कैबिनेट हेतु अनुमोदित करा लिया है। जाहिर है कि यह पूरी प्रक्रिया सेवा शर्तों के विपरीत है। सूत्र बताते हैं कि सेवा शर्तों में शिथिलीकरण के पीछे ‘अर्थ तंत्र’ ने अपना काम किया। अब यह जांच का विषय है कि मुख्यमंत्री के आदेशों के विपरीत अधीनस्थों ने किन कारणों से 1997 के बाद अचानक पुन: यह संशोधन कराने की चेष्टा में मुख्यमंत्री द्वारा औचित्यहीन प्रकरण को कैबिनेट के माध्यम से कराने का अनुमोदन प्राप्त कर लिया है।