आपदा को अवसर में बदलने का मतलब व्यवसाय का नया प्राचीर खड़ा करना नहीं होता रामदेव जी!

दयानंद पांडेय

आपदा को अवसर में बदलने में चूक गए रामदेव। वैसे भी अब वह चूकते-चूकते, पूरी तरह चुक गए हैं। व्यक्तिगत संपर्कों तथा विज्ञापन के बूते मीडिया खरीद लेना, और बात है लेकिन यह भारत है। भारत के लोग राम को भी कसौटी पर कस लेते हैं और गांधी को भी। मन करता है तो पूज लेते हैं। मन करता है तो गरिया देते हैं। फिर रामदेव के योग को पूज भी लेते हैं। लेकिन आयुर्वेद और स्वदेशी को बेच कर, इस के कंधे पर बैठ कर व्यापार और व्यावसायिक साम्राज्य खड़ा करने के लिए रामदेव सर्वदा निंदित होते रहे हैं। होते रहेंगे। वैसे भी रामदेव के प्रोडक्ट की विश्वसनीयता सर्वदा संदिग्ध रही है। तिस पर भारी दाम। गुणवत्ता और शुद्धता के नकली दावों के बूते आटा, दाल, देशी घी, बिस्कुट आदि के दाम भी बाज़ार में आसमान पर पहुंचाने के लिए रामदेव ही ज़िम्मेदार हैं। आयुर्वेदिक दवाओं के दाम भी आसमान पर रामदेव ने ही पहुंचाया। यह तथ्य भी हम कैसे भूल सकते हैं भला। इतना कि आयुर्वेदिक दवाएं भी आम आदमी की पहुंच से निरंतर दूर होती गई हैं। अपने व्यवसाय की प्राचीर में कितनी ही बार होम कर, आयुर्वेद को भी भस्म कर चुके हैं रामदेव।

हां, आचार्य पातंजलि के योग को ज़रूर उन्हों ने बाज़ार के कंधे पर बिठा कर ही सही वर्तमान में प्रासंगिक कर उत्कर्ष पर पहुंचाया है। काश कि योग की आड़ में रामदेव ने अरबों-खरबों के व्यवसाय का सपना न बुना होता तो उन के योग की आभा, उन्हें बहुत प्रतिष्ठित किए रहती। लेकिन उन की यह योग की आभा, उन के व्यवसाय के प्राचीर में लुप्त हो चुकी है। तिस पर उन के शार्ट कट, उन का बड़बोलापन, उन्हें निरंतर धूमिल करते गए हैं। कोरोना काल में, कोरोनिल लांच करने का उन का व्यावसायिक दांव उन्हें वैसा ही घाव दे गया है जैसा घाव कभी उन्हें दिल्ली के रामलीला मैदान में औरतों का सलवार, समीज पहन कर छुपने और भागने पर मिला था। कि उन से चिढ़े हुए लोग उन्हें सलवारी बाबा नाम से संबोधित करने लगे। यह सलवारी बाबा का घाव जैसे जीवन भर के लिए उन के ऊपर दाग और घाव बन कर चिपका रहेगा, वैसे ही यह कोरोनिल का घाव भी रामदेव पर दाग बन कर जीवन भर चिपका रहेगा।

बहुत संभव है, कोरोनिल बाज़ार में अब लांच भी न हो पाए। खुदा न खास्ता कोरोनिल लांच हुआ भी तो उन के उपभोक्ता कोरोनिल को शायद हाथ भी न लगाएं। कैंसर ठीक करने का थोथा दावा करना और बात थी। कोरोना के लिए कोरोनिल बनाना भी वही बात है। लेकिन यह पैसा बड़ी हानिकारक चीज़ है। चिमटे से भी छू लेने पर भी बीमार बना देता है। सत्ता हो या पैसा, बड़ी साधना मांगता है। रामदेव जी, वर्तमान में योग को जो काया दी है आप ने, वह दुर्लभ है। हो सके तो आप फिर से उसी योग की दुनिया में, सिर्फ योग की दुनिया में रहिए। व्यावसायिक दुनिया से छुट्टी ले लीजिए। दुनिया आप को फिर से सलाम करेगी। अभी तो धिक्कार रही है। बचिए इस धिक्कार से। आयुर्वेद के पाखंड से बचिए।

आपदा को अवसर में बदलने का मतलब व्यवसाय का नया प्राचीर खड़ा करना नहीं होता रामदेव जी! कोरोनिल का पाखंड खड़ा करना तो बिलकुल नहीं। बहुत बदनाम कर चुके आप आयुर्वेद को। अब और मत कीजिए। आयुर्वेद को लोग संजीवनी की तरह देखते और जानते हैं। किसी कोरोनिल किट के जाल में बहेलिया बन कर आयुर्वेद को मत फंसाइए। वैसे भी भारत में भारतीय संस्कृति और मान्यताओं से घृणा करने वालों की एक लंबी फ़ौज है। उस फ़ौज को बहुत ताकत आप के इस पाखंड ने दे दी है। पूर्व में भी आप ने बहुत से झूठ बोले हैं, बहुतेरी गलतियां की हैं। क़ानून से भी खेले हैं आप। लेकिन तब कांग्रेस के अकूत पाप और आप के योग के पुण्य में सब कुछ लोग भूलते रहे हैं। लेकिन लोगों के भूलने-भुलाने की भी एक सीमा होती है। लोगों के धैर्य की अब और परीक्षा मत लीजिए। योग को आप ने गरिमा दी है। योग के मार्फत करोड़ों लोगों को स्वास्थ्य लाभ दे कर आप ने बहुत पुण्य कमाए हैं। उन्हें व्यावसायिक लाभ के गटर में अब और मत डुबाइए।

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