‘खेतिहरों और कृषि मजदूरों’ पर 2011 की जनगणना के आंकड़ों से पता चलता है कि 49.8 प्रतिशत पुरुष श्रमिकों के मुकाबले लगभग 65.1 प्रतिशत महिला श्रमिक खेतिहर या कृषि मजदूर के रूप में कृषि पर निर्भर हैं। एनएसएसओ द्वारा यह भी बताया गया है कि सभी महिला ‘श्रमिकों’ का 63 प्रतिशत और ‘ग्रामीण महिला श्रमिकों’ का 75 प्रतिशत कृषि क्षेत्र से जुड़ी हुई हैं। महिलाएं रोपण से लेकर कटाई के बाद तक के कृषि कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। कृषि में महिलाओं की अभिन्न भूमिका के बावजूद केवल 13.96 प्रतिशत संपत्तियां महिलाओं द्वारा संचालित हैं और वह भी ज्यादातर छोटे और सीमांत किसानों के रूप में।
फसल, पशुपालन, मत्स्य पालन, वानिकी और कटाई के बाद प्रौद्योगिकी में महिलाओं के जबरदस्त योगदान के बावजूद ग्रामीण क्षेत्रों के लिए प्रौद्योगिकी, सेवाओं और सार्वजनिक नीतियों के पैकेज तैयार करते समय कृषि में महिलाओं की उपयोगी भूमिका की अक्सर उपेक्षा की जाती रही है। कृषि में महिलाएं कभी-कभी विस्तार सेवाओं और उत्पादन परिसंपत्तियों जैसे बीज, पानी, ऋण, सब्सिडी आदि तक पहुंचने में असमर्थ होती हैं। चूंकि अधिकांश महिलाओं के पास अपनी जमीन नहीं होती है, उन्हें विभिन्न सरकारी कार्यक्रमों/सेवाओं का लाभार्थी नहीं माना जाता है। इसके अलावा, परिवार और खेत में महिला की अनेक भूमिकाओं के कारण, ज्ञान और जानकारी तक उसकी पहुंच और इसलिए उसके अवसर कम हो रहे हैं। रीति-रिवाजों में लैंगिक भेदभाव व्याप्त है और यह सामाजिक-आर्थिक विकास में बाधा पहुंचाता है। जबकि महिला कार्यक्रमों में स्थायी विकास के लिए निवेश महत्व पूर्ण है, फिर भी महिलाओं को विकास कार्यक्रमों से लाभान्वित होने में अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
स्वतंत्रता के बाद के आरंभिक वर्षों के दौरान, कृषि में महिलाओं की समस्याओं के समाधान के लिए विभिन्न परियोजनाओं को लागू किया गया था। ‘स्टैंड-अलोन’ कार्यक्रमों को कार्यान्वित करने से लेकर ‘कृषि में लैंगिक चिंताओं को पहचानने और मुख्यधारा में लाने’ तक के एक आदर्श बदलाव के बाद, लैंगिक मुख्य धारा विषयक नीतिगत स्तर की अनेक पहलों को बढ़ावा दिया जा रहा है। राष्ट्रीय कृषि नीति में ‘कृषि में महिलाओं की भूमिका को पहचानने और मुख्य धारा में लाने’ के लिए सर्वोच्च‘ प्राथमिकता दी गई है और कृषि विकास एजेंडा में ‘लिंग के मुद्दे’ को शामिल करने पर प्रकाश डाला है। ‘लिंग संबंधी मुख्य धारा’ राष्ट्रीय कृषि विस्तार नीति की रूपरेखा के महत्वपूर्ण स्तंभों में से एक था और यह अनिवार्य था कि महिलाओं को सशक्त बनाने और उनके क्षमता निर्माण और निवेश, प्रौद्योगिकी और खेती के अन्य संसाधनों तक उनकी पहुंच में सुधार के लिए उपयुक्त संरचनात्मक, कार्यात्मक और संस्थागत उपाय शुरू किए जाएं। कृषि, सहकारिता और किसान कल्याण विभाग की विभिन्न प्रमुख योजनाओं / कार्यक्रमों और कई विकास हस्तक्षेपों के तहत महिलाओं के लिए 30 फीसदी धनराशि निर्धारित करके लिंग संबंधी चिंताओं को दूर किया जा रहा है।
