-राघवेंद्र प्रताप सिंह
लखनऊ : यूपी लोक सेवा आयोग से सचिवालय सेवा में 2010 बैच के अपर निजी सचिव की भर्ती में हुए गड़बड़झाले पर लीपापोती करने का सिलसिला अभी भी जारी है। जबकि मुख्यमंत्री योगी की मंषा थी कि इसकी निष्पक्ष जांच हो। यही वजह है कि उन्होंने इस गड़बड़झाले की सीबीआई जांच के आदेष दिए थे। लेकिन सरकार की सोच और सीबीआई की तेजी को दरकिनार करते हुए इस प्रकरण को शासन और सचिवालय प्रषासन के ‘जिम्मेदार’ ठण्डे बस्ते में डाले हुए हैं। हालांकि अब सर्वोच्च न्यायालय में इस बावत पेषी भी होनी है।
दरअसल उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की अपर निजी सचिव (उत्तर प्रदेश सचिवालय) भर्ती 2010 में हिंदी शॉर्टहैंड की परीक्षा में फेल अभ्यर्थियों को आयोग ने अपने विवेकाधिकार के आधार पर गलतियों में 3 फीसद की अतिरिक्त छूट देकर चयनित किया है, जबकि सेवा नियमावली में छूट देने की कोई व्यवस्था नहीं है और शासन ने आयोग को भर्ती के विज्ञापन का जो अधियाचन भेजा था उसमें भी स्पष्ट रूप से छूट देने पर प्रतिबंध लगाया गया था। आयोग का कहना था कि शासन की परीक्षा पाठ्यक्रम संबंधी 1987 की एक अधिसूचना के तहत विवेकाधिकार के नाम पर छूट देने का अधिकार मिला है। चयनित अभ्यर्थियों ने इस मामले को जब सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी के माध्यम से चुनौती दी तो सरकार से जवाब मांगा गया। इसी बीच सीबीआई ने भी मुख्य सचिव उत्तर प्रदेश को पत्र लिखकर इस भर्ती में पात्रता पूरी नहीं करने वाले अभ्यर्थियों के चयन की पुष्टि की किंतु इस भर्ती में चयनित अभ्यर्थियों ने सचिवालय प्रशासन विभाग के अधिकारियों को मिलाकर उनसे सुप्रीम कोर्ट में यह हलफनामा लगवा दिया कि आयोग को विवेकाधिकार के तहत अधिकार प्राप्त है।
इसी बीच एपीएस परीक्षा 2013 में भी विवेकाधिकार का मामला उठा जिस पर हाई कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए सरकार से जवाब मांगा। सचिवालय प्रशासन, कार्मिक और न्याय विभाग द्वारा लिए गए निर्णय के बाद सरकार ने हाईकोर्ट में हलफनामा दाखिल किया कि उनकी सेवा नियमावली में छूट देने की कोई व्यवस्था विद्यमान नहीं है और वर्ष 1987 की परीक्षा पाठ्यक्रम संबंधी अधिसूचना वर्ष 2001 में नई सेवा नियमावली के लागू होते ही निरस्त हो गई है जो रिक्रूटमेंट प्रोसेस को रेगुलेट नहीं करेगी। शासन ने आयोग को भी 10 जून 2019 को पत्र लिखकर एपीएस की भर्तियों में छूट देने से मना कर दिया। जिसके बाद असफल अभ्यर्थियों ने एपीएस 2010 में सचिवालय प्रशासन के अधिकारियों द्वारा झूठा हलफनामा लगाकर अवैध नियुक्तियों को संरक्षण देने की शिकायत सीबीआई से की जिसके बाद सीबीआई ने अपर मुख्य सचिव सचिवालय प्रशासन से जवाब मांगा। जिसके बाद सचिवालय प्रशासन विभाग कार्मिक विभाग और न्याय विभाग की पुनः बैठक हुई तो सिद्ध हो गया कि सचिवालय प्रशासन के कुछ सेवानिवृत्त अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट को गुमराह करते हुए गलत हलफनामा लगाया था। शासन ने अपने सेवानिवृत्त अधिकारियों के विरुद्ध आंतरिक जांच के आदेश देते हुए सुप्रीम कोर्ट में लगाया गया हलफनामा ‘अमेंडमेंट एप्लीकेशन’ के माध्यम से संशोधित करने का निर्णय लिया। पत्रावली मुख्य सचिव को गई और उन्होंने अपनी सहमति के साथ बीते बुधवार को पत्रावली मुख्यमंत्री कार्यालय के अनुमोदन के लिए भेज दी थी।
मुख्यमंत्री कार्यालय में विशेष सचिव मुख्यमंत्री, सचिव मुख्यमंत्री और प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री तीनों स्थान पर इस भर्ती के चयनित अभ्यर्थी कार्यरत हैं और वह भी वह जो शॉर्टहैंड में फेल होकर विवेकाधिकार के नाम पर चयनित किए गए। यहां यह उल्लेखनीय है कि योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री कार्यालय में अधिकतम दो दिन तक पत्रावली रोकने की कार्य संस्कृति बनाई है लेकिन तीन दिन होने के बावजूद अभी तक पत्रावली वहीं पड़ी हुई है। साफ है कि कहीं न कहीं किसी को बचाने का प्रयास हो रहा है। ‘समर्थ’ निजी सचिव और अधिकारी इसे ‘टर्न डाउन’ कराने का प्रयास में जुटे हैं। जबकि इस मामले में 9 जुलाई 2020 को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई भी लगी हुई है और इस दिन राज्य सरकार को वहां अपना पक्ष प्रस्तुत करना है। अब देखना है कि यह ऊंट किस करवट बैठेगा।