गांवों को हर मूलभूत सुविधा मुहैया कराने और एक तरह से उन्हें शहरों के समकक्ष खड़ा करने की सरकार की मंशा परवान ही नहीं चढ़ पाई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी सांसदों से अपने संसदीय क्षेत्र के चयनित कुछ गांवों को संवार कर आदर्श गांव बनाने की अपील की थी। प्रधानमंत्री मोदी ने बतौर सांसद अपने संसदीय क्षेत्र के कुछ गांवों का कायाकल्प करने की पहल की और उनकी सूरत बदल दी। लेकिन बाकियों की शिथिलता ने आदर्श को मजाक बना दिया।
सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन से इन गांवों को संवारने का जिम्मा था, वह पूरी तरह फ्लॉप रहा। संसद के दोनों सदनों के कुल मौजूदा 784 सांसदों में से मात्र 227 ने ही गांवों को आदर्श गांव बनाने के लिए गोद लिया। इसका मतलब यह नहीं कि वहां काम भी हुआ। विपक्षी पार्टियां तो दूर सत्ता पक्ष के सांसदों और कुछ मंत्रियों ने भी गांवों को विकसित करने की योजना से पल्ला झाड़ लिया है।
दरअसल, आदर्श गांव बनाने के लिए सांसदों के चयनित गांवों में केंद्र व राज्य सरकारों की योजनाओं व परियोजनाओं की मदद लेनी है। कुछ सांसदों ने इस दिशा में सकारात्मक पहल कर अनूठी मिसाल पेश की है। लेकिन ऐसे सांसदों की संख्या बहुत कम है। यह परियोजना अक्टूबर 2014 में शुरू की गई थी, जिसे 2019 तक पूरा करने का लक्ष्य है।