एक-एक इंच ज़मीन और स्वाभिमान की रक्षा के लिए हिंदुस्तान कृतसंकल्प

किसी को भी भ्रम या संदेह में रहने की कोई ज़रूरत नहीं

वयं राष्ट्रे जागृयाम !!(50)!!

-विवेकानंद शुक्ल

चीन के इशारे पर मुजरा करने वाले तथा केवल देश में भ्रम फैलाने वाले वामपंथियों और सत्ता के दलालों को 43 चाइनीज़ सैनिकों के मारे जाने की सूचना गले से नीचे नही उतर रही है।मतलब साफ़ है कि ये हिंदुस्तान की बर्बादी पर ख़ुश होने वाले चाहते हैं कि केवल हिंदुस्तान के जाँबाज़ सैनिक ही मरते रहें।ये हमारे बिहार रेजिमेंट के 20 जाबाँजों की शहादत के औचित्य पर तर्क-वितर्क करके सैनिकों के बलिदान को नीचा दिखा रहे हैं।शायद इन कायरों को नही पता कि युद्ध एक सच्चाई है जिसमें जान लिया जाता है ,जान दिया जाता है, मुजरा नही किया जाता है। सेना से सबूत मांगने वाले और सेना पर शंका करने वाले फिर से चीन के 43 सैनिकों की मौत का सबूत माँग रहे हैं! इनको कभी भी हमारे सैनिकों की वीरता पर भरोसा नही रहा, हिंदुस्तान के सैनिकों से ज़्यादा इनको चाइनीज़ सैनिकों पर विश्वास है।ये वही वामपंथी हैं जो 1962 की लड़ाई में चीन का समर्थन किए थे और केरला का पूर्व कम्युनिस्ट CM नम्बुदरी पाद ने अक्साई चिन को चीन का हिस्सा बताया था।ये चाइनीज़ एजेंट हमारे बिहार रेजिमेंट के 20 सैनिकों के शहादत से ज़्यादा 43 चाइनीज़ सैनिकों के मारे जाने पर गमगीन है।

एलएसी पर चीनी हेलिकॉप्टर देखे जा रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक मारे गए चीनी सैनिकों के शव और घायलों को लेने के लिए लिए ये हेलीकॉप्टर्स झड़प वाले इलाके में आए थे अर्थात चीनी सैनिकों का medical evacuation कराने।मतलब कि बिहार रेजिमेंट के वीर जवानों ने आमने-सामने के द्वंद्व युद्ध में चीनियों को धूल चटाया। इन जवानों ने जानें दे दीं, घायल हुए लेकिन चीनियों को बता दिया कि भारत की असली ताकत क्या है,ये 1962 का भारत नही है अब 2020 का हिंदुस्तान है जो राष्ट्रीय स्वाभिमान से लबालब भरा है।जो राष्ट्र की अखण्डता और सम्प्रभुता के लिये अब घुस के भी मारेगा।हिंदुस्तान के लेफ़्ट-लिबरल,अर्बन नक्सल्स और फेक्यूलर बुद्धिजीवी सेना की पीठ थपथपाने की बजाए सेना के वक्तव्यों पर सवाल उठा रहे हैं। लानत है!

चीन सीमा पर 45 साल बाद सैनिकों की शहादत हुई है। इससे पहले 1975 में अरुणाचल में भारत और चीन के सैनिकों के बीच भिड़ंत में चार जवान मारे गए थे। हालांकि सामान्य तौर पर 1967 के सिक्किम में हुए संघर्ष को दोनों देशों के बीच आखिरी खूनी संघर्ष के तौर पर माना जाता है। अरुणाचल प्रदेश के तुलुंग ला इलाके में तब असम रायफल्स के चार जवान चीनी सैनिकों के साथ मुठभेड़ में शहीद हो गए थे। उस वक्त चीनी सैनिकों ने एलएसी पार की और गश्त कर रहे 20 अक्तूबर 1975 को भारतीय जवानों पर हमला किया। चीन ने तब भारत पर एलएसी पार करने के बाद आत्मरक्षा में गोली चलाने का बहाना बनाया था। इन सभी वारदातों में चाइनीज़ सैनिकों के हताहत होने की कोई सूचना नही है।

पहली बार जवानों ने 20 का बदला 43 से लिया गया है जो चीन के पेरोल पर पलने वाले देशद्रोहियों को बर्दाश्त नहीं हो पा रहा है। सेना से जुड़े सूत्रों ने कहा कि सोमवार की रात जब चीनी सेना तय कार्यक्रम के अनुसार पीछे नहीं हटी तो शाहिद कर्नल संतोष बाबू स्वयं उनसे बात करने गए थे। इसी दौरान चीनी पक्ष की तरफ से उनके साथ हाथापाई की गई, जिसके बाद भारतीय सैनिकों ने भी जवाब दिया। आज ही चीन का बयान आया है… BEIJING (Reuters)- China and India have agreed to de-escalate the situation at their border as soon as possible following a clash between the their troops, the Chinese foreign ministry said on Wednesday… चीन की दलाली करने वालों को समझ में आ जाना चाहिए कि हिंदुस्तान के सैनिकों और जनता की आक्रामकता से चीन की फट गयी है…।

मेगास्थनीज ‘इंडिका’ में लिखता है कि जब सिकंदर और पोरस लड़ रहे थे तो किसान अपने खेतों में कार्य कर रहे थे ।स्वर्गीय अटल बिहारी कहते थे कि जब प्लासी का युद्ध चल रहा था, तो युद्ध लड़ने से अधिक संख्या युद्ध को देखने वालों की थी ।ये हिंदुस्तान के लेफ़्ट-लिबरल,अर्बन नक्सल्स और फेक्यूलर बुद्धिजीवी इनसे भी गिरे लोग हैं जो संकट काल में देश के ख़िलाफ़ खड़े मिलते हैं।आचार्य चाणक्य कहते थे कि युद्ध के समय दुश्मन की तारीफ़ और तरफ़दारी करने वाले लोग देशद्रोही और गद्दार होते है।चीन की दलाली करने वाले लोगो पर कड़ी नजर रखने की जरूरत है।ऐसे देशद्रोहियों और ग़द्दारों पर कठोर कार्यवाही होना चाहिए जिससे कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मूल्य इन्हें पता चल सके।

जवानों की शहादत व्यर्थ नहीं जानी चाहिए…
लहू देकर तिरंगे की बुलंदी को संवारा है,
फरिस्ते तुम वतन के हो तुम्हें सजदा हमारा है।

मेरा देश बदल रहा है, ये पब्लिक है, सब जानने लगी है … जय हिंद-जय राष्ट्र!

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