Unlocking Happiness…(1)
-विवेकानंद शुक्ला
आज जब हम सभी लोग एक भीड़ का हिस्सा बन गए हैं, हम अपने आप से नही बल्कि भीड़ के ईको सिस्टम से संचालित हैं। हम बाहरी कारकों से इतना आकर्षित हैं कि स्वयं अंदर देखने की ना ज़हमत उठाते हैं और ना ही हिम्मत कर पाते हैं।अपने वास्तविक स्वरूप को भूलकर भीड़ में गुम हो गए हैं। हम अपने भौतिक, शारीरिक और मानसिक स्वरूप में ही इतना खोए हैं कि ख़ुद को पहचान नही पा रहे हैं।हमारे जीवन का उद्देश्य भौतिक सुख-सुविधाओं की प्रगति में नही है क्योंकि सभी भौतिक वस्तुओं का समय सीमा तय तय है जिसके अंदर ही उसको समाप्त हो जाना है।भौतिक सुख-सुविधाओं और विलासतापूर्ण जीवनशैली के बावजूद आज का इंसान शांति की तलाश में दरबदर भटक रहा है क्योंकि जिन भौतिक वस्तुओं में शांति और ख़ुशी ढूँढी जा रही है वह अपने आप में सीमित है, शांति और ख़ुशी उस चेतना के स्तर पर मिलेगा जो असीमित है, अनंत है । भौतिक संसार में संसार की वस्तु को पाना जितना कठिन है उससे कहीं ज्यादा आसान है शांति और ख़ुशी को पाना।बस शर्त ये है की स्वयं के चैतन्य स्वरूप को पहचाना जाय।
इस बात को एक कहानी से समझते हैं…।
एक शेरनी गर्भवती थी, गर्भ पूरा हो चुका था, शिकारियों से भागने के लिए टीले पर गयी, उसको एक टीले पर बच्चा हो गया। शेरनी छलांग लगाकर एक टीले से दूसरे टीले पर तो पहुंच गई लेकिन बच्चा नीचे फिसल गया। नीचे भेड़ों की एक कतार गुजरती थी, वह बच्चा उस झुंड में पहुंच गया। था तो शेर का बच्चा लेकिन फिर भी भेड़ों को दया आ गई और उसे अपने झुंड में मिला लिया। भेड़ों ने उसे दूध पिलाया, पाला पोसा। शेर अब जवान हो गया।शेर का बच्चा था तो शरीर से सिंह ही हुआ लेकिन भेड़ों के साथ रहकर वह खुद को भेड़ मानकर ही जीने लगा। एक दिन उसके झुंड पर एक शेर ने धावा बोला. उसको देखकर भेड़ें भांगने लगीं, शेर की नजर भेड़ों के बीच चलते शेर पर पड़ी, दोनों एक दूसरे को आश्चर्य से देखते रहे।
सारी भेंड़े भाग गईं शेर अकेला रह गया, दूसरे शेर ने इस शेर को पकड़ लिया। यह शेर होकर भी रोने लगा, मिमियाया, गिड़गिड़ाया कि छोड़ दो मुझे मुझे जाने दो मेरे सब संगी साथी जा रहे हैं। मेरे परिवार से मुझे अलग न करो।दूसरे शेर ने फटकारा- “अरे मूर्ख! ये तेरे संगी साथी नहीं हैं, तेरा दिमाग फिर गया है, तू पागल हो गया है। परन्तु वह नहीं माना, वह तो स्वयं को भेंड मानकर भेलचाल में चलता था”। बड़ा शेर उसे घसीटता गया सरोवर के किनारे ले गया। दोनों ने सरोवर में झांका। बड़ा सिंह बोला- सरोवर के पानी में अपना चेहरा देख और पहचान… उसने देखा तो पाया कि जिससे जीवन की भीख मांग रहा है वह तो उसके ही जैसा है।
उसे बोध हुआ कि मैं तो मैं भेड़ नहीं हूं, मैं तो इस सिंह से भी ज्यादा बलशाली और तगड़ा हूं। उसका आत्म अभिमान जागा, आत्मबल से भऱकर उसने भीषण गर्जना की।सिंहनाद था वह, ऐसी गर्जना उठी उसके भीतर से कि उससे पहाड़ कांप गए।उसने कहा- “अरे! इतने जोर से दहाड़ता है?” युवा शेर बोला- “उसने जन्म से कभी दहाड़ा ही नहीं, धन्यवाद जो सरोवर मे मेरी छवि दिखा दी जिससे मैंने ख़ुद को पहचान लिया।… फिर इसी दहाड़ के साथ उसका जीवन रूपांतरित हो गया। अपनी शक्ल देखने के बाद भेड़ों के झुंड़ में रहने वाले शेर को अपने वजूद का ख्याल आया। जा तक हम भीड़ और भौतिक संसार में लिप्त रहते हैं हमें अपने स्वरूप का पता नही चलता।यह सिद्ध करता है कि जब हम अपने अंदर झांकेगे तभी हमें अपनी शक्ति का आभास होगा।तभी हम ख़ुद को पहचान पाएँगे और स्वयं की खोज कर पाएँगे जो शाश्वत शांति और ख़ुशी का मूलाधार है।
We are Consciousness… Realise it.