वयं राष्ट्रे जागृयाम।(45)
-विवेकानंद शुक्ला
इन वामपंथी चाइनीज़ एजेंटों का क़रामात लद्दाख़ में चीन के साथ हुए सीमा विवाद में तो हम देख ही चुके हैं, अब ये साज़िश रच रहे हैं कि क़ोरोना के कारण चीन को छोड़कर हिंदुस्तान में आना चाह रही कम्पनियां किसी भी क़ीमत पर ना आ सकें! ये केवल हिंदुस्तान की संस्कृति और सीमाओं की सुरक्षा के ख़िलाफ़ ही साज़िश नहीं करते हैं बल्कि ये देश के सभी उद्योग-धंधों के भी ख़िलाफ़ हैं। अख़िर ये चीन की कठपुतली क्यों बने हुए हैं और कैसे चीन में बने सामानों की खपत हिंदुस्तान में बढ़ाने के लिए हिंदुस्तान के उद्योग-धंधों को नष्ट कर दिए? आज भी क़ोरोना के कारण चीन को छोड़कर हिंदुस्तान में आना चाह रहे कम्पनियों को साज़िशन आने नही दिया जा रहा है? आइए इसकी पड़ताल करते हैं और सच को सामने लाने का अपना राष्ट्रीय तथा बौधिक कर्तव्य पुरा करते हैं…
सबको पता है कि हिंदुस्तान में आर्थिक उदारीकरण सन 1990 मे शुरू किया गया था, मतलब यह कि इसी वर्ष से हिंदुस्तान का बाज़ार विश्व के लिए खोल दिया गया।वास्तव में इस आर्थिक उदारीकरण की पृष्ठभूमि इन वामपंथियों ने ज़बरदस्ती बनवायी। सन 1990 के पूर्व विश्व में दो ऐतिहासिक घटनाएं घट चुकी थीं। सोवियत रुस का विघटन की प्रक्रिया शुरू हो जाना था। सोवियत संघ के 1970-85 की अवधि में वृद्धि दर में 10 फीसदी की गिरावट हुई। यंत्रों तथा साजोसमान के निर्यात का अंश घटता गया। कृषि उत्पादन, औद्योगिक उत्पादन में कमी आई। फलतः उपभोक्ता वस्तुओं के लिए लम्बी-लम्बी लाइनें लगने लगीं, नागरिकों के जीवन स्तर में गिरावट आई। इस तरह आम उपभोक्ता के लिए अभाव ही आम बात थी।इन्ही करणो से अंततः सोवियत संघ 26 दिसम्बर 1991को विघटित घोषित हुआ।
दूसरी घटना थी जब सन 1979 में चीन ने आर्थिक उदारीकरण लागू करते हुए खुले बाज़ार की आर्थिक नीति को अपना लिया। अस्सी के दशक मे सोवियत संघ के विघटन के पश्चात भारत के साथ-साथ विश्व के सभी कम्यूनिस्टों का गर्भ-नाल चीन से जुड़ जाना तथा चीन द्वारा खुले बाज़ार की आर्थिक नीति को अपनाना हिंदुस्तान के उद्योग-धंधों की बर्बादी का करण बन गया।इसका पेंच ऐसे समझते हैं, चीन द्वारा खुले बाज़ार की आर्थिक नीति को अपनाने के कारण चीन के माल को एक बड़ा बाज़ार चाहिए था, यह तभी हो सकता था जब भारत का मेन्यूफैक्चरिंग इण्डस्ट्री नष्ट हो जाय और चीन के माल को हिंदुस्तान मे आने की अनुमति मिल जाय।इन दोनो रणनीतियों पर हिंदुस्तान के सभी वामपंथी कम्युनिस्ट चाइनीज़ एजेंटों ने एक्शन लेना शुरू किया।
इस रणनीति के तहत अस्सी के दशक में इन वामपंथी कम्युनिस्ट चाइनीज़ एजेंटों ने सर्वप्रथम मज़दूरों के अधिकारों के झूठे नारे लगाकर हिंदुस्तान के सभी बड़े औद्योगिक शहरों में लेबर प्रोबलेम पैदा किया और मेन्यूफैक्चरिंग इण्डस्ट्री को शट डाउन करवा दिया। इसका एक क्लासिकल उदाहरण कानपुर शहर है जो कभी ‘मैन्चेस्टर आफ ईस्ट’के नाम से मशहूर था। एक जमाना था..। कानपुर की “कपड़ा मिल” विश्व प्रसिद्ध थीं। कानपुर को “ईस्ट का मैन्चेस्टर” बोला जाता था। कानपुर की फ़ैक्टरी के महीन सूती कपड़े प्रेस्टीज सिम्बल होते थे। वह सब कुछ था जो एक औद्योगिक शहर में होना चाहिए। फ़िर “कम्युनिस्टों” की निगाहें कानपुर पर पड़ीं.. तभी से…. बेड़ा गर्क हो गया। “आठ घंटे मेहनत मज़दूर करे और गाड़ी से चले मालिक।” कम्युनिस्टों ने यह नारा दिया। ढेरों हिंसक घटनाएं हुईं, मिल मालिक को दौड़ा दौड़ा कर मारा पीटा भी गया। नया नारा दिया गया। ‘काम के घंटे चार करो, बेकारी को दूर करो’। अंततः वह दिन आ ही गया जब कानपुर के मिल मज़दूरों को मेहनत करने से छुट्टी मिल गई। मिलों पर ताला डाल दिया गया।
इस तरह सन 1990 तक हिंदुस्तान के मेन्यूफैक्चरिंग इण्डस्ट्री को कम्युनिस्ट चीन के इशारे पर सुनियोजित तरीक़ों से बर्बाद किया गया और सन 1990 मेन ही भारतीय सरकार को बड़े-बड़े आर्थिक सिद्धांतों को समझा कर भारत मे भी आर्थिक उदारीकरण लागू करते हुए खुले बाज़ार की आर्थिक नीति को अपना लिया।इन दोनो घटनाओं के बाद जो चीन को हिंदुस्तान के रूप मे एक बार मार्केट मिला वह आज तक जारी है। अब तो अपनी पुरी पैठ बना चुका है भारतीय बाज़ारों में। यहाँ तक की राजनीतिक पार्टियों, पत्रकारों और मीडिया चैनेल्स तक को ख़रीद लिया है अपने क़सीदे पढ़वाने के लिए।
आज कोरोना संकट में भी वामपंथी चाइनीज़ एजेंट हिंदुस्तान की राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक व्यवस्था के ख़िलाफ़ साज़िश रच रहे हैं। लद्दाख़ मे चीन से सीमा विवाद में इनकी खलनायकी पुरा देश देख ही चुका है। इधर इन लोगों ने पुरे विश्व में चीन द्वारा प्रायोजित अख़बारों, चैनलों और न्यूज़ पोर्टल्स के द्वारा हिंदुस्तान के विरोध में प्रचार किया जा रहा है। हिंदुस्तान को ‘हिंदूफोबिया’ से ग्रस्त साबित किया जा रहा है। हिंदुस्तान को बदनाम किया जा रहा है। हिंदुस्तान में अराजकता लाने की वकालत की जा रही है। देश में ऐसा माहौल बताया जा रहा है कि हिंदुस्तान उद्योग-धंधों के लिए सुरक्षित जगह नहीं है ताकि क़ोरोना के कारण चीन को छोड़कर हिंदुस्तान में आना चाह रहे कम्पनियों में भय पैदा हो जाय और वे हिंदुस्तान की तरफ़ रुख़ ना कर सके।
ये वामपंथी चाइनीज़ एजेंट कभी नही चाहेंगे की हिंदुस्तान सुरक्षित रहे, उद्योग-धंधें फूलें-फलें और अमन-चैन रहे क्योंकि इससे इनके आका चीन को नुक़सान जो होगा। “कम्यूनिस्ट अफ़ीम” बहुत “घातक” होती है, उन्हें ही सबसे पहले मारती है, जो इसके चक्कर में पड़ते हैं..! कम्युनिज्म का बेसिक प्रिन्सिपल यह है : “दो क्लास के बीच पहले अंतर दिखाना, फ़िर इस अंतर की वजह से झगड़ा करवाना और फ़िर दोनों ही क्लास को ख़त्म कर देना” और फिर सत्ता का मज़ा लेना।
मेरा देश बदल रहा है, ये पब्लिक है, सब जानने लगी है … जय हिंद-जय राष्ट्र!
#NationBeforeReligion