वयं राष्ट्रे जागृयाम ।(40)
-विवेकानन्द शुक्ला
तियानमेन स्क्वायर वही जगह है जहाँ 4 जून को लोकतंत्र की स्थापना के लिए जुटे 10000 छात्रों के ख़ून से चाइना की कम्युनिस्ट सरकार ‘लाल सलाम ‘ लिख दी थी।कहाँ गए सब लाल लम्पट वामपंथी गिरोह जो हाथों में संविधान की किताब पकड़े लोकतंत्र के नाम पर नारा लगाते हैं… कल 4 जून को तियानमेन चौक नरसंहार की 30वीं बरसी थी।ऐसे समय जब दुनिया भर में मानवाधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों को लेकर बहस और प्रदर्शन का दौर जारी है,वहीं पर लोकतंत्र के समर्थन में हुए प्रदर्शन में बेगुनाह लोगों के कत्लेआम की बरसी पर आज हिंदुस्तान समेत दुनिया भर के वामपंथियों में चुप्पी है। नयी पीढ़ी सम्भवतः तियानमेन स्क्वायर नरसंहार से ना परिचित हो इसलिए आज इस नरसंहार का इतिहास प्रस्तुत करते हुए ये बताने का प्रयास कर रहा हूँ कि वामपंथी कम्यूनिस्टों का चरित्र कितना तानाशाही और हिंसक है…
यह घटना शुरू होती है जब चीन में लोकतांत्रिक मूल्यों को लेकर काम करने वाले तथा कम्युनिस्ट पार्टी के उदारवादी माने जाने वाले नेता हू याओबैंग की मौत 15 अप्रैल 1989 को संदिग्ध कारणों से हो जाती है।उनके मौत के विरोध में 13 मई 1989 को तियानमेन स्क्वायर पर 100 से ज़्यादा छात्र भूख हड़ताल पर बैठे और अगले कुछ ही दिनों में हड़तालियों की संख्या हज़ारों में थी …. प्रदर्शनकारी छात्रों ने 30 मई 1989 को तियानमेन चौक पर लोकतंत्र की एक प्रतीकात्मक मूर्ति की स्थापना की। धीरे-धीरे क्रांति की लपटें पूरे चीन में फैलने लगीं।कई तक यह प्रदर्शन चलता रहा।छात्रों द्वारा प्रदर्शन वापस ना लेने पर 3 और 4 जून की रात को चीनी सेना ने प्रदर्शनकारियों पर फायरिंग की और उन पर टैंक चढ़ा दिए… और लोकतंत्र की स्थापना करने के लिए आंदोलन करने वाले छात्रों के ख़ून से तियानमेन स्क्वायर पर चीन की तानाशाही सरकार द्वारा ‘लाल सलाम‘ लिख दिया गया।
चीन की सरकार कहती है कि फ़ौजी कार्रवाई में 200 से 300 लोग मारे गए,लेकिन बाद में सामने आए इंटेलिजेंस इन्पुट्स के अनुसार मरने वालों की सही संख्या 10 हज़ार से भी अधिक थी। उस वक़्त ब्रिटिश राजदूत एलन डोनाल्ड ने लंदन भेजे टेलीग्राम में कहा था कि कम से कम 10,000 आम नागरिक मारे गए हैं। हाल के इतिहास में ये दुनिया का सबसे बड़ा नरसंहार माना जाता है, जब किसी देश ने अपने ही नागरिकों को इस तरह से घेरकर मारा हो।
इस पोस्ट के नीचे जो फ़ोटो अटैच किया गया है वह ऐतिहासिक फ़ोटो है जो इस घटना के दौरान तियानमेन चौक की ओर बढ़ रहे पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के टैंकों को रोकते हुए एक शख्स की तस्वीर 4 जून 1989 को एक फोटोग्राफर ने खींच ली थी। इस तस्वीर को गॉडेस ऑफ डेमोक्रेसी (लोकतंत्र की देवी) भी कहा जाता है। इस तस्वीर को ‘टैंकमैन’ नाम से भी जाना जाता है। उसका क्या हुआ यह भी आज तक एक रहस्य है।) इस नरसंहार के तीन दशक से भी अधिक समय बाद भी चीन की कम्युनिस्ट सरकार इस विषय पर किसी भी तरह के बहस या चर्चा की मंज़ूरी नहीं देती। पाठ्यपुस्तकों और मीडिया में भी इस बारे में बात करने पर रोक है।ज़ाहिर है कि लोकतन्त्र के कितना ख़िलाफ़ है चीन। तियानमेन स्क्वायर नरसंहार की घटना को पुनः चीन हांगकाँग में दोहराने की कोशिश में है।चीन अपनी दमनकारी नीतियों के लिए पहले भी बदनाम रह चुका है इसलिए हांगकांग में लोकतंत्र की माँग को लेकर लगातार हो रहे हालिया प्रदर्शनों (Movements) को लेकर इस तरह की आशंकाएं सामने आने लगी हैं कि कहीं इस प्रदर्शन को कुचलने के लिए चीन तीन दशक पुराने हिंसक तेवर को फिर न अपनाए और तियानमेन स्क्वायर नरसंहार (Tiananmen Square Massacre) जैसा ख़ूनी दमन को अंजाम ना दे दे।
जून 1989 की एक शाम सीताराम येचुरी जेएनयू पहुंचे थे।उनके पास तत्कालीन चीन सरकार द्वारा तैयार की गई एक फिल्म का कैसेट भी था।उस फिल्म में एकतरफ़ा यह सिद्ध करने का प्रयास किया गया था कि तियानमेन स्क्वायर (Tiananmen Square) पर चीन की सरकार द्वारा सेना से कराया गया नरसंहार उचित था लेकिन उस नरसंहार से पूरा देश तब तक परिचित हो चुका था. अतः जेएनयू के वामपंथी लाल लंगूरों के खिलाफ़ शेष छात्र एकजुट हो गए थे।छात्रों ने वह फिल्म देखने से मना कर दिया था और येचुरी को मेस में बंद कर के उससे सवाल जवाब शुरू किए थे।येचुरी लगभग पूरी रात मेस में छात्रों के कब्जे में रहे थे और उनके तीखे सवालों को झेलते रहे थे।सवेरे जैसे तैसे वहां से निकल पाये थे।
दुनिया के सबसे नृशंस हत्याकांडों में से एक इस घटना पर भारत के वामपंथी कभी कुछ नहीं बोलते।भारत में जेएनयू, केरल या ऐसी इक्का-दुक्का जगहें जहां वामपंथी विचारधारा बची हुई है उन्हें यह तस्वीर हरदम याद दिलाने की ज़रूरत है ताकि उन्हें पता रहे कि जनता को उनका असली चेहरा अभी भूली नहीं है। भारत में चीन के दलाल कम्युनिस्ट उस नरसंहार को सही तथा मौत के घाट उतरे लोगों को गलत सिद्ध करने में जुटे रहते हैं।
मेरा देश बदल रहा है, ये पब्लिक है, सब जानने लगी है …जय हिंद-जय राष्ट्र !