कृषि में महिलाओं की मौजूदगी सुनिश्चित करने और महिला किसानों की बढ़ती भूमिका के संबंध में; किसानों के लिए राष्ट्रीय नीति 2007 में महिला सशक्तीकरण के लिए अनेक उपायों की परिकल्पना की गई है। अन्य बातों के अलावा नीतिगत प्रावधानों में भूमि, जल, पशुधन, मत्स्य पालन और जैव संसाधनों के संबंध में संपत्ति सुधार शामिल हैं। सहायक सेवाओं और निवेश जैसे सीमांत प्रौद्योगिकियों के प्रयोग; कृषि जैव-सुरक्षा प्रणाली, अच्छी गुणवत्ता वाले बीज और रोग मुक्त रोपण सामग्री की आपूर्ति, मिट्टी की उर्वरता और स्वास्थ्य में सुधार तथा एकीकृत कीट प्रबंधन प्रणाली; महिलाओं के लिए सहायक सेवाएं जैसे, क्रेश (शिशु सदन), बच्चों की देखभाल केन्द्र, पोषण, स्वास्थ्य और प्रशिक्षण, समय पर, पर्याप्त और उचित ब्याज दरों पर संस्थागत ऋण, और किसान अनुकूल बीमा प्रपत्र, सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) का उपयोग और कृषि विस्तार को पुनर्जीवित करने के लिए किसानों के स्कूलों की स्थापना, देश भर में एमएसपी के प्रभावी कार्यान्वयन, कृषि बाजार के बुनियादी ढांचे का विकास, और खेती करने वाले परिवारों के लिए ग्रामीण गैर-कृषि रोजगार पहल; ग्रामीण ऊर्जा आदि के लिए एकीकृत दृष्टिकोण आदि शामिल है। इन प्रावधानों को विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों के माध्यम से संचालित किया जा रहा है, जो केन्द्र सरकार के विभिन्न विभागों और मंत्रालयों द्वारा कार्यान्वित किए जा रहे हैं।
‘किसानों की आय दोगुनी करने’ के बारे में अंतर-मंत्रालयी समिति ने सितंबर, 2018 में प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट में कृषि में महिलाओं को सशक्त बनाने पर जोर दिया है और विस्तार कार्यक्रमों में महिलाओं के दिखाई देने और उनकी भागीदारी में सुधार लाने और सरकारी योजनाओं/कार्यक्रमों में लाभार्थी के रूप में रणनीतियों की सिफारिश की है। राष्ट्रीय प्रति दर्श सर्वेक्षण (एनएसएस) के आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले तीन दशकों में कृषि में पुरुषों की संख्या में लगातार गिरावट आई है। इस प्रवृत्ति को आसानी से “भारतीय कृषि में महिलाओं का बढ़ता प्रभाव” कहा जा सकता है। जैसे-जैसे अधिक से अधिक पुरुष औद्योगिक और सेवा क्षेत्रों में गैर-कृषि कार्यों की तरफ बढ़ रहे हैं, महिलाएं कृषि में पर्याप्त संख्या में बनी हुई हैं। खेती में महिलाओं के योगदान को ध्यान में रखते हुए; समय की मांग है कि योजनाओं और कार्यक्रमों तथा साथ ही विकास रणनीतियों को सफलतापूर्वक कार्यान्वित करने के लिए महिला किसानों को अधिक संख्या में शामिल किया जाए।
कृषि, सहकारिता और किसान कल्याण विभाग कई उपायों और पहलों के माध्यम से ‘विकास को बढ़ावा देने’ और ‘कृषि में महिलाओं को सशक्त बनाने’ की दिशा में काम कर रहा है। सरकार की रणनीति पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए खेती को व्यवहार्य बनाकर महिला किसानों के सशक्तीकरण और विकास पर ध्यान केंद्रित करना है। इससे कृषि विस्तार सेवाओं सहित उपयोगी संसाधनों तक खेती करने वाली महिलाओं की पहुंच बेहतर हो सकती है, जिससे ग्रामीण महिलाओं के जीवन में समग्र सुधार आ सकता है। इससे न केवल कृषि क्षेत्र के उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि और समग्र राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा में सुधार आ सकता है, बल्कि यह महिलाओं को कार्यक्रमों और योजनाओं का लाभार्थी होने से लेकर उन्हें सशक्त बनाने में उनकी सक्रिय भागीदारी को आसान बनाएगा।