अत्रि आदि महान आदि ऋषियों की तपोभूमि है चित्रकूट
चित्रकूट : गुरु पूर्णिमा पर कोरोना महामारी का ग्रहण साफ़ देखने को मिला। पहले जहां प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालु धर्मनगरी चित्रकूट पहुंच कर अपने गुरुजनों का आशीर्वाद लेते नजर आते थे। वहीं अब यह संख्या सैकड़ो-हजारों में सिमटकर रह गई है। रविवार को सामाजिक दूरी और मास्क का प्रयोग कर सैकड़ों शिष्यों ने मठ-मंदिर पहुंच अपने गुरुजनों का आशीर्वाद लिया। भगवान श्रीराम की तपोभूमि चित्रकूट आदि काल से महान ऋषि-मुनियों की तपोस्थली रही है। गुरुपूर्णिमा पर श्री तुलसीपीठ,कामदगिरि प्रमुख द्वार, कामतानाथ मुखारविंद, धारकुंडी आश्रम, सती अनसूया आश्रम, निर्मोही अखाड़ा, आचारी आश्रम नयागांव, रामधाम मंदिर, पुरानी लंका आश्रम, निर्मोही अखाड़ा, संतोषी अखाड़ा, खाकी अखाड़ा, रामायण कुटी, वेदांती आश्रम, निर्वाणी अखाड़ा, भरत मंदिर, गायत्री शक्तिपीठ बाल्मीकि आश्रम लालापुर, सूरजकुंड आश्रम, रघुवीर मंदिर, रावतपुरा समेत प्रमुख मठ-मंदिरों में सुबह से गुरुजनों के पूजा- अर्चना के लिए शिष्यों का जमावड़ा लगना शुरू हो गया था।
गुरुओं के पूजन के बाद शिष्यों ने मनोकामनाओं के पूरक देवता भगवान श्री कामतानाथ के दर्शन कर कामदगिरि पर्वत की पंचकोसीय परिक्रमा लगाई। इस दौरान श्रद्धालुओं ने गरीबों और असहायों को आस्था का दान कर पुण्यलाभ लिया। उत्तर प्रदेश की धर्मनगरी चित्रकूट में रविवार को गुरूपूर्णिमा को लेकर श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ा रहा। श्रद्धालु सुबह से ही मंदाकिनी नदी में स्नान कर मठ-मन्दिरों में अपने अपने गुरुओं की पूजा अर्चना कर रहे हैं। साथ ही गुरुओं से गुरुदीक्षा ले रहे हैं। ऐसा माना जाता है कि सती अनुसूइया के पति अत्रिमुनि पहले कुलपति थे, जो चित्रकूट मे दस हजार शिष्यों का भरण-पोषण करते थे और इन्हीं के पुत्र भगवान दत्रत्रेय ने ही सर्वप्रथम गुरु-शिष्य परम्परा की स्थापना की थी। तभी से गुरु पूजन की शुरुवात हुई, इसीलिये चित्रकूट में इसका विशेष महत्व है